शांति समझौते के बाद अपने ही घरों में आग क्यों लगा रहे अर्मेनियाई ईसाई?

स्टेपनाकार्त/येरेवान. युद्ध हर तरफ तबाही के निशान छोड़ता है. हारने वाला सबकुछ गवां बैठता है, तो जीतने वाले को भी सिवाय घृणा, हिंसा के कुछ नहीं मिलता. हम बात कर रहे हैं नागोर्नो-करबाख (Nagorno Karabakh War) के जंग की. अब नागोर्नो-करबाख में भले ही शांति लौट रही हो, लेकिन हर तरफ तबाही का मंजर नजर आने लगा है. लोग अपने घरों को छोड़कर जा रहे हैं, लेकिन इस बार उन्हें उम्मीद ही नहीं है कि वो लोग कभी वापस आ भी पाएंगे. यही वजह है कि अपने घरों से पलायन कर रहे लोग अब अपने आशियाने को ही आग के हवाले कर दे रहे हैं.

ऐसा क्यों हो रहा है?
नागोर्नो-करबाख अतर्राष्ट्रीय स्तर पर अजरबैजान (Azarbaijan) का हिस्सा है. लेकिन यहां अर्मेनियाई इसाई (Armenian Cristian) लोग ही रहते हैं. यहां अजेरी मूल के लोग कम हैं. और प्रशासन खुद आर्मेनियाई इसाई चला रहे थे. एक तरह से नागोर्नो-करबाख स्वायत्त इलाका है, जिसपर अजरबैजान का बस नहीं चलता. लेकिन अब नागोर्नो-करबाख के बड़े हिस्से को अजरबैजान ने युद्ध के माध्यम से जीत लिया है. ऐसे में हारे हुए लोगों के परिवार अब उन इलाकों से निकलकर जा रहे हैं, जिन इलाकों को अजेरी सेनाओं ने जीत लिया है.

किस बात का है डर?
अर्मेनियाई इसाई लोगों का मानना है कि अजरबैजान एक मुस्लिम देश है. अबतक उन्होंने इस पूरे इलाके पर स्वायत्त होकर राज किया, लेकिन अजरबैजान के शासन में रहकर न सिर्फ उन्हें दुश्मन माना जाएगा, बल्कि उनकी जिंदगियां तबाह हो सकती है. चूंकि ये पूरा इलाका आधिकारिक तौर पर अजरबैजान का ही है, ऐसे में इसे फिर से जीतकर आजाद कराने के बारे में वो सोच भी नहीं सकते. यही वजह है कि नागोर्नो-करबाख के हारे हुए इलाकों से अर्मीनिया (Armenia) की तरफ बढ़ रहे लोग अपने घरों को भी आग से हवाले कर दे रहे हैं, ताकि दुश्मन को कुछ न मिले, सिवाय तबाही के निशान के.

सौ साल पहले की तरह मिला धोखा!
इस बीच अर्मेनिया में अजरबैजान के साथ समझौते के बाद हजारों लोग येरेवान शहर की सड़कों पर उतर आए और प्रदर्शन किया. लोगों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए अर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशियान के इस्तीफे की मांग की. साथ ही अर्मेनिया के लोगों ने ये भी कहा कि रूस ने उन्हें उसी तरह धोखा दिया, जैसे सौ साल पहले दिया था.

सौ साल पहले क्या हुआ था?
अर्मीनिया और अजरबैजान 1920 के दशक में आजाद हुए और फिर दोनों ही देश सोवियत संघ का हिस्सा बन गए. नागोर्नो-करबाख अजरबैजान के भौगोलिक हिस्से में चला गया. जबकि यहां अर्मीनियाई इसाई लोगों की आबादी है. उनकी मांग थी कि उन्हें अर्मीनिया के साथ रहने दिया जाए. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जिसके बाद 1980 के दशक में जब सोवियत संघ कमजोर पड़ने लगा तो नागोर्नो-करबाख के लोगों और विद्रोह गुटों ने नागोर्नो-करबाख से अजरबैजान की सेना को भगा दिया. माना जा रहा था कि इस विद्रोह तो अर्मीनिया का समर्थन प्राप्त था. इस युद्ध में लाखों लोग मारे गए और लाखों को पलायन करना पड़ा. मुस्लिम आबादी अजरबैजान की तरफ पलायन कर गई थी, तो अर्मीनियाई इसाई तेजी से इलाके में बढ़े थे. लेकिन इस 6 सप्ताह तक तले ताजे युद्ध के बाद पलायन इसाई आबादी को करना पड़ रहा है, तो अजेरी मुसलमान यहां फिर से लौटने को तैयार हैं.

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!