जन्म के समय हो ऐसी स्थितियां तो बढ़ जाते हैं अंधेपन के चांस

छोटे बच्चों में अंधेपन की बड़ी वजह है यह मेडिकल प्रॉसेस। पैरंट्स में भी जागरूकता है जरूरी…

कुछ बच्चों का जन्म गर्भावस्था के 9 महीने पूरे होने से पहले ही हो जाता है। ऐसे सभी मामलों में इनके कारण अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन समय से पहले जन्म होने के कारण ऐसे बच्चों का वजन कम होता है और आंखों का रेटिना पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता है। कम वजन और पूरा समय गर्भ के अंदर ना बिता पाने के कारण, इस तरह के बच्चों का जीवन बचाने के लिए कई मेडिकल प्रॉसेस की जाती हैं। इन्हीं में कुछ ऐसी प्रक्रियाएं भी होती है, जो इन प्रीमेच्योर बेबीज के अविकसित रेटिना को सपॉर्ट नहीं कर पातीं। इस स्थिति बच्चे की आंखों में देखने की क्षमता नहीं आ पाती और उसमें अंधेपन का खतरा बढ़ जाता है…

यह होती है Retinopathy of prematurity (ROP) की स्थिति

– गर्भावस्था का समय पूरा होने से पहले जन्म लेनेवाले ज्यादातर बच्चे इस बीमारी से ग्रसित होते हैं। दरअसल, बच्चा जब गर्भ में होता है तो उस दौरान गर्भावस्था के 20 से 40 हफ्ते के बीच बच्चे की आंख में रेटिना पूरी तरह विकसित होने की प्रक्रिया चलती है। लेकिन अगर बच्चे का जन्म 28वें हफ्ते में ही हो जाता है तो इस स्थिति में उसकी आंखों में रोशनी ना आने का खतरा बढ़ जाता है।

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छोटे बच्चों में बढ़ते अंधेपन की वजह

-बच्चे की आंखों में रेटिना और रोशनी संबंधी कोई दिक्कत हो सकती है, इसे जानने के लिए दो चीजों पर ध्यान देना बहुत जरूरी एक बच्चे का जन्म कितने सप्ताह में हुआ है और दूसरी बात यह कि बच्चे का वजन कितना है। क्योंकि जो बच्चे समय पूर्व जन्म लेते हैं, उनमें वजन कम होता ही है। साथ ही रक्त वाहिका (Blood vessel) पूरी तरह ना बन पाने के कारण रक्त संचार बाधित होता है।

जान बच जाती है आंखों की रोशनी नहीं
-जब बच्चा गर्भ में होता है तो रेटिना सेंकड से थ्रर्ड ट्राइमेस्टर के बीच बनता है। पहले यानी करीब 15 से 20 साल पहले वक्त से पहले जन्म लेनेवाले बच्चों को बचा पाना मुश्किल होता था क्योंकि तकनीक इतनी विकसित नहीं थी। लेकिन आज प्रीमेच्योर बच्चे की लाइफ सेव कर पाना अधिक आसान है। ऐसे में बच्चे की लाइफ तो हम बचा पाते हैं लेकिन ज्यादातर केसेज में उसकी आंखों की रोशनी नहीं बचा पाते। इससे भी बच्चों में अंधापन बढ़ रहा है।

प्रीमेच्योर बर्थ के कारण
-गर्भावस्था का समय पूरा होने से पहले जन्म लेनेवाले बच्चों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। इसकी कई वजहों में मुख्य कारण प्रेग्नेंसी के दौरान महिला की हेल्थ, प्रेग्नेंट महिला को मिलनेवाली केयर और अधिक उम्र में आईवीएफ के जरिए प्रेग्नेंसी भी हैं।

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जन्म के समय बच्चे की आंखों में खराबी होना

-प्रीमेच्योर बर्थ के बाद बच्चे के जीवन को बचाने के लिए उसे ऑक्सीजन दिया जाता है। क्योंकि उस दौरान उसके लंग्स भी पूरी तरह विकसित और फ्लैग्जिबल नहीं होते, इस कारण उसे ऑक्सिजन की मात्रा अधिक दी जाती है ताकि सांस लेने में सपॉर्ट मिलता रहे। ऑक्सीजन की यही मात्रा अगर तय यूनिट से ज्यादा हो जाती है तो ROP का खतरा बहुत अधिक बढ़ जाता है।

बच्चे को अंधेपन से बचाया जा सकता है
-अगर बच्चे को ऑक्सीजन एक तय मात्रा में दी जाए तो बच्चे को अंधेपन से बचाया जा सकता है। यह बात आपको हैरान जरूर कर सकती है लेकिन मेडिकल की दुनिया ऐसी चीजों से भरी हुई है, जो किसी आम इंसान को हैरान कर दें। बच्चे को सही मात्रा में ऑक्सिजन देने का काम Neonatal Practitioner बहुत अच्छे तरीके से कर सकते हैं। इसके साथ ही बच्चे की ROP Screening भी की जानी चाहिए।

इतने दिन में ध्यान देना है जरूरी

-प्रीमेच्योर बर्थ के बाद 30 दिन के अंदर बच्चे की ROP Screening यानी उसकी आंखों की जांच होनी चाहिए। बच्चे के जन्म के तुरंत बाद डॉक्टर्स की प्राथमिकता उसकी जान बचाना होती है। साथ ही बच्चे की आंखें बाहर से ठीक दिख रही होती हैं। ऐसे में पैरंट्स को कुछ ही दिनों के अंदर अपने बच्चे के डॉक्टर से उसकी आंखों की जांच के बारे में बात करनी चाहिए।

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