पांच माह के दुधमुहे बच्चे को अपोलो में मिला नया जीवन


बिलासपुर. अपोलो हॉस्पिटल बिलासपुर ने एक बार पुनः उच्चतम चिकित्सकीय प्रतिमान स्थापित करते हुए पांच माह के बच्चे को नया जीवन दिया। पांच माह का बेबी ऑफ सुनीता जो कि कोविड-19 संक्रमित हो चुका था एवं वह इंटसससेप्शन नामक समस्या से भी ग्रसित हो गया था। सामान्य शब्दों में इंटसससेप्शन आंतों की एक ऐसी स्थिति जो दो आंतों के एक दूसरे में फंसने के कारण होती है तो कि एक गंभीर स्थिति है तथा आईसीयू में रखने की आवश्यकता होती है। डॉ. सुशील कुमार वरि. शिशु रोग विशेषज्ञ, अपोलो हॉस्पिटल बिलासपुर ने बताया कि बच्चे को बुखार के साथ या दो तीन दिनों से हरा पीले दस्त हो रहे थे, काफी विचार विमर्श के उपरांत बच्चे का कोविड-19 टेस्ट कराया गया जिसमे वह संक्रमित पाया गया। उन्होंने बताया कि कोरोना के पेट संबंधित लक्षणों में डायरिया व उल्टी ही प्रमुख है। वायरस ग्रसित पेट संबंधित समस्या में आतों एक दुसरे मे फंस जाना एक गंभीर समस्या है, ऐसे में बच्चे के कोरोना संक्रमित होने पर उसके लिये अस्पताल प्रबंधक ने तत्काल ही नवजात आईसीयू में एक आईसोलेशन कक्ष का निर्माण कर बच्चे का उपचार आरंभ किया गया एवं विचार विमर्श के उपरांत बच्चे की आंतों की शल्य चिकित्सा कर उन्हें अलग करने का निर्णय लिया गया। इसके उपरांत पीडियाटिक शल्यचिकित्सक डॉ. अनुराग कुमार ने निश्चेतक विभाग की वरि. सलाहकार डॉ. रसिका कनस्कर के सहयोग से बच्चे की शल्यक्रिया संपन्न की। डॉ. अनुराग कुमार, ने अपने के इस तरह की सर्जरी के प्रकरणों मे यह पहला प्रकरण था, जो कि कोरोना संक्रमित था, अतः पूरी सावधानी के साथ यह शल्य चिकित्सा की गयी ताकि टीम का कोई भी सदस्य संक्रमित न हो। निश्चेतक विभाग की डॉ. कनस्कर ने बताया कि बच्चे को बेहोशी की दवा देना एक चुनौती पूर्ण कार्य था, जिसमे इस बात का ध्यान भी रखना था कि शल्यक्रिया में लगी टीम को कोविड का संक्रमण न लग पाये परन्तु अंततः सब कुछ ठीक हुआ और आज बच्चा स्वस्थ्य होकर अपने परिवार के साथ घर जा रहा है। डॉ. दीपज्योति दास संस्था प्रमुख अपोलो ने बताया कि इसमें छोटे बच्चें में कोविड संक्रमण के साथ यह पहला प्रकरण है। जिसमे अपोलो ने चिकित्यकिय प्रतिमान स्थापित किये है।अत्यधिक कम समय में नवजात कोरोना आईसीयू पृथक आवागमन के साथ बनाना अपने आप में एक बड़ा काम था जिसे इंजीनयरिंग व हाउसकीपिंग व सभी विभागों ने मिलकर पूरा किया जिसमें उपचार की प्रकिया आगे बढ़ पायी। साथ ही उन्होनें नर्सिंग टीम, चिकित्सकों व सभी विभागों के सम्मलित प्रयास की बात बताई । उन्होनें बताया कि केवल पांच माह के बच्चे की 10 दिनों तक उसकी मां से अलग रखना काफी कठिन था। परन्तु नर्सिंग टीम के सदस्यों ने बच्चे की इस तरह रखा कि बच्चे को किसी भी प्रकार से कोई परेशानी नहीं हुई ।

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