किसान सभा ने सरकार से कहा – मक्का खरीदों, क्वारंटाइन केंद्रों की आड़ में भ्रष्टाचार बंद करो

अखिल भारतीय किसान सभा के आह्वान पर छत्तीसगढ़ किसान सभा के कार्यकर्ताओं ने आज भी गांव-गांव में ठेका खेती को कानूनी दर्जा देने और मंडी कानून व आवश्यक वस्तु अधिनियम को खत्म करने वाले अध्यादेशों की प्रतियां जलाई। किसान सभा ने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि किसानों को बर्बादी से बचाने के लिए पूरे राज्य में सोसाइटियों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मक्का की खरीदी करे और क्वारंटाइन केंद्रों की आड़ में हो रहे भ्रष्टाचार पर रोक लगाते हुए प्रवासी मजदूरों को पौष्टिक भोजन और बुनियादी मानवीय सुविधा उपलब्ध कराए।
आज यहां जारी एक बयान में छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने बताया कि पिछले दो दिनों में प्रदेश में बस्तर से लेकर सरगुजा तक सैकड़ों गांवों में केंद्र और राज्य सरकार की कृषि और किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित किये गए हैं। ये प्रदर्शन घरों के आंगन, गांव की गलियों, खेतों और मनरेगा स्थलों में फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए समूह बनाकर किये गए।

उन्होंने कहा कि तीन अध्यादेशों के जरिये कृषि क्षेत्र में जो परिवर्तन किए जा रहे हैं, वे खेती-किसानी को कॉर्पोरेट गुलामी की ओर ले जाने वाले हैं। इससे किसान समर्थन मूल्य तो दूर, लागत मूल्य से भी वंचित हो जाएंगे और धोखाधड़ी का शिकार होंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि इन अध्यादेशों के जरिये मोदी सरकार खेती-किसानी के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से पिंड छुड़ाना चाहती है। बिजली क्षेत्र का निजीकरण भी वह इसी उद्देश्य से कर रही है। इससे सीमांत और लघु किसान पूरी तरह से बर्बाद हो जाएंगे और देश में भूमिहीनता बढ़ेगी।
किसान सभा ने कांग्रेस सरकार द्वारा इस वर्ष किसानों का मक्का न खरीदे जाने की भी तीखी आलोचना की है। राज्य सरकार के इस कदम से किसान न्याय योजना ‘अन्याय योजना’ में बदल गई है और प्रदेश के किसानों को बाजार के भरोसे छोड़ने से उन्हें 1700 करोड़ रुपयों का नुकसान होने जा रहा है, जिससे किसानों की क्रय शक्ति में गिरावट आने से अर्थव्यवस्था में मांग की कमी आएगी।
किसान सभा नेताओं ने क्वारंटाइन केंद्रों की आड़ में सरकारी संरक्षण में भारी भ्रष्टाचार होने का भी आरोप लगाया तथा कहा कि इन केंद्रों में एक दर्जन से ज्यादा मौतें होना ही इन केंद्रों की बदहाली का प्रमाण है। उन्होंने मांग की कि इन केंद्रों में प्रवासी मजदूरों को पौष्टिक भोजन और मानवीय सुविधाएं दी जाएं और गांव वापसी पर हर मजदूर को एक स्वतंत्र परिवार मानकर राशन और मनरेगा में 200 दिनों का काम दिया जाएं। किसान सभा ने केंद्र सरकार से भी मांग की है कि हर ग्रामीण परिवार को अगले छह माह तक 10000 रुपयों की नगद मदद दी जाए।

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