काकोरी के नायक जिनने लिखी इतिहास की अमर गाथा, पढ़िए क्या था उनका अंतिम वाक्य


9 अगस्त को काकोरी कांड ने देश में युवाओं के भीतर ऊर्जा का संचार कर दिया था. महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन को वापस लेने के बाद निराशा में डूबे भारतीयों के दिल में फिर से आंदोलन की चिंगारी जल उठी. आज़ादी के दीवाने जिनने काकोरी कांड से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नया अध्याय लिख गए . महज़ 4600 रुपए की लूट के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने 10 लाख रुपए खर्च कर दिए.  पूरे देश में अलग अलग जगहों पर गिरफ्तारी होने लगी.  इस कांड ने पहली बार अंग्रेज़ों को प्रत्यक्ष चुनौती दिया था.

काकोरी कांड मुकदमे में रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा सुनाई. शचीन्द्रनाथ सान्याल को कालेपानी की सजा सुनाई गई मन्मथनाथ गुप्त को 14 साल की सजा हुई. योगेशचंद्र चटर्जी, मुकंदीलाल जी, गोविन्द चरणकर, राजकुमार सिंह, रामकृष्ण खत्री को 10-10 साल की सजा हुई. विष्णुशरण दुब्लिश और सुरेशचंद्र भट्टाचार्य को सात और भूपेन्द्रनाथ, रामदुलारे त्रिवेदी और प्रेमकिशन खन्ना को पांच-पांच साल की सजा हुई.

काकोरी काण्ड की पहली फांसी 

17 दिसंबर 1927 को सबसे पहले गांडा जेल में राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को फांसी दी गई. फांसी के कुछ दिनों पहले एक पत्र में उन्होंने अपने मित्र को लिखा था, ‘मालूम होता है कि देश की बलिवेदी को हमारे रक्त की आवश्यता है. मृत्यु क्या है? जीवन की दूसरी दिशा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं. यदि यह सच है कि इतिहास पलटा खाया करता है तो मैं समझता हूं, हमारी मृत्यु व्यर्थ नहीं जाएगी, सबको अंतिम नमस्ते.’

दूसरी फांसी

19 दिसंबर, 1927 को पं. रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई. उन्होंने अपनी माँ को एक पत्र लिखकर देशवासियों के नाम संदेश भेजा और फांसी के तख्ते की ओर जाते हुए जोर- जोर से ‘भारत माता’ और ‘वंदेमातम्’ की जयकार करते रहे. फांसी के फंदे पर झूलने से पहले उन्होंने कहा –

मालिक तेरी रजा रहे और तू ही रहे,
बाकी न मैं रहूं, न मेरी आरजू रहे.
जब तक कि तन में जान, रगों में लहू रहे
तेरा हो जिक्र या, तेरी ही जुस्तजू रहे.

अंतिम वाक्य के रूप में फांसी के तख़्त पर पहुंचकर बिस्मिल ने कहा, ‘मैं ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूं.’ और फिर फांसी के तख्ते पर खड़े होकर प्रार्थना और मंत्र का जाप करके वे फंदे पर झूल गए. गोरखपुर की जनता ने उनके शव को लेकर आदर के साथ शहर में घुमाया. आज़ादी के इस दीवाने की अर्थी पर इत्र और फूल बरसाए.राम प्रसाद बिस्मिल ने जेल में रहते हुए ‘मेरा रंग दे बसंती चोला ‘ गीत भी लिखा जो आज भी देश भक्तों की जुबान पर है .

तीसरी फांसी 

ठाकुर रोशन सिंह काकोरी कांड के तीसरे शहीद थे, जिन्हें इलाहाबाद में फांसी दी गई. उन्होंने अपने मित्र को पत्र लिखते हुए कहा था, ‘हमारे शास्त्रों में लिखा है, जो आदमी धर्मयुद्ध में प्राण देता है, उसकी वही गति होती है जो जंगल में रहकर तपस्या करने वालों की.’

चौथी फांसी 

काकोरी कांड के चौथे शहीद अशफाक उल्ला खां थे. उन्हें फैजाबाद में फांसी दी गई. अशफाक कुरान शरीफ का बस्ता कंधे पर लटकाए हाजियों की भांति ‘लवेक’ कहते और कलाम पढ़ते फांसी के तख्ते पर गए. तख्ते को चूमा और उपस्थित जनता से कहा, ‘मेरे हाथ इंसानी खून से कभी नहीं रंगे, मेरे ऊपर जो इल्जाम लगाया गया, वह गलत है. खुदा के यहां मेरा इंसाफ होगा.’ और फंदे पर झूल गए. उनका अंतिम गीत था –

तंग आकर हम भी उनके जुल्म से बेदाद से
चल दिए सुए अदम जिंदाने फैजाबाद से
भले हीं इतिहासकारों ने स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में काकोरी कांड को तवज्जो नहीं दिया हो लेकिन , ये काकोरी कांड क्रांति की नई पटकथा का अध्याय लिखता है. ये कांड उद्घोषणा करता है कि ‘ युग बदला- बदला हिन्दुस्तान ‘

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!