नेपाल सरकार ने सीमा मसले पर गंभीरता नहीं दिखाई, सीमित राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाया : भारत


नई दिल्ली. नेपाल के निचले सदन में विवादित मानचित्र संशोधन विधेयक पास हो गया. इस विवादित मानचित्र में नेपाल ने भारत के लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को भी शामिल किया है. इसके बाद उच्च सदन से पास होने और फिर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद यह विधेयक कानून का रूप ले लेगा. नेपाल की इस हरकत पर भारतीय सरकार ने कहा है कि नेपाली सरकार ने निचले सदन में ये संवैधानिक संशोधन विधेयक पास करके सीमा मुद्दे का राजनीतिकरण किया है.  भारत सरकार के सूत्रों ने कहा कि बातचीत से मामले को सुलझाने के लिहाज से नेपाल सरकार ने जरा भी गंभीरता नहीं दिखाई बल्कि सीमित राजनीतिक एजेंडे के तहत अदूरदर्शी कदम उठाया. भारत ने हमेशा राजनयिक संवाद के माध्यम से सीमा मुद्दे के समाधान पर जोर दिया है. सूत्रों ने बताया कि भारत ने नेपाली पक्ष को सकारात्मक जवाब दिया और वार्ता को अनुकूल वातावरण और पारस्परिक रूप से सुविधाजनक तारीख पर आयोजित करने की इच्छा जताई थी. सरकार के सूत्रों ने कहा कि नेपाल सरकार ने संवैधानिक संशोधन को पारित कराने में जल्दबाजी की है, नेपाल के पास अपना दावा मजबूत करने के लिए कोई ऐतिहासिक तथ्य या सबूत नहीं है. विदेश मंत्रालय ने नेपाली संसद में हुए घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा- ‘यह कृत्रिम विस्तार सबूतों व ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है. यह किसी भी हाल में मान्य नहीं है. यह लंबित सीमा मुद्दों का बातचीत के जरिए समाधान निकालने की हमारी वर्तमान समझ का भी उल्लंघन है.’

सुगौली की संधि
नेपाल में ब्रिटिश राज और तत्कालीन रॉयल सरकार के बीच सुगौली की 1815 संधि का उल्लेख करते हुए सूत्रों ने कहा कि नेपाल ने संधि के अनुच्छेद V के तहत काली नदी के पश्चिम में स्थित सभी दावों का त्याग कर दिया. सुगौली की संधि ने नेपाल की वर्तमान सीमाएं बनाईं और उसके अनुसार पूर्व में नेपाल के साथ भारत की सीमा काली नदी के प्रवाह के अनुसार चलती है.

जबकि 1817 में, नेपाल ने इस क्षेत्र पर दावा किया और टिंकर, छंगरु, नाभि और कुथि गांवों की वापस मांगा, पहले 2 वापस कर दिया गया क्योंकि ये काली नदी के पूर्व में थे. लेकिन नबी और कुथी के मामले पर भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल ने इस पर नेपाल के दावे को खारिज कर दिया था.

सूत्रों ने बताया कि नेपाली सरकार के वर्तमान दावे उसकी हस्ताक्षरित सीमा संधि और प्रोटोकॉल के विपरीत हैं. गौरतलब है कि भारत के रक्षा मंत्री द्वारा लिपुलेख तक एक सड़क का उद्घाटन करने के बाद तनाव पैदा हुआ, जिसे नेपाल अपना क्षेत्र कहता है. इसके बाद नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने नेपाल में भारतीय दूत विनय मोहन क्वात्रा और नेपाली विदेश मंत्री और सत्तारूढ़ पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक में भारत द्वारा बनाई गई नई सड़क का विरोध किया था. इसके बाद भारत ने भी कड़ा विरोध किया और काठमांडू को याद दिलाया कि यह भारतीय क्षेत्र है.

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