अनूपचंद कोठारी के निधन पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शोक व्यक्त किया
स्व॰ श्री अनूप चंद कोठारी (जैन) रतन टाटा एवं बड़े उद्योगपतियों के साथ.
रायपुर.मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वरिष्ठ समाज सेवी अनूप चंद कोठारी के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने ट्यूटर पर स्वर्गीय कोठारी के शोक-संतप्त परिवार के प्रति अपनी संवेदना जाहिर करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने शोक संदेश में कहा है कि स्वर्गीय कोठारी ने निरंतर समाज की सेवा की। वे जैन धर्म के विभिन्न धार्मिक आयोजनों में सक्रिय सहभागिता निभाने के साथ ही आजीवन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की सहायता करते रहे। स्वर्गीय श्री कोठारी की इच्छानुसार मृत्यु के बाद डॉ. भीमराव अंबेडकर स्मृति चिकित्सालय में उनका देहदान किया गया। उन्होंने देहदान कर मृत्योपरांत भी अपने अनुकरणीय कार्यों को जारी रखा।
स्व॰ अनूप चंद कोठारी साधारण व्यक्ति लेकिन असाधारण व्यक्तित्व थे
श्री विनायक सेवा समिति ने उन्हे श्रद्धांजली व्यक्त करते हुए कहा की वर्ष 2000 में छ॰ग॰ में अकाल के कारण कुछ इलाकों में भुखमरी की स्थिति बनी हुई थी तब श्री अनूपचंद जैन कोठारी जी देवता बन कर सामने आये थे। उन्होने समिति से “अन्नदान महादान योजना” शुरु करने की पहल की तथा 9 जनवरी 2001 को उक्त योजना शुरु हुई। इस दौरान समिति के साथी गांवों का दौरा कर भुखमरी के शिकार लोगों को चावल उपलबद्ध करवाते थे। बाद में यह योजना बहुत समय तक मेकाहारा रायपुर में इलाज के लिये आये मरीजों के गरीब परिजनों के लिये भी चलती रही।
राजेश बिस्सा ने बताया की स्व॰ श्री अनूपचंद कोठारी “जैन” जी एक साधारण व्यक्ति व असाधारण व्यक्तित्व थे। उन्होने हर संभव प्रयास किये की उनकी नजरों में आया कोई भी पीड़ित व्यक्ति अपने को लाचार ना समझे, वे उसका सहारा बन कर खड़े हो जाते थे। इसके लिये उन्होने सहारा योजना शुरु करवाई थी इसके तहत लोगों को हर स्तर पर बिना प्रचार प्रसार किये मदद करना उनका लक्ष्य था।
छत्तीसगढ़ से अगाध लगाव था स्व॰ अनूपचंद जी को
अपनी जन्मभूमी छत्तीसगढ़ से उन्हे अगाध लगाव था। पूरे भारत में अपने माईनिंग व्यवसाय के विस्तार के बावजूद उन्होने छ॰ग॰ को नहीं छोड़ा। उनका मानना था जिस धरा ने उन्हे पाला पोसा है उसे कैसे छोड़ा जा सकता है। उन्होने व्यवसाय को कभी लाभ हानि के रुप में नहीं वे इसे भी सेवा के रुप में लेते थे। बड़े बड़े उद्योगपति भी श्री अनूपचंद कोठारी “जैन” के ज्ञान व समर्पण का लोहा मानते थे।