43 वां रावत नाच महोत्सव पांच दिसंबर को होगा, महापौर व रावत नाच महोत्सव समिती के सदस्य कलेक्टर से मिले बनी सहमति

बिलासपुर. देवउठनी एकादशी के बाद अंचल में रावत नाच का दौर शुरू हो जाता है और एक से बढ़कर एक दोहों के साथ यदुवंशी नाच का प्रदर्शन करते हैं। इस वर्ष कोरोना के कारण शहर में होने वाले राज्य स्तरीय रावत नाच महोत्सव पर भी संशय था। ऐसे में महापौर रामशरण यादव सहित रावत नाच महोत्सव आयोजन समिति के संयोजक कालीचरण यादव, आर जी यादव , पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष कृष्ण कुमार यादव (राजू) और सदस्यों के साथ सोमवार सुबह बिलासपुर कलेक्टर सारांश मित्तर से मिल कर हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी समाज की इस रावत नाच महोत्सव के आयोजन को लेकर चर्चा की जिसमें कलेक्टर ने कहा कि शासन-प्रशासन की गाइड-लाइन को ध्यान रखते हुए लाल बहादुर शास्त्री स्कूल मैदान में रावत नाच महोत्सव का आयोजन कर सकते हैं। साथ ही पुलिस प्रशासन भी रावत नाच महोत्सव के दौरान समिती का साथ देगी। महापौर रामशरण ने बताया कि 43 वां रावतनाच महोत्सव को लेकर जिला प्रशासन से सहमति मिल गई है। देवउठनी के बाद 5 दिसंबर शनिवार को लाल बहादुर शास्त्री स्कूल मैदान में रावत नाच महोत्सव का आयोजन होगा इसमें कोरोना संक्रमण को देखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग सहित शासन की अन्य गाइड-लाइन का पूरा ध्यान रखा जाएगा। कलेक्टर से मिले समिती के धन्नू यादव, सतीश यादव, जशवंत यादव, चंद्रिका यादव सहित समिती के अन्य सदस्य गए थी।

1978 में शुरुआत, 85 से आई भव्यता
महापौर रामशरण यादव ने बताया कि वर्ष 1978 में राउत नाच महोत्सव की नींव पूर्व स्व.मंत्री बीआर यादव के प्रयासों से मिला। इसका मुख्य उद्देश्य समाज को संगठित करना था। इसमें छोटी-छोटी मंडलियां शामिल हुईं। समय के साथ छोटी-छोटी मंडलियों ने संगठित होकर बड़े दल का रूप लिया। वहीं महोत्सव के रूप में इसे भव्यता वर्ष 1985 से लाल बहादुर शास्त्री स्कूल मैदान में आयोजन कराने से मिली। उसी साल मुरादाबाद से शील्ड बन कर आई थी। इसे विजेता अगले वर्ष के लिए समिति को लौटा देते हैं। पिछले वर्षों में करीब 1०० दल महोत्सव का हिस्सा बनते हैं। पूरी रात महोत्सव चलता है और यदुवंशी भी उत्साह के साथ अपनी प्रसतुति देते हैं।

कोरोना के गाईडलाइन पालन करने की अपील
महापौर रामशरण ने बताया कि बिलासपुर के रावत नाच महोेत्सव का राज्य में अलग ही पहचान बनी है। पहले आसपास के क्षेत्र से ही दल आते थे। लेकिन, जैसे-जैसे प्रसिद्धि बढ़ती गई वैसे ही दलों की संख्या भी बढ़ती गई। आज लगभग पूरे राज्य से यदुवंशी आते हैं। प्रतिवर्ष की भाती इस वर्ष भी शहर में यह आयोजन होगा लेकिन समाज के सभी साथी कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए शासन के गाइड-लाईन का पालन करते हुए महोत्सव में भाग ले।एकादशी से होती है शुरुआत
परंपरानुसार राउत नाच की शुरुआत देवउठनी एकादशी से होती है। भव्य महोत्सव एकादशी के बाद पड़ने वाले दूसरे शनिवार को होता है। इस वजह से बुधवार को पड़ने वाली देवउठनी एकादशी के बाद पहले शनिवार को छोड़कर दूसरे शनिवार पांच दिसंबर को रावत नाच महोत्सव होगा। महोत्सव से पूर्व यदुवंशी परंपरागत संस्कृति की झलक के साथ सिर्फ अपने परिचितों के आंगन में जाकर प्रस्तुति देते हैं और दोहे गाकर उन्हें मंगल आशीष देते हैं।

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