शिवसेना ने सामना में लिखा, ‘मनमोहन सिंह की सलाह को गंभीरता से लेना ही राष्ट्रहित है’

मुंबई. मंदी की आहट को लेकर शिवसेना ने मोदी सरकार पर निशाना साधा हैं. शिवसेना ने सामना में लिखा है, ‘अनुच्छेद 370 हटाकर सरकार ने साहसी कदम आगे बढ़ाया और देश इसे लेकर प्रसन्न है. परंतु कश्मीर और आर्थिक मंदी दो अलग विषय हैं. कश्मीर में विद्रोही सड़क पर उतरें तो उन्हें बंदूक के जोर पर पीछे ढकेला जा सकता है लेकिन आर्थिक मंदी पर बंदूक वैसे तानोगे? मंदी के कारण बेरोजगारी बढ़ेगी और लोग ‘भूख-भूख’ करते सड़क पर आएंगे तब उन्हें भी गोली मारोगे क्या? आर्थिक मंदी पर भक्त चाहे कितना भी उल्टा-पुल्टा कहें तब भी सच के मुर्गे ने बांग दे दी है और मौनी बाबा मनमोहन द्वारा सौम्य शब्दों में कहे गए सच से भी धमाका हो ही गया…

….अर्थव्यवस्था को बुच लग गया है. देश की आर्थिक नब्ज को हाथ में पकड़कर राजनीतिक व्यवस्था को मनमाने तरीके से हांकना खतरनाक है. उद्योग, व्यापार करनेवालों की गर्दन पर छुरी रखने से राजनैतिक पार्टियों को तात्कालिक लाभ हो सकते हैं लेकिन देश गिरता जा रहा है.’

शिवसेना ने सामना में लिखा, ‘विगत कई वर्षों से अर्थव्यवस्था का संबंध पार्टी फंड, चुनाव जीतने, घोड़ा बाजार आदि तक के लिए ही शेष रह गया है, इससे ‘देश की व्यवस्था’ नष्ट हो रही है. आर्थिक मंदी पर राजनीति न करें तथा विशेषज्ञों की मदद से देश को संवारें, ऐसा आह्वान मनमोहन सिंह जैसे बुद्धिजीवी व्यक्ति ने किया है. इनकी सलाह को गंभीरता से लेने में ही राष्ट्र का हित है. इतना ही नही मंदी को लेकर सामना में देश की पहली वित्तमंत्री पर भी निशाना साधा गया है.’

सामना में लिखा है, ‘नोटबंदी और जीएसटी जैसे निर्णय देश में आर्थिक मंदी की वजह बन रहे हैं, ऐसा मनमोहन सिंह कह रहे हैं. देश की विकास दर गिर रही है. उत्पादन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी घट गई है तथा लाखों लोगों पर नौकरी गंवाने का संकट आ गया है. फिर भी यह हालात सरकार को भयावह नहीं लगते, ऐसी अवस्था हैरान करनेवाली है. देश की पहली महिला रक्षा मंत्री सीतारमण की पहले सराहना हुई. देश की पहली महिला वित्त मंत्री के रूप में उन पर की गई पुष्पवर्षा के फूल अभी भी सूखे नहीं हैं. परंतु सक्षम महिला होना तथा देश की अर्थनीति को पटरी पर लाने में फर्क होता है….

….हमारी पहली महिला वित्त मंत्री को कहीं भी आर्थिक मंदी नजर नहीं आती तथा देश में सब कुशल-मंगल है, ऐसा उनका कहना है. आर्थिक ‘मंदी’ पर वह कई बार मौन ही बरतती हैं.


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