डाक्टरी सलाह से दवाई लेने में ही है भलाई
अक्सर हमें अपने आसपास, दोस्तों-संबंधियों के यहां देखने को मिलता है कि कई लोग हर छोटी-बड़ी बीमारी का इलाज स्वयं शुरू कर देते हैं। इस इलाज का आधार होता है इंटरनेट के सर्च इंजिन और पूर्व में परिवार के किसी और सदस्य को हुई समान लक्षणों वाली बीमारी के लिए चिकित्सक द्वारा दी गई दवाई और या दवाई की पर्ची। हम भूल जाते हैं कि हर व्यक्ति की शारीरिक संरचना, उसकी आवश्यकता, उसके शरीर पर दवाइयों का प्रभाव अलग-अलग होता है। यह भी कि एक विशेष दवाई या रसायन के प्रति, हर व्यक्ति का शरीर भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रतिक्रिया करता है।
दवाओं का सामान्य ज्ञान
यह अच्छी बात भी है कि आज की युवा, शिक्षित पीढ़ी, इंटरनेट की कृपा से चिकित्सीय परीक्षण, उपचार पद्धति और औषधियों के विषय में काफी जागरूक है। रोगों और दवाइयों के विषय में सामान्य जानकारी होना एक सकारात्मक गुण है। आज जिस तरह से चिकित्सा सेवाओं और शिक्षा का व्यवसायीकरण हुआ है । ऐसे में चिकित्सक को भी थोड़ा व्यावसायिक होना ही पड़ा है। ऐसी परिस्थितियों में आपको रोगों, दवाइयों और चिकित्सा परीक्षणों की सामान्य जानकारी होना अति आवश्यक है, ताकि आपका या आपके रोगी का हॉस्पिटल और चिकित्सकों द्वारा अनावश्यक शोषण न किया जा सके।
चिंतनीय पहलू
सामान्य जानकारी होना सकारात्मक ही कहा जायेगा परंतु इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि आप स्वयं डॉक्टर बन, परिवार के लोगों को दवाई देने लग जाएं। स्व औषधि प्रयोग का आज जो सबसे खतरनाक और चिंतनीय पहलू हमारे सामने आ रहा है, पिछले वर्ष एक समाचार के अनुसार मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित एंटीबायोटिक दवाओं के असर के बारे में हुए अब तक के सबसे बड़े अध्ययन के अनुसार वर्ष 2019 में दुनिया भर में 12 लाख से अधिक लोग मौत के ग्रास बन गए जिसका कारण एंटी-माइक्रोबियल रेसिस्टेन्स (एएमआर) या दवाइयों का अप्रभावी होने को माना गया है। इससे बीमारियों का उपचार कठिन हो जाता है तथा मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
एंटीबायोटिक प्रतिरोध
एक शोधकर्ता टीम के अनुसार, वर्ष 2019 में दुनिया भर में लगभग 60 लाख लोगों की मृत्यु का प्रत्यक्ष या परोक्ष कारण एंटी-माइक्रोबियल रेसिस्टेन्स (एएमआर) रहा। यह आंकड़ा मलेरिया और एड्स से होने वाली मौतों से बहुत अधिक है। उपरोक्त रिपोर्ट का सार यह है कि पूरी दुनिया एंटीबायोटिक की इस सीमा तक आदी हो चुकी है कि अब बहुत से बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक अप्रभावी हो चुकी है। और अगर यही रफ़्तार रही तो हम बहुत जल्द ही पुराने वाले दौर में पहुंच जाएंगे। ऐसे में मेडिकल साइंस की प्रगति व्यर्थ साबित हो सकती है।
खुद ही डाक्टर!
चिकित्सकों की पुरानी पर्चियों के आधार पर रोगी सीधा मेडिकल स्टोर से ऐसी दवाइयां ले रहे हैं। चिकित्सक एंटीबायोटिक्स की खुराक की मात्रा रोगी की आयु तथा वजन के अनुसार निश्चित करते हैं तथा एक निश्चित अवधि के लिए दवाई लेनी होती है। अगर आप ठीक हो भी गए हैं तब भी आपको डॉक्टर द्वारा बताई गई अवधि तक यह दवाई लेनी होगी। इसका कारण है कि यह शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता के लिए ज़रूरी है। परंतु आज लोग एंटीबायोटिक्स वर्ग की दवाइयों के साथ जैसे मजाक-सा कर रहे हैं। जब मर्जी होती है एंटीबायोटिक्स लेना आरंभ कर लेते हैं, जैसे ही थोड़ा आराम होने लगता है , एंटीबायोटिक दवाएं लेना बंद कर देते हैं। जिसका परिणाम होता है रोग के सूक्ष्मजीवों का एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधात्मक हो जाना। अगर भविष्य में उसी रोग के जीवाणु शरीर पर फिर हमला करते हैं तो यह एंटीबायोटिक अब इन जीवाणुओं पर प्रभावी नहीं रहेगी। अब उससे अधिक शक्तिशाली एंटीबायोटिक दवाएं लेनी पड़ेंगी।