प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी ठहराए जाने पर ‘बुद्धिजीवी’ हुए सक्रिय
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) की ओर से अवमानना के मामले में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण (Prashant bhushan) को दोषी ठहराए जाते ही देश के ‘बुद्धिजीवी’ (Intellectual) एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के 13 पूर्व जजों समेत करीब 200 बुद्धिजीवियों ने बयान जारी कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असहमति जताई है. बुद्धिजीवियों ने कहा कि प्रशांत भूषण ने ऐसा कुछ नहीं कहा, जो पब्लिक डोमेन में पहले से मौजूद न हों. आशंका जताई कि यदि प्रशांत भूषण को सजा हुई तो इससे देश में अभिव्यक्ति की आजादी खतरा बढ़ जाएगा.
बयान जारी करने वालों में सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज रूमा पाल, बी सुदर्शन रेड्डी, जी एस सिंघवी, आफताब आलम, मदन बी लोकुर, गोपाल गौड़ा, हाईकोर्ट के जज एपी शाह, एनके सोढ़ी, अंजना प्रकाश, जस्टिस चंद्रू, जस्टिस कन्नन, वीएस दवे शामिल रहे। इनके अलावा सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे, वरिष्ठ वकील राजू रामचन्द्रन, कामिनी जायसवाल, वृंदा ग्रोवर, अरविंद दातार, संजय हेगड़े, शेखर नाफडे, ललित भसीन समेत सुप्रीम कोर्ट के 41 वकीलों ने भी खुले पत्र पर हस्ताक्षर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ऐतराज जताया.
बुद्धिजीवियों ने अपने बयान में प्रशांत भूषण के बयानों के प्रति जाहिर किया. कहा कि हाल ही के वर्षों में अदालत के कामकाज के बारे में सार्वजनिक मंचों और सोशल मीडिया पर काफी कुछ कहा गया है. प्रशांत भूषण के ट्वीट उनसे कुछ अलग नहीं है. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों भी इस तरह के विचार व्यक्त कर चुके हैं. बयान में कहा गया कि प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट के अच्छे वकील हैं. वे एक साधारण आदमी नहीं हो सकते हैं.
बयान में कहा गया है कि एक स्वतंत्र न्यायपालिका का मतलब यह नहीं है कि न्यायाधीश जांच और टिप्पणी से immune रह सकते है. यह वकीलों का कर्तव्य है कि वे स्वतंत्र रूप से किसी भी कमी को बार, बेंच और जनता के ध्यान में ला सकते हैं. बुद्धिजीवियों ने कहा कि संवैधानिक लोकतंत्र में ‘कानून’ शासन का आधार है. ऐसे में किसी एक पक्ष के प्रति संतुलन का झुकाव, संस्था और राष्ट्र दोनों के लिए हानिकारक हो सकता है.
बुद्धिजीवियों ने आशंका जताई कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला वकीलों को मुखर होने से हतोत्साहित करेगा. साथ ही अवमानना का खतरा न्यायालय की ताकत को कम कर देगा. बयान में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई कि अदालत इस मामले की सुनवाई को फिलहाल टाल दे और जब सामान्य रूप से सुनवाई शुरू हो. तभी इस मामले को सुना जाए. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य जजों पर टिप्पणी के आरोप में सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को दोषी ठहराया है. सुप्रीम कोर्ट उनकी सजा पर 20 अगस्त को सुनवाई करेगा.