मध्य भारत के कृषकों के लिए नई किस्म की गेंहू का किया गया उत्पादन


बिलासपुर. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय अतंर्गत बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र सरकण्डा बिलासपुर में गेहूं की नई किस्म सीजी-1029 का विकास किया गया है। यह पहला अवसर है जब मध्य भारत के राज्यों के गेहूं उत्पादक कृषकों को इस महाविद्यालय से गेहूं की नई किस्म प्राप्त होगी। इस महाविद्यालय में अखिल भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान परियोजना संचालित है। परियोजना द्वारा छत्तीसगढ़ के गेहूं उत्पादक कृषको के लिए छत्तीसगढ़ गेहूं-3, छत्तीसगढ़ गेहूं-4, छत्तीसगढ़ अंबर गेहूं एवं छत्तीसढ़ हंसा गेहूं विकसित किया जा चुका है। मध्य भारत अंतर्गत, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, गुजरात एवं राजस्थान के गेहूं उत्पादक कृषकों के लिये वर्तमान में सी.जी.-1029 (चपाती बनाने वाली) किस्म का विकास किया गया है, जिसमें एच.डब्लू 2004 एवं पी.एच.एस. 725 को पैतृक के रूप में उपयोग किया जा रहा है। इस किस्म का पिछले तीन वर्षाें में चार राज्यों के 39 अनुसंधान केन्द्रों में परीक्षण किया गया है। इस परीक्षण में सी.जी.-1029 की औसत उत्पादकता 52 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुई है एवं यह किस्म वर्तमान में देर से बोनी के लिए उपयोग किये जा रहे एच.डी.-2932, एम.पी.-3336 और एच.डी-2864 से 3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ज्यादा उत्पादन देती है। साधारणतः देर से बोनी करने पर 1000 दानों के वजन में गिरावट आती हैं और यह 40 ग्राम के आस-पास रह जाता है। देर से बुवाई परिस्थिति में भी सीजी-1029 किस्म में बहुत अधिक मोटा दाना बनता है एवं इस किस्म के 1000 दानों का वजन 47 ग्राम औसतन आता है। जो इसकी अधिक उत्पादकता का प्रमुख कारण है। इस किस्म में 12 प्रतिशत प्रोटीन है, 81.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टोलिटर वेट है आयरन 40.4 पी.पी.एम. है जो कि देर से बोनी हेतु अन्य प्रचलित किस्मों से अधिक है। यह किस्म अन्य किस्मों से जल्दी पकती है। उसका दाना अंबर रंग का चमकदार होता है। गेहंू के प्रमुख रोग जैसे काला रतवा व भुरा रतवा के प्रति वांछनीय सहन शीलता है। देर से बोनी करने पर भी अधिक उत्पादकता देने का प्रमुख कारण पुष्पन पश्चात् तापर सहनशीलता भी है। इस किस्म कि ताप सहनशीलता (टर्मिनल हीट टालरेंस) एक से कम होने के कारण यह किस्म मार्च-अप्रेल माह कि भीषण गर्मी में भी सहनशील है। इस किस्म के सभी अनुसंधान परिणाम प्राप्त हो चुका है, आने वाले समय में अखिल भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान परियोजना की वार्षिकी कार्यशाला (2020-21) में इस किस्म के सारे विवरण के साथ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के उपमहानिदेशक (फसल विज्ञान) के अध्यक्षता में होने वाली किस्म पहचान समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, तत्पश्चात भारत सरकार द्वारा इस किस्म के खेती कि अनुशंसा मध्य भारत क्षेत्र के राज्यों हेतु की जाएगी। इस परियोजना के प्रमुख अन्वेषक डाॅ. अजय प्रकाश अग्रवाल (प्रमुख वैज्ञानिक) पादप प्रजनन विभाग है। डाॅ. दिनेश पाण्डेय शस्य वैज्ञानिक श्रीमती माधुरी ग्रेस मिंज (तकनीकी सहायक) एवं डाॅ. डी.जे. शर्मा (वैज्ञानिक) पादप प्रजनन विभाग का इस कार्य मंे विशेष सहयोग रहा है।

वन अधिकार अधिनियम के तहत प्रशिक्षण संपन्न : वन अधिकार अधिनियम के तहत वन, राजस्व एवं अन्य मैदानी अमले के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को एक दिवसीय प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण में सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (सीएफआर) और सामुदायिक अधिकार (सीआर) की मान्यता के लिए अपनायी जाने वाली प्रक्रिया को प्रतिभागियों ने बारीकी से समझा। मंथन सभाकक्ष में आयोजित प्रशिक्षण में अतिरिक्त कलेक्टर श्री बी.एस. उईके ने प्रशिक्षण सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं परंपरागत वन निवासी को उनके अधिकार, स्वावलंबन एवं सम्मान दिलाने के लिए यह अधिनियम बनाया गया है। यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि वन अधिकार अधिनियम का लाभ वनवासियों को समुचित रूप से मिल सकें। उन्होंने कहा कि अधिनियम के तहत सभी प्रकरणों का निराकरण नियमानुसार किया जाए। सभी विभाग आपस में सामंजस्य बनाकर प्रकरणों का निपटारा करें। कोटा अनुविभाग के एस.डी.एम श्री आनंदरूप तिवारी ने वन अधिकार अधिनियम के संबंध में विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि वन अधिकार समिति के गठन के पूर्व ग्राम सभा का आयोजन किया जाएगा। मजरे टोले के लिए अलग से ग्राम सभा आयोजित की जाएगी। ग्राम सभा के उपरान्त ग्राम स्तर पर वन अधिकार समिति का गठन किया जाएगा। समिति में 10 से 15 सदस्य होंगे। इस समिति में गांव के निवासियों का प्रतिनिधित्व होगा। उन्होंने कहा कि अधिनियम का उददेश्य वन अधिकारों की मान्यता है।  बैठक में मस्तूरी एस.डी.एम श्रीमती मोनिका वर्मा, सभी जनपद पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारी, वन विभाग के अधिकारी एवं अन्य विभागीय अधिकारी उपस्थित थे।

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