हिंदी विश्वविद्यालय में ‘स्वाधीनता संग्राम और भारतीय दृष्टि : छायावाद के विशेष संदर्भ में’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी उद्घाटित
भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में स्थापित करने के लिए साहित्य को आगे आना चाहिए : प्रो. ए. डी. एन. वाजपेयी
वर्धा. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा एवं महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई के संयुक्त तत्वावधान में ‘स्वाधीनता संग्राम और भारतीय दृष्टि (छायावाद के विशेष संदर्भ में) विषय पर हिंदी साहित्य विभाग द्वारा शुक्रवार 22 दिसंबर को राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्धाटन समारोह में बतौर विशिष्ट अतिथि संबोधित करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के कुलपति प्रो. ए.डी.एन. वाजपेयी ने कहा कि भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में स्थापित करने हेतु साहित्य को आगे आना चाहिए। संगोष्ठी का उद्घाटन ग़ालिब सभागार में किया गया। इस अवसर पर लोकमत, नागपुर के संपादक विकास मिश्रा, बुंदेलखंड विवि के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. मुन्ना तिवारी, साहित्य विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. अखिलेश कुमार दुबे, हिंदी साहित्य विभाग के अध्यक्ष तथा संगोष्ठी के संयोजक प्रो. अवधेश कुमार मंचासीन थे। संगोष्ठी में कालिकट विवि के हिंदी विभाग के प्रो. प्रमोद कोवप्रत, काशी हिंदू विवि, वाराणसी के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ ‘अनूप’, रानी दुर्गावती विवि, जबलपुर के अवकाश प्राप्त प्रो. त्रिभुवन नाथ शुक्ल ने ऑनलाइन संबोधित किया।
प्रो. वाजपेयी ने ऑनलाइन संबोधित करते हुए कहा कि स्वाधीनता संग्राम के कवि एवं साहित्यकारों के योगदान पर विचार करने की आवश्यकता है। अवधी के कवि बंशीधर शुक्ल जैसे कवि एवं छायावाद के ऐसे कवियों से प्रेरणा लेकर आगे बढने की बात की। विशिष्ट वक्ता के रूप में कालिकट विवि के प्रो. प्रमोद कोवप्रत ने समस्त भारतीय भाषाओं के कवि एवं साहित्यकारों के योगदान की चर्चा करते हुए वल्लतोल, श्रीनारायण गुरू एवं कुमारन आदि के योगदान को रेखांकित किया। विशिष्ट वक्ता प्रो. वशिष्ठ ‘अनूप’ ने कहा कि भारतेंदु युग के कवि एवं साहित्यकारों ने आज़ादी की मशाल जलाई। उन्होंने स्वदेश, स्वराज, हंस और मतवाला जैसी पत्रिकाओं के लेखक एवं पत्रकारों का जिक्र करते हुए स्वाधीनता संग्राम में स्त्री शक्ति का एहसास कराने वाली कविताओं पर चर्चा की। लोकमत समाचार के संपादक विकास मिश्रा ने स्वाधीनता संग्राम में गांधी को याद करते हुए कहा कि गांधी दूर द्रष्टा थे। वे संत नहीं अपितु व्यूहरचना करने वाले विचारवान व्यक्ति थे। उन्होंने आज़ादी के आंदोलन में जानकी वल्लभ शास्त्री एवं पंत की कविताओं का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें रोमांच पैदा करने वाली कविता की शक्ति है। प्रो. त्रिभुवन नाथ शुक्ल ने कहा कि वसुधैव कुटुंबकम, सबका साथ सबका विकास और आध्यात्मिकता हमारे साहित्य की भारतीय दृष्टि है। उन्होंने स्वाधीनता के समर में लोक साहित्य एवं आंचलिक साहित्य में लिखी गयी रचनाओं पर प्रकाश ड़ाला। प्रो. मुन्ना तिवारी ने भारतीय एवं पश्चिम की दृष्टि के अंतर का जिक्र करते हुए भारतीय चिंतन की रसानुभूति को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि हमारे कालजयी साहित्य का मूल त्याग और समर्पण है। उन्होंने छायावाद के संदर्भ में निराला, प्रसाद, पंत, महादेवी आदि के योगदान का जिक्र किया।
स्वागत वक्तव्य में संयोजक प्रो. अवधेश कुमार ने सन 1857 से प्रारंभ हुए स्वाधीन चेतना की चर्चा करते हुए द्विवेदी से भारतेंदु युग के योगदान की चर्चा की। उन्होंने कहा कि गांधी की पूरी चेतना छायावाद में समाहित है। उन्होंने छायावाद और उत्तर छायावाद को लेकर निराला, महादेवी, दिनकर आदि के योगदान को रेखांकित किया। विषय प्रवर्तन में भाषा विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. अखिलेश कुमार दुबे ने लोकमान्य तिलक का जिक्र करते हुए कहा कि तिलक आज़ादी की लड़ाई के मुखर नेतृत्वकर्ता थे और उन्होंने स्वाधीनता की चेतना जगाकर लोगों को जागरूक किया।
कार्यक्रम का प्रारंभ दीप दीपन, कुलगीत तथा डॉ. वागीश राज शुक्ल द्वारा प्रस्तुत मंगलाचरण से किया गया। कार्यक्रम का संचालन हिंदी साहित्य विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. रूपेश कुमार सिंह ने किया तथा हिंदी साहित्य विभाग के अध्यक्ष प्रो. अवधेश कुमार ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर प्रो. कृष्ण कुमार सिंह, प्रो. आनंद पाटील, डॉ. जनार्दन कुमार तिवारी, डॉ. उमेश कुमार सिंह, डॉ. रामानुज अस्थाना, डॉ. अशोक नाथ त्रिपाठी, डॉ. बालाजी चिरडे, डॉ. शंभू जोशी, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. संदीप सपकाले, डॉ. राम कृपाल तिवारी, डॉ. गौरी त्रिपाठी, डॉ. राजेश लेहकपुरे, डॉ. विपिन कुमार पाण्डेय, डॉ. श्रीनिकेत कुमार मिश्र, डॉ. हिमांशु शेखर, डॉ. अश्विनी कुमार सिंह, डॉ. मनोज तिवारी सहित अध्यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।