नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली, जैसा है पटवारियों का हड़ताल

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बिलासपुर. अपनी मांगों को लेकर जिले के राजस्व पटवारी संघ द्वारा अनिश्चित कालीन हड़ताल किया जा रहा है। लेकिन कानून के जानकार पटवारियों के हड़ताल को अवैधानिक करार दे रहे हैं। ठीक धान खरीदी के समय पटवारियों ने जो हड़ताल का खेल खेला है उसकी हकीकत कुछ और ही कहती है। बी-1 में फर्जीवाड़ा का ये आलम है कि जिस किसान ने धाना लगाया है उसमें मक्का और सोयाबिन की फसल दर्ज की गई है। रिकार्ड में हेरफेर करने वाले पटवारियों के विरूद्ध आठ वर्ष पूर्व तत्कालीन राजस्व मंत्री ने एफआईआर के आदेश भी दिये थे। लागान वसूली और कृषि भूमियों के रिकार्ड अपडेट रखने के लिए जिन पटवारियों की नियुक्ति की गई थी वे नक्शे में हेरफेर खसरे में कूटरचना और नामों में त्रुटी बताकर भोलेभाले लोगों को जमकर लूटने का काम कर रहे हैं। पटवारियों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार को रोकने के लिए राज्य सरकार को संविदा कर्मचारियों की तरह योग्य और अनुभवी लोगों की भर्ती करने की जरूरत है। तीन साल तक एक ही जगह में जमे पटवारियों को अन्य जिलों में भेजने की भी सख्त जरूरत है।

पटवारियों के संरक्षण में बिलासपुर सहित पूरे प्रदेश में अवैध प्लाटिंग का कालाकारोबार चल रहा है। क्या पटवारियों को ले-आउट व उसके नियमों की जानकारी नहीं है? अवैध प्लाटिंग के लिए टूकड़ो-टुकड़ों में भूमि के दस्तावेज जारी करने वाले पटवारियों के खिलाफ अब तक शासन ने धोखाधड़ी का मामला क्यों दर्ज नहीं किया है? एक अवैध प्लाट काटने के एवज में पटवारी को 20 से 50 हजार तक मुनाफा होता है। लिंगियाडीह के खसरा नंबर 15 में अविश्वनीय तरीके से अब तक डेढ़ हजार टुकड़े किए जा चुके है आज तक किसी खसरे की जमीनों को इस तरह से टुकड़ो-टुकड़ों में करने का मामला दूनिया के किसी भी देश में दर्ज नहीं किया गया है। लिंगियाडीह के खसरा नगर 09,11,54,67 में सभी नियमों को पटवारियों ने दर किनार कर दिया। जिसके चलते शासन को स्टांप ड्यूटी के माध्यम से मिलने वाले करोड़ों की राशि से वंचित होना पड़ा।

इसी तरह दस्तावेज में छेड़छाड़ करते हुए ग्राम तालापारा के पटवारी ने जमीनों दलालों और रसूखदार नेताओं को फायदा पहुंचाने के लिए आदिवासी भूमि को गैर आदिवासियों को गैर कानूनी से बेच दिया गया। मामले की पोल खुलने की डर से 2003-2008 तक खसरा पांचसाला से मूल रजिस्टर को कार्यालय से ही गायब कर दिया गया। रिकार्ड में दर्ज आदिवासियों की देव स्थल की भूमियों को प्राइवेट बिल्डर के नाम चढ़ा दिया गया। शहर की 90 प्रतिशत भूमि जनजाति, अनुसूचित जनजाति तथा गरीब पिछड़े तबके के नाम पर होने के बाद भी आज इस समाज के किसी भी व्यक्ति के नाम पर न तो कोई कालोनी है और उनके नाम से रिकार्ड में कोई भूमि शेष है।

मस्तूरी-गतौरा, भदौरा, सोठी, नरगोड़ा में छोटे झाड़ की जंगल वन भूमि को भी नहीं छोड़ा गया। नरगोड़ा में पदस्थ नामदेव पटवारी, ग्राम सोठी के पटवारी रामफल वस्त्रकार, भदौरा के पटवारी राकेश वर्मा ने सरकारी भूमि से लेकर शमशान की भूमि तक को बेचवा दिया है। शहर के मामा-भांजा तालाब, अशोक नगर बिजली आफिस के पास स्थित तालाब की ब्रिकी पटवारियों की काली करतूत का नतीजा है। सड़क, तालाब नाले की जमीनों को बेच दिया गया है, अब वह दिन दूर नहीं जब जमीन चरने वाले सरकारी कीड़े शहर की अरपा नदी को नक्शे में 10 फिट का नाला दर्शा दे?

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