अहोई अष्टमी आज, जानें कैसे मिलेगा संतान की रक्षा का वरदान, क्या है व्रत और पूजन विधि

नई दिल्ली. कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) का व्रत रखा जाता है. इन दिन महिलाएं अहोई माता (पार्वती) की पूजा करती हैं और अपनी संतान की दीर्घायु की कामना करती हैं. जिस तरह पति की लंबी उम्र के लिए महिलाएं करवा चौथ करती हैं, उसी तरह बच्चों के लिए अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं. वैसे तो ये व्रत पुत्र के लिए किया जाता है, लेकिन अब महिलाएं इसे अपनी पुत्रियों के लिए भी करने लगी हैं.
इस बार इस व्रत शुभ संयोग बन रहा है. अहोई अष्टमी व्रत में मां पार्वती की पूजा की जाती है और महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र की कामना करती हैं. मान्यता है कि इस दिन से दीपावली (Diwali) के उत्सव का आरंभ हो जाता है. इस दिन महिलाएं चांदी की अहोई बनाती हैं और फिर उसकी पूजा करती हैं. इसकी महिमा का बखान पद्मपुराण में भी किया गया है.
अहोई अष्टमी पूजा विधि
अहोई अष्टमी का व्रत सुबह से शुरू होता है और शाम को अहोई माता की कथा सुनने के बाद समाप्त होता है. अहोई माता की पूजा के लिए प्रातः उठें और स्नान के बाद पूजन का संकल्प लें. शाम के समय दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं या फिर बाजार से अहोई माता के चित्र लाकर उसे दीवार पर चिपका दें. इसके बाद स्याऊ में चांदी के दो मोती डाल दें और इसे पूजन स्थल पर रख दें.तारे निकलने पर अहोई माता की पूजा शुरू करें.
सबसे पहले जमीन को अच्छे से साफ कर लें. अब यहां पूजन का चौक पूरें और एक लोटे में जल भरकर इसे चौक के सामने स्थापित कर दें. अहोई माता का स्मरण करें और माता की कथा सुनें. कथा समाप्त होने पर आरती करें और पूजन में मौजूद सभी भक्तों में प्रसाद वितरित करें.
अहोई अष्टमी पूजा शुभ मुहूर्त
21 अक्टूबर 2019 को शाम 5 बजकर 42 मिनट से 6 बजकर 59 मिनट तक
कुल अवधिः 1 घंटे 17 मिनट
अहोई अष्टमी का महत्व
यह व्रत खासतौर से उत्तर भारत में मनाया जाता है. उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश में ये व्रत महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत कर माता अहोई की पूजा करने से निःसंतानों को संतान सुख की प्राप्ति होती है और जिन महिलाओं के बच्चे बीमार होते हैं या उन्हें कोई कष्ट होता है. वह सभी माता अहोई दूर कर देती हैं. परंपरागत रूप में यह व्रत केवल पुत्रों के लिए रखा जाता था, लेकिन आजकल अपनी सभी संतानों के कल्याण के लिए आजकल यह व्रत रखा जाता है.