एबॅट ने इप्सोस के साथ मिलकर भारत में मेनोपॉज़ पर सर्वेक्षण किया

मुंबई/अनिल बेदाग. अक्टूबर में विश्व रजोनिवृत्ति माह (वर्ल्‍ड मेनोपॉज़ मंथ) मनाने के लिए,  हेल्थकेयर के क्षेत्र में दुनिया की प्रमुख कंपनी, एबॅट महिलाओं को अपनी जिंदगी के इस दौर के वक्‍त भरपूर जीने में सशक्‍त बनाने के लिए आगे बढ़कर प्रयास कर रही है। इप्सोस के साथ साझेदारी में एबॅट द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 87% लोगों को लगता है कि रजोनिवृत्ति एक महिला के दैनिक जीवन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती है। फिर भी, इस विषय पर बातचीत सीमित है। मेनोपॉज़ एक ऐसा चरण है जो उम्र बढ़ने के साथ सभी महिलाओं को प्रभावित करता है।  एबॅट का लक्ष्य महिलाओं के जीवन के इस विशिष्ट चरण के दौरान उनकी जागरूकता बढ़ाना और उनका समर्थन करना है।
रजोनिवृत्ति के बारे में बातचीत का समर्थन करने के लिए, एबॅट द नेक्स्ट चैप्टर अभियान शुरू कर रहा है ताकि   जागरूकता बढ़ाई जा सके और अधिक महिलाओं को सशक्‍त किया जा सके ताकि वे उस सहयोग एवं देखभाल की खुद से मांग कर सकें जिसकी उन्‍हें जरूरत है। द नेक्स्ट चैप्टर अभियान की शुरुआत आज हुई और यह उन कहानियों के संग्रह के साथ है जो महिलाओं के अनूठे परिप्रेक्ष्य और रजोनिवृत्ति से संबंधित व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करती हैं। भारत में कहानियों का यह संकलन पूर्व मिस यूनिवर्स, लारा दत्ता, प्रख्यात स्त्री रोग विशेषज्ञ, प्रेसिडेंट इलेक्ट, द फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसायटीज ऑफ इंडिया (एफओजीएसआई) डॉ हृषिकेश पई; डॉ तेजल लाथिया, कंसल्‍टेंट एंडोक्राइनोलॉजिस्ट, अपोलो और फोर्टिस अस्पताल; तथा शैली चोपड़ा, शी द पीपुल की संस्थापक के साथ लॉन्च किया गया था।
एबॅट का द नेक्स्ट चैप्टर मेनोपॉज़ कहानियों का संग्रह ई-बुक के रूप में उपलब्ध है। इसमें चार देशों – भारत, चीन, ब्राजील और मैक्सिको की रजोनिवृत्त महिलाओं के वास्तविक अनुभवों और कहानियों को प्रकाशित किया गया है। हार्मोनल परिवर्तन का प्रभाव रिश्तों और करियर से लेकर स्वास्थ्य और आत्मसम्मान पर भी पड़ता है।  द नेक्स्ट चैप्टर में प्रत्येक महिला की कहानी और ज्यादा महिलाओं को प्रेरित करने के लिए है ताकि वे अपने अनुभव के बारे में बात करें, रजोनिवृत्ति पर स्वतंत्र रूप से खुलकर चर्चा करें और सहयोग के लिए – परिवार व दोस्तों के बीच पहुंचें। पुस्तक के चार संस्करण हैं – प्रत्येक देश के लिए एक जिसमें रजोनिवृत्ति का चित्रण करने वाला एक रचनात्मक चित्रण है, जिसे भारत सहित प्रत्येक देश की एक महिला कलाकार द्वारा बनाया गया है।
रजोनिवृत्ति  एक ऐसा विषय है जिसपर अभी भी चर्चा कम होती है। हॉर्मोनल परिवर्तन जो रजोनिवृत्ति (मासिक धर्म से छुटकारा) तक जाता है, आमतौर पर महिला के 40वें दशक के मध्य में शुरू होता है और औसत भारतीय महिला पश्चिमी देशों की तुलना में करीब पांच साल पहले करीब 46 साल की उम्र में रजोनिवृत्ति महसूस करती है।[i] यह कई  चुनौतीपूर्ण शारीरिक, मानसिक और यौन लक्षणों की रेंज की शुरुआत कर सकता है जो जीवन की गुणवत्ता को बाधित कर सकते हैं। वैसे तो सभी महिलाएं इस स्थिति से गुजरती हैं और कई में यह असहज लक्षण पैदा करता है, फिर भी यह अक्सर अनसुना रह जाता है। सामाजिक स्थितियों और जागरूकता की कमी के कारण आधी महिलाएं रजोनिवृत्ति के लक्षणों के लिए चिकित्सा सहायता नहीं लेती हैं।
रजोनिवृत्ति जैसे एक वर्जित विषय पर अपने विचार साझा करते हुए, पूर्व मिस यूनिवर्स, लारा दत्ता ने कहा, “हालांकि, रजोनिवृत्ति एक महिला की जीवन प्रक्रिया का प्राकृतिक हिस्सा है, फिर भी इसके बारे में हम अक्सर चुप रहते हैं। नतीजतन, कई महिलाएं वास्तव में नहीं जानती हैं कि क्या उम्मीद की जाए। रजोनिवृत्ति के बारे में जितना अधिक बात करेंगे महिलाएं जीवन के इस चरण को बेहतर ढंग से समझने के लिए सशक्त महसूस करेंगी। यह उन्हें अपने दोस्तों, परिवारों और डॉक्टरों से बात करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है, इसलिए वे न केवल लक्षणों का प्रबंधन कर सकते हैं बल्कि आगे आने वाली चीजों को अपना सकते हैं।”

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