मां को बच्ची से मिलवाने वाले बहादुर साथियों को धन्यवाद
बिलासपुर. बीते दिनों एक मां को एक बच्ची से मिलवाने कार्य हमारे बहादुर साथियो द्वारा किया गया, जिसको जितना तारीफ की जाए कम है। जिस तरह से रात रात खुले आसमान के नीचे सबने साथ दिया, उससे काफी भावुक भी हूँ, ज़िंदगी भर की आभारी हूँ। संगठन और एकता ही तो हमारी ताकत है। हम सबका यह साथ बना रहे, आगे की लड़ाई भी यू ही एकता से साथ हम लड़े और आगे बढ़े, यही कामना करती हूँ। मैं उन साथियो का नाम लेकर बताना चाहती हूँ जिन्होंने लगातार सहयोग किया और साथ साथ जेल भी गए। मेरे साथ साथ वरिष्ट सामाजिक कार्यकर्ता लखन सुबोध,नीलोत्पल शुक्ला,भागवत साहू, विवेक यादव,हृतिका, बिन्दा,जितेंद्र, गौतम, कमलेश्वर जायसवाल उर्फ सोनू, संतोष बंजारे,अरविंद पांडे,असीम तिवारी, शंकर कश्यप,खगेश, रवीं यादव, जसबीर सिंह,दिनरात हमारे साथ सड़क पर सो, रुक रहे रहे थे। इसी बीच लोगो का आना जाना समर्थन देना भी लगा हुआ था, लड़ाई शुरू तो हुई लेकिन अंत करने के लिए और भी साथी बेहद ज़रूरी थे, ऐसे में गोपाल यादव दादा,प्रमोद पटेल, बबलू बीरेंद्र राय,राकेश यादव, संजय ऑयल सिंघानी,लक्ष्मी टन्डन सहित अन्य महिला साथी भी समर्थन के पहुँचे और धरने पर बैठ गए, अग्रवाल समुदाय की महिलाओं का समर्थन, अग्रवाल समुदाय के युवाओं का समर्थन सुबह से शुरू हो गया,फिर क्या था , पोलिस का डंडा होता या फिर जेल, दोनो से लड़ने की ताकत और बढ़ गयी। इसी तरह तमाम संघर्ष के बीच आंदोलन स्थल से 13 साथियो को पुलिस ने उठा लिया और जिस हिम्मत से हम नारे लगाते, गाने गाते गए और जेल के अंदर भी एक एक समस्या पर सवाल उठाते रहे, उसकी जितनी तारीफ करनी हो कम होगा। उधर सड़क से जेल तक हम गए, तो बाहर से हमारे पार्टी और सामाजिक तौर पर नारीशक्ति का और बाकी साथियो का जो साथ मिला, उसका
क्या ही कहना…
प्रदेश के तमाम साथीगण हमारे मुखिया/अध्यक्ष भाई कोमल हुपेंडी जी के नेतृत्व में सवाल उठाए तो उससे और भी बल मिला मुद्दे को, और इस तरह से यह संघर्ष सफल रहा। रात रात और दिन भर जिस तरह से मीडिया के साथियो का साथ मिला, उसको झुककर नमन, शायद आपने लिखा नही होता, तो हमको सुनता कौन। राज्य में महिलाओं औऱ बच्चियों की सुरक्षा को लेकर आगे भी सवाल उठाते रहेंगे, बलात्कार और कानून का उल्लंघन निजी नही बल्कि समाज का मसला है, इसके लिए जितने बार जेल जाना पड़ेगा जाऊंगी, यह लड़ाई जारी रहेगी। आधी आबादी की सुरक्षा समाज की जिम्मेदारी है। बारंबार आभार कहना छोटा शब्द है, भावनाओं को ज़ाहिर नही कर पाई हूँ अब तक। बाकी जेल की समस्याओं पर अंदर की महिलाओं से बात करते समय कट गया, आगे की लड़ाई अब जेल की भी लड़नी होगी।