प्रधानमंत्री के मन की बात पर उत्साहित हुए छत्तीसगढ़ के पारंपरिक वैद्य


बिलासपुर.रविवार को प्रसारित मन की बात में कोरोना वायरस महामारी से लड़ने में आयुर्वेद की भूमिका की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सराहना किए जाने का परंपरागत वैद्यों ने स्वागत किया है। परंपरागत वैद्य संघ, भारत के राष्ट्रीय महासचिव वैद्य निर्मल अवस्थी ने कहा कि आयुर्वेद भारत की लोक स्वास्थ्य परंपरा को प्रमाणित करता है अब, जबकि कोरोना महामारी की रोकथाम में प्रधानमंत्री ने आयुर्वेद की भूमिका की सराहना की, यह हमारे लिए गौरव की बात है और इस संघ से देशभर से जुड़े 2,30000 परंपरागत वैद्य इसका स्वागत करते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में आयुर्वेद पर बहुत सारे ग्रंथ लिखे गए जो सैद्धांतिक और शास्त्र सम्मत हैं, लेकिन आज के युग में इसे वैश्विक स्तर पर लाने के लिए वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित करने की जरूरत है और इस बात का जिक्र प्रधानमंत्री ने भी अपनी मन की बात में किया है।  तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री के विचारों को सुनकर लगता है कि सरकार आयुर्वेद के क्षेत्र में अनुसंधान पर बजटीय आबंटन बढ़ाएगी। वर्तमान में जहां स्वास्थ्य क्षेत्र का करीब 97 प्रतिशत बजट अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति (ऐलोपैथी) को आबंटित किया जाता है, वहीं आयुर्वेद सहित पूरे आयुष को महज तीन प्रतिशत बजट मिलता है। वहीं वैद्य निर्मल अवस्थी ने प्रधानमंत्री को 17 अप्रैल को लिखे पत्र में इस बात का उल्लेख किया था कि भारत की रत्नगर्भा में लगभग आठ हजार औषधीय पौधों की पहचान एवं उपयोगिता सिद्ध हो चुकी है और इन पौधों से पारंपरिक वैद्य उपचार कर रहे हैं। पूरे भारत में लगभग एक लाख पारंपरिक वैद्य हैं जिनकी उपयोगिता आयुष विभाग की विभिन्न योजनाओं के तहत सिद्ध की जा सकती है। अवस्थी ने इस मामले में चीन का उदाहरण देते हुए कहा कि उसने दुनिया के सामने ग्रंथ प्रस्तुत नहीं किया, बल्कि ज्ञान प्रस्तुत किया, जबकि भारत में ग्रंथ को सामने लाया गया। उन्होंने कहा कि आज जो भी औषधियां सिद्ध हैं उन्हें वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित करने की जरूरत है। विश्व आयुर्वेद मिशन के अध्यक्ष प्रोफेसर जी.एस. तोमर ने “मन की बात” में आयुर्वेद को लेकर प्रधानमंत्री के विचारों का स्वागत करते हुए कहा, “जब तक हम आयुर्वेदिक औषधियों को वैज्ञानिक मापदंड पर प्रमाणित नहीं करते, तब तक विश्व के लोगों को आयुर्वेद की ताकत का एहसास नहीं होगा।” उन्होंने कहा कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को पुरातन मापदंडों पर आंका गया है और सारे सिद्धांतों का परीक्षण, शोध, भाषा परिषद में इस पर चर्चा के बाद एक मत होने के बाद ही इसे प्रमाणित किया गया है। हालांकि आज के इस वैज्ञानिक युग में इसका वैज्ञानिक ढंग से प्रमाणन जरूरी है।

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