राहुल को खर्च होने से बचाइए

99.9% भारतीय, राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष देखना चाहते हैं। वह 0.1% भारतीय में एक मैं हूँ, जो राहुल को अध्यक्ष नही देखना चाहता। इसलिए कि, अध्यक्षी से आगे जहां और भी हैं। कांग्रेस का सिरमौर और चेहरा होने के लिए राहुल गांधी किसी कुर्सी का मोहताज नही। उसकी शक्ल से झलकती राजीव की मासूमियत और नेहरू की नफासत काफी है। मैं शर्त लगाकर कह सकता हूँ, राजनीति के केंद्र में होकर भी, प्रधानमंत्री बन जाने के लालच से दूर,अगर कोई गैर राजनीतिक शख्स भारतीय राजनीति में है, तो उसका नाम राहुल गांधी है।
पिछले सौ सालों में दूसरी बार, हमारे बीच, हमारे दौर में, दूसरा ऐसा शख्स क्यों भेजा गया है। जवाब एक है – नियति। ईश्वर सन्तुलन के लिए यह व्यवस्था करता है। अगर आपकी भविष्य पर नजर है तो समझ चुके होंगे, कि देश जिस राह पर आगे बढ़ रहा है, राहुल की सँघर्ष महज कांग्रेस बचाना नही। आज भारत नाम के आइडिया, इसकी जड़ें, और नींव हिलाई जा रही हैं।
“न्याय” “समता”, “बंधुत्व” पर आधारित समाज और  “लोकतांत्रिक”, “पंथनिरपेक्ष”, “समाजवादी” और “सम्पूर्ण प्रभुत्वसंपन्न गणराज्य” होने का दम भरने वाली व्यवस्था अब फानी है। इसे उलटने के इंतजाम मुकम्मल हैं।  जब ये साफ साफ डूबने लगेंगे, इस देश की जनता, डरकर, छिपकर बस  एक ही ओर देखेगी। उसे एक शख्स चाहिए होगा, जिसका कद ऊंचा हो, जिसका इतिहास धोखे का न हो। जिसकी मुस्कान में काइयांपन ना हो। जिसकी साफगोई पर वह विश्वास करे, उम्मीद करे, पीछे चले।
नियति उस साक्षात्कार के लिए, राहुल की हड्डियों में कूट कूटकर लोहा भर रही है। वक्त की आवाज, और उसके आर्तनाद को राहुल को झेलना है। उस खूनी नदी को पार करने के बाद हिंदुस्तान के आने वाले 25 साल कांग्रेस के होने हैं, राहुल के होने हैं। राहुल का लम्बा दौर तय है। ऐसे में फिलहाल अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठकर कैंडिडेट, गठबन्धन, महासचिव, प्रवक्ता नियुक्त करने, बहस और आलोचना का हिस्सा होने, छोटे छोटे राजनीतिक दलों से झुककर नेगोशिएशन कर्मो के लिए, कांग्रेस राहुल का इस्तेमाल करती है, तो बड़ी चूक करेगी। कांग्रेस अपना नेता, अध्यक्ष और प्रवक्ता तो सैंकड़ो खड़े कर सकती है, दूसरा राहुल नही।  तो राहुल को सड़कों से बचाइए, धक्कों से बचाइए, गोडसे की सेना से बचाइए, अध्यक्षी से बचाइए। अगर एक नई कांग्रेस बनाई जानी है, तो राहुल के लिए बनाइये, राहुल को खर्च करके मत बनाइये।

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