इंग्लैंड के इस पूर्व कप्तान किया था कमाल, भारत को वर्ल्ड कप में दी थी पटखनी


नई दिल्ली. भारतीय क्रिकेट के सबसे यादगार लम्हे की बात जब भी उठेगी तो सबसे पहले 1983 वर्ल्ड कप जीत का नाम लिया जाएगा, लेकिन अगर सबसे खराब दिन की बात की जाएगी तो शायद 1987 वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल का जिक्र जरूर होगा. टीम इंडिया 1983 में जीतने की दावेदार नहीं थी, लेकिन चैंपियन बन गई. इसके ठीक चार साल बाद टीम का चैंपियन बनना 100 फीसदी तय माना जा रहा था, लेकिन सेमीफाइनल में इंग्लैंड ने उसकी राह रोक दी. जानते हैं उस वर्ल्ड कप में ऐसा क्यों हुआ था??? दरअसल इसके पीछे काम कर रही थी इंग्लैंड के तत्कालीन कप्तान माइक गैटिंग (Mike Gatting) की एक खास रणनीति. इसी रणनीति ने उस वर्ल्ड कप में चैंपियन दिखाई दे रहे भारतीय स्पिनरों को अचानक नौसिखिया साबित कर दिया और नतीजा सेमीफाइनल में बाहर होकर भुगतना पड़ा. इसी माइक गैटिंग ने 6 जून को अपना 63वां जन्मदिन मनाया है.

भारत कर रहा था मजे, इंग्लैंड कर रहा था खास प्रैक्टिस
दरअसल 1987 के वर्ल्ड कप में भारतीय क्रिकेट टीम के लिए मनिंदर सिंह (Maninder Singh) और रवि शास्त्री (Ravi Shastri) की स्पिन जोड़ी ने जोरदार प्रदर्शन किया था. दोनों की गेंदों पर रन बनाना भारत की धीमी पिचों पर सभी टीमों के लिए भारी हो रहा था. गैटिंग भी इससे चिंतित थे, क्योंकि इंग्लैंड के बल्लेबाज स्पिन के खिलाफ सबसे ज्यादा अनाड़ी माने जाते थे. लेकिन मनिंदर और शास्त्री, दोनों खब्बू स्पिनर थे यानी भारतीय स्पिन गेंदबाजी में विविधता नहीं थी.

यही कमी गैटिंग ने पकड़ ली और अपने बल्लेबाजों को स्वीप शॉट की प्रैक्टिस करने का आदेश दिया ताकि इन दोनों की स्पिन के प्रभाव को खत्म किया जा सके. नतीजा ये हुआ कि जहां आखिरी ग्रुप मैच के बाद टीम इंडिया के क्रिकेटर आराम फरमा रहे थे, वहीं इंग्लैंड के मुख्य बल्लेबाज ग्राहम गूच (Graham Gooch) एलन लैंब (Alen Lamb) और खुद गैटिंग भी पूरा-पूरा दिन ब्रेबोर्न स्टेडियम के प्रैक्टिस पिच पर स्थानीय खब्बू स्पिनरों की गेंद पर केवल स्वीप शॉट की प्रैक्टिस कर रहे थे.

मैच में भारी पड़ा भारत पर यही स्वीप शॉट

रिलायंस वर्ल्ड कप में 5 नवंबर, 1987 को दोनों टीमों के बीच सेमीफाइनल मैच खेला गया. पहले सेमीफाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया ने पाकिस्तान को हरा दिया था. ऐसे में टीम इंडिया पर फाइनल में अपनी चिर प्रतिद्वंदी टीम का सामना करने का दबाव भी नहीं था, लेकिन इंग्लैंड का स्वीप शॉट अभ्यास उसे भारी पड़ गया. कपिल देव ( Kapil Dev) ने टॉस जीतकर इंग्लैंड को बल्लेबाजी दी.

गूच और गैटिंग ने जोरदार बल्लेबाजी की और स्वीप शॉट से मनिंदर-शास्त्री की गेंदबाजी बेकार कर दी. गूच ने 136 गेंद में 11 चौके लगाकर 115 रन बनाए, जबकि गैटिंग ने 62 गेंद में ही 56 रन ठोक दिए. इन दोनों के बीच तीसरे विकेट पर 117 रन की साझेदारी हुई. इसके बाद लैंब ने 29 गेंद में 32 रन ठोक दिए. नतीजतन इंग्लैंड ने 50 ओवर में 6 विकेट पर 254 रन बनाए, जो उस जमाने में बड़ा स्कोर माना जाता था. मनिंदर ने 3 विकेट लिए, लेकिन 10 ओवर में 54 रन देकर वे महंगे साबित हुए. शास्त्री ने बिना विकेट लिए ही 49 रन लुटा दिए थे. विविधता के लिए कपिल ने मोहम्मद अजहरुद्दीन (Mohammad Azharuddin)से ऑफ स्पिन कराई, लेकिन उन्होंने भी 2 ओवर में 13 रन दे दिए.

