चीन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के लिहाज से अगले 28 दिन बेहद खास, ये है वजह


नई दिल्ली. सेनाध्यक्ष मनोज मुकुंद नरवणे (Manoj Mukund Naravane) ने चीन (China) के साथ तनाव की चरम स्थिति में लद्दाख (Ladakh) का दो दिन का दौरा किया. इस दौरान कार्रवाइयों की समीक्षा के साथ सबसे अहम मुद्दा एक महीने बाद शुरू होने वाली सर्दियों की तैयारी थी. अगले चार हफ्ते सैनिक कार्रवाई के लिहाज से भी सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं. चीन को अगर भारतीय सैनिकों को पीछे हटाना है तो इसके लिए यही समय उसे मिल पाएगा. क्योंकि सर्दियों में कोई भी कार्रवाई बहुत मुश्किल होगी और उसके बाद अगले साल तक भारतीय सैनिक जहां पर हैं वहीं से लाइन ऑफ कंट्रोल मानी जाएगी.

सूत्रों के मुताबिक लेह के आसपास 20 हजार तक सैनिकों को सर्दियों में रहने की व्यवस्था की जा रही है. ये सैनिक वो भी होंगे जिन्हें पहले से तैनात सैनिकों की जगह लेने के लिए लाया जाएगा और वो भी जिन्हें आराम या इलाज के लिए आगे की तैनाती से पीछे लाया जाएगा.

सर्दियों में चुशूल का तापमान शून्य से 30 डिग्री तक गिरने की संभावना होती है और उसके आगे पहाड़ियों पर तो तापमान इससे भी कम हो जाता है. पिछले साल तक इन पहाड़ियों पर सैनिकों की तैनाती नहीं होती थी लेकिन इस साल पूरी सर्दी इनकी तैनाती की संभावना है. ऐसे में सैनिकों को समय-समय पर आराम देना और ताजादम सैनिकों को तैनात करने की प्रक्रिया चलती रहेगी. लेह जैसी जगहों पर बड़ी तादाद में सैनिकों को हर समय अच्छे हालात में रखकर तैयार रखना इसी कार्रवाई करने के लिए जरूरी कदम है.

इस समय लद्दाख में पिछले साल से चार गुना ज्यादा सैनिक तैनात हैं और उन्हें शून्य से 40 डिग्री नीचे तक के तापमान में सुरक्षित रखना सबसे बड़ी चुनौती है. इसके लिए लेह के आसपास लगभग 20 हजार सैनिकों के रहने की व्यवस्था की जा रही है. लद्दाख में मध्य सितंबर तक पहली बर्फबारी शुरू हो जाती है जो अगले 7-8 महीने तक जारी रहती है. ऐसे में भीषण ठंड से सैनिकों को सुरक्षित रखना और सप्लाई लाइन चालू रखना सबसे बड़ा काम होता है.

अगला एक महीना सैनिक कार्रवाइयों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी समय चीन की तरफ से हमले होने की सबसे ज्यादा आशंका है. अभी भारतीय सैनिक ऊंचाइयों पर तैनात हैं लेकिन कुछ दिन बाद उन ऊंचाइयों पर इतने ज्यादा सैनिकों की तैनाती मुश्किल होती जाएगी.

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