May 27, 2020
कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा टिड्डी दल से बचाव हेतु एडवायजरी जारी
बलरामपुर/धीरेन्द्र कुमार द्विवेदी. आजकल कृषि से जुड़ी चर्चाओं में टिड्डी दल के द्वारा विभिन्न राज्यों में फसलों तथा वनस्पतियों को नुकसान की सूचनाएं प्राप्त हो रही है। हमारे देश में इस प्रकोप का प्रारंभ राजस्थान से हुआ तथा कीट दल द्वारा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र में फसलों को नुकसान पहुंचाते हुये छत्तीसगढ़ राज्य की ओर बढ़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है। जिले के कृषकों द्वारा फसलों में सीमित मात्रा में इस कीट की संख्या देखी है। टिड्डी दल मध्यप्रदेश के मालवा, निमाड़ की फसलों को क्षति पहुंचाते हुए सिंगरौली जिले की ओर बढ़ी है तथा बलरामपुर-रामानुजगंज में टिड्डी दल पहुंचने की आशंका व्यक्त की जा रही है। कृषि विज्ञान केन्द्र बलरामपुर द्वारा टिड्डी दल के विषय में जानकारी देते हुए बताया गया है कि वर्तमान में जो टिड्डी दल सक्रिय हैं, उसमें लाखों की संख्या में यह कीट एक साथ विचरण कर रहे हैं तथा जहां इनका आक्रमण होता है, उस स्थान की सम्पूर्ण वनस्पति जैसे खड़ी फसल, वृक्ष की पत्तियां, छाल आदि को खाकर बड़ी मात्रा में क्षति पहुंचाती है। इस कीट के रोकथाम के लिए कृषकों को सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। जिस जगह पर इस कीट का आगमन हो उस स्थान में कृषकों द्वारा खेतों में तालियां, ढोल, खाली टीन के डिब्बे बजाकर तेज ध्वनि की जाए, जिससे यह कीट फसलों पर नहीं बैठ पायेगा। इस कीट के प्रभावी नियंत्रण हेतु सतत् निगरानी तथा सामूहिक प्रयास से ही सफलता मिल सकती है। सामूहिक प्रयास का यह अर्थ नहीं है कि लोग एक स्थान पर एकत्र होकर तालियां, ढोल बजाएं। कोरोना वायरस के प्रभाव को देखते हुए लोग सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करें। टिड्डी दल प्रायः शाम 6 बजे से रात्रि 8 बजे के मध्य फसलों तथा वनस्पतियों पर बैठता है तथा प्रातः उड़कर अन्य स्थानों में चला जाता है, इस विश्राम अवधि के दौरान यह अत्यधिक मात्रा में फसलों तथा वनस्पतियों को नुकसान पहुंचाता है। फसलों पर इन कीटों का प्रकोप होने पर रासायनिक कीटनाशी फेनीट्रोथीयोन 50 ई.सी. अथवा क्वीनालफॉस 25 ई.सी. की 1 लीटर दवा को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टर के हिसाब से छिड़काव करें। इसके अतिरिक्त नीम युक्त कीटनाशी की 20-40 मिली मात्रा का 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से टिड्डीयां फसलों को नहीं खाती है। फसल कटाई उपरांत खेतों में गहरी जुताई करें, जिससे इनके अंडे नष्ट हो जायेंगे। इसके साथ ही कृषकों से यह अपील की जाती है कि इस कीट का प्रकोप होने की दशा में तत्काल इसकी सूचना कृषि विज्ञान केन्द्र अथवा कृषि विभाग के अधिकारियों को उपलब्ध करायें।