गैटिंग ने फिर लपका कपिल का मैच विनिंग कैच भी
भारतीय क्रिकेट टीम के शुरुआती विकेट जल्दी गिर गए थे. इसके बाद कपिल और अजहर ने 5वें विकेट के लिए तेजतर्रार 47 रन जोड़े. जब लग रहा था कि ये जोड़ी टीम को जीत तक ले जाएगी तो कपिल ने एंडी हैमिंग्स (Endy Hammings) की गेंद पर मिड विकेट के  ऊपर से उड़ाना चाहा. वहां खड़े गैटिंग ने एक शानदार कैच लपका और यहीं पर भारत की किस्मत तय हो गई. टीम इंडिया 46वें ओवर में 219 रन पर लुढ़क गई, जिसमें आखिरी 5 विकेट महज 15 रन के अंदर गिर गए.

गैटिंग के स्वीप शॉट ने ही छीना इंग्लैंड से खिताब भी
गैटिंग ने जिस स्वीप शॉट ने इंग्लैंड को सेमीफाइनल जिताया, उसी स्वीप ने उनसे फाइनल में खिताब का मौका छीन लिया. ऑस्ट्रेलिया के कप्तान एलन बॉर्डर (Alen Border) ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी ली. डेविड बून (David Boon) के 75 रन से ऑस्ट्रेलिया ने 50 ओवरों में 5 विकेट पर 253 रन बनाए. जवाब में एक समय जीतते दिख रहे इंग्लैंड के लिए कप्तान माइक गैटिंग ने रिवर्स स्वीप मारने की कोशिश की और आउट हो गए. नतीजतन इंग्लैंड 8 विकेट पर 246 रन ही बना पाया और खिताब गंवा बैठा.

वॉर्न ने बनाया था ‘सदी की गेंद’ से शिकार
गैटिंग को सबसे ज्यादा चर्चा ऑस्ट्रेलियाई दिग्गज लेग स्पिनर शेन वॉर्न (Shane Warne)के करियर की पहली एशेज बॉल के लिए मिली है, जिसे “सदी की गेंद” कहा जाता है. वॉर्न ने 3 जून, 1993 को अपने पहले एशेज टेस्ट की अपनी पहली ही गेंद पर ओल्ड ट्रैफर्ड स्टेडियम में गैटिंग को लगभग 180 डिग्री टर्न के जरिये बोल्ड कर दिया था. इस गेंद ने दुनिया में तहलका मचा दिया था.

टूटी नाक और हो गए रिबैल घोषित
महज 20 साल की उम्र में टेस्ट करियर शुरू करने वाले गैटिंग को अपना पहला टेस्ट शतक बनाने में 7 साल और 54 टेस्ट मैच का इंतजार करना पड़ा. अपने करियर के 79 टेस्ट मैच में 4,409 रन और 92 वनडे मैच में 2,095 रन बनाने वाले गैटिंग की नाक को वेस्टइंडीज की ‘व्हिस्परिंग डेथ’ कहलाने वाले माइकल होल्डिंग (Michael Holding)के बाउंसर ने तोड़ दिया था. गैटिंग के करियर में विवादों की कमी नहीं थी.

उन्होंने 1986-87 में इंग्लैंड को एशेज सीरीज जिताई, लेकिन पाकिस्तानी अंपायर शकूर राणा के साथ दुर्व्यवहार के आरोप में उन्हें 6 महीने के लिए कप्तानी छीनकर टीम से बाहर कर दिया गया. इस बीच उन पर बारमेड से रेप के प्रयास का आरोग लगा. नतीजतन टीम में वापसी खारिज हो गई. इससे निराश गैटिंग एक रिबैल टीम लेकर दक्षिण अफ्रीका चले गए, जहां क्रिकेट खेलना उस समय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की तरफ से प्रतिबंधित था. गैटिंग को रिबैलियन घोषित करते हुए उन पर बैन लगा दिया गया. इंग्लैंड के 1993 में भारत दौरे पर आने के समय उनकी टीम में वापसी हुई, लेकिन वे कभी पहले जैसे रंग में नहीं दिखाई दिए.

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