जग की आस, सुबह का तारा, अमर रहे यह गणतंत्र हमारा
वर्धा. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में मां भारती के अमर पुत्र नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पराक्रम दिवस के रूप मनाई गई एवं इस अवसर पर विश्वविद्यालय द्वारा काव्य संध्या का आयोजन कर उन्हें काव्यांजलि समर्पित की गई।
कविता पाठ की शुरुआत श्री योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरूण’ द्वारा नेताजी के पुण्य स्मरण से हुई :
“गीत गाता हूं आज उनके लिए,
जो जिए भी, मरे भी, वतन के लिए।
अश्रु छलके भी आज उनके लिए,
जो जिए भी, मरे भी, वतन के लिए।”
श्री रासबिहारी पांडेय, (मुंबई) ने सुनाया ;
“आंखों में है पानी, मगर अभिमान कर रहे हैं,
यूं किस दिशा में आखिर, प्रस्थान कर रहे हैं!”
श्रीमती मधु शुक्ला, भोपाल ने सुनाया ;
“युगों-युगों तक दोहराएगा, जिनका अखिल इतिहास,
सदियों-सदियों में जन्मा करता है, एक वीर सुभाष ।”
काव्यांजलि को आगे बढ़ाते हुए कोलकाता के कवि श्री प्रेम शंकर त्रिपाठी ने वीर रस में आबद्ध हो ‘सिंह-गर्जना’ करते हुए कहा-
“मां भारती की ‘आजादी’ के लिए…;
चाह बुद्ध की नहीं, युद्धघोष चाहिए।”
विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस के महासचिव श्री विनोद मिश्र जी, ने नेताजी को “युगद्रष्टा” महामानव की संज्ञा देते हुए कहा-
“ध्वंस के आगे चलो, निर्माण की बातें करें !
‘जंग-ए-आज़ादी’ जिसने लड़ी थी ताउम्र ;
आओ ! हम-सब मिलकर उन्हें याद करें ।”
कानपुर की ऐतिहासिक धरती से अनेकों किंवदन्तियां जुड़ी हुईं हैं- कभी सुभाष बाबू यहां भी रहा करते थे ! वहीं के श्री ‘विनोद श्रीवास्तव’ जी की पंक्तियां थीं-
“तोड़ दी गई पतवार
और कहा गया कि
धार में नाव उतार,
हमने भी किया नहीं,
अंततः बचाव……..।”
काव्यांजलि को पूर्णता प्रदान करते डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र जी ने नेताजी को ‘राष्ट्रीय विचारों का प्रतीक पुरुष’ बताते हुए अत्यंत ‘कृतज्ञतापूर्वक’ उनके ‘अवदान’ को सराहा :
“जाने कितनी बार आंधियां आयी हैं,
जाने कितनी बार लड़े हैं तूफानों से!
हमने ‘जान हथेली पर रखकर’ अपने,
उद्यम का इतिहास लिखा बलिदानों से।”
पुनः उन्होंने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ से प्रेरित होकर ‘राष्ट्रीय चेतना’ के प्रति जनता की सजगता हेतु कहा :
“दिन में तपना ‘दिनकर’ जैसा,
रातों में है मशाल-सा जलना।
हमसे भी सब कुछ संभव है,
कुछ भी नहीं असंभव हमसे।”
उन्होंने यह गीत भी गाया :
“अमर रहे यह ‘गणतंत्र’ हमारा,
जग की आस, सुबह का तारा,
अमर रहे यह ‘गणतंत्र’ हमारा।”
विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य श्री अनिर्वाण घोष ने बलाईचंद मुखोपाध्याय “बनफूल” द्वारा नेताजी पर लिखी बांग्ला कविता का आनलाइन पाठ किया जिसका कृपाशंकर चौबे जी ने हिंदी में अनुवाद कर सुनाया :
“कहीं नहीं गए तुम, तुम हमारे हृदय में हो !
सत्य, शिव, सुंदर, सबमें रचे-बसे हो तुम !!”
काव्यांजलि समारोह की ‘पूर्णाहुति’ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल जी के काव्य पाठ से हुई; उन्होंने अपनी कई ऐतिहासिक-संबद्ध कविताओं का सस्वर पाठ कर युगद्रष्टा महामानव को यथेष्ठ काव्यांजलि अर्पित की।
- अंधेरा नहीं जीतता है…..
किसने कहा कभी सूरज डूबने से अंधेरा हुआ है ?
अंधेरा तब हुआ है, जब किसी ने दिया बुझाया है !
उन्होंने यह भी सुनाया :
- तथागत को नमन है…नमन है,नमन है…
चल पड़ा तोड़कर बंधनों को, रज्जुओं को….
- धुआं ! केवल धुआं । सबकुछ धुआं-धुआं…
- प्रो.शुक्ल की यह काव्य पंक्ति भी देखें :
आओ हम फिर एक नया इतिहास बनाते हैं….;
हमें अपने बाजुओं पर है भरोसा व अभिमान !
इंद्र को जीतती आयी, इस देश की जवानी है ।
सतपथ के सेनानियों से, हुई कब जग-हंसाई है ?
मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्ठाता तथा जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो. कृपाशंकर चौबे जी ने देश और विदेश से आनलाइन सहभागिता कर रहे आमंत्रित कवियों का आदरपूर्वक स्वागत व अभिनंदन करते हुए मृदुल भाव से शानदार मंच संचालन किया।
अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के सहायक आचार्य डॉ. ज्योतिष पायेंड ने धन्यवाद ज्ञापित किया।