मोदी सरकार चीनी सेनाओं द्वारा किए गए कृत्य के जवाबदेही से बचने का कर रही है प्रयास : भूपेश बघेल


रायपुर. भ्रमित मोदी सरकार चीनी सेनाओं द्वारा गलवान घाटी, पांगोंग त्सो झील क्षेत्र, हॉट स्प्रिंग्स और वाई-जंक्शन तक डेपसांग प्लेन में कब्जे और अतिक्रमण पर जवाबदेही से बचते हुए कतरा कर निकल रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्लज्जता से दिए बयान की चीन ने कभी भी भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ नहीं की है और न ही भारत के किसी क्षेत्र पर कब्जा किया है, से राष्ट्र गुमराह हुआ और चीन के कुटिल एजेंडे को भी ताकत मिली। यह राष्ट्र की सबसे बड़ी हानि है।

चीनी शत्रुता, हाल के वर्षों में अच्छी तरह सामने आई है, चाहे वह वर्ष 2013 में वाई-जंक्शन तक डेपसांग मैदानों पर कब्जा हो (जहाँ से उन्हें कांग्रेस/यूपीए ने एक लड़ाई के बाद पीछे धकेल दिया था), या 2014 में चूमर, लद्दाख में प्वाइंट 30 आर पोस्ट में हमारे क्षेत्र में चीनी सेना का कब्जा हो (जब मोदी जी अहमदाबाद में चीनी राष्ट्रपति के साथ झूला कूटनीति निभा रहे थे), या फिर 2017 में डोकलाम पठार पर चीन का कब्जा हो।

हर बार जब मोदी सरकार से गलवान घाटी, पांगोंग त्सो झील क्षेत्र, हॉट स्प्रिंग्स और डेपसांग प्लेन जैसे हमारे चार अलग-अलग क्षेत्र पर चीनी आक्रमण पर सवाल किया जाता है, तो एक गुमराह करने वाली मोदी सरकार और भ्रामक बीजेपी द्वारा विषयांतर करने और गलत जानकारी देने की रणनीति अपनाई जाती है। उन्हें यह बता दें कि कांग्रेस पार्टी राष्ट्रहित में इन सवालों को पूछती रहेगी। जैसा कि हम सभी जानते हैं चीन प्रधानमंत्री के लिए एक विशेष स्थान रखता है। यहां तक कि गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में, हमने उनकी चार चीनी यात्राओं में उनकी निकटता देखी है। वह एकमात्र प्रधानमंत्री हैं जो 5 बार चीन का दौरा कर चुके हैं।

प्रधानमंत्री मोदी को चीनी कंपनियों से उनके च्ड ब्ंतमे थ्नदक में प्राप्त दान जैसे तथ्य राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक है और परेशानी की बात है। किसी को नहीं पता कि यह कैसे नियंत्रित किया जाता है या इसमें दिए गए पैसे का कैसे उपयोग किया जा रहा है। ब्।ळ सहित किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा इस निधि का लेखा-जोखा भी नहीं किया जाता है। यह भी कह चुका है कि यह कोष एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है। कुल मिलाकर, यह निधि पूरी तरह से प्रधानमंत्री के हाथ में है और उनके विवेकानुसार अपारदर्शी और गुप्त फैशन में शून्य पारदर्शिता और शून्य जवाबदेही के साथ खर्च की जा रही है।

रिपोर्ट बताती है कि 20 मई, 2020 तक पीएम मोदी को इस विवादास्पद कोष में 9678 करोड़ रुपये मिले हैं। चैंकाने वाली बात यह है कि यद्यपि चीनी सेनाओं ने हमारे क्षेत्र में कब्जा कर लिया है, उसी समय प्रधान मंत्री को चीनी कंपनियों से फंड में पैसा मिला है। यदि भारत के प्रधान मंत्री विवादास्पद और अपारदर्शी कोष में चीनी कंपनियों से सैकड़ों करोड़ के दान को स्वीकार करके अपनी स्थिति से समझौता करेंगे, तो वह चीन के अतिक्रमण से देश को कैसे बचाएंगे?
प्रधानमंत्री मोदी को इन सवालों का जवाब देने की जरूरत है।

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