NMC बिल के खिलाफ दिल्‍ली के डॉक्‍टर्स की हड़ताल, संसद तक निकालेंगे मार्च, मरीज परेशान

नई दिल्‍लीएनएमसी बिल के खिलाफ देश भर में डॉक्‍टरों की हड़ताल का आज भी असर दिखने की संभावना है. दिल्ली के एम्स, सफदरजंग, मौलाना आज़ाद कॉलेज, लेडी हार्डिंग, एलएनजीपी समेत सरकारी अस्‍पतालों के डॉक्‍टर हड़ताल पर हैं. एम्स अस्पताल में एक दिन में 15 हज़ार मरीज़ इलाज के लिए आते हैं. सफदरजंग में 7-8 हज़ार, आरएमएल में 6-7 हज़ार, एलएनजेपी में 8-9 हज़ार मरीज आते हैं. इस लिहाज से आज दिल्ली के लिए मुसीबत का दिन है. दिल्ली में आज 50 हज़ार मरीज़ परेशान होंगे. दोपहर 2 बजे एम्स के डॉक्टर एनएमसी बिल के विरोध में पार्लियामेंट तक मार्च निकालेंगे. लोकसभा में मंगलवार को एनएमसी बिल पास हुआ. डॉक्‍टरों के मुताबिक इससे नीम-हकीमों को प्रोत्‍साहन मिलेगा.

क्‍या है एनएमसी बिल
1- एनएमसी बिल के सेक्शन 32 में 3.5 लाख नॉन मेडिकल शख्स को लाइसेंस देकर सभी प्रकार की दवाइयां लिखने और इलाज करने का कानूनी अधिकार दिया जा रहा है. 6 महीने का एक ब्रिज कोर्स करने के बाद देश के आयुर्वेद और यूनानी डॉक्टर भी एमबीबीएस डॉक्टर की तरह एलोपैथी दवाएं लिख सकेंगे.
2- मेडिकल कोर्स यानी ग्रेजुएशन के बाद भी प्रैक्टिस करने के लिए एक और एग्जाम देना होगा. ये एग्जाम कंप्ल्सरी होगा. इसे पास करने के बाद ही प्रैक्टिस और पोस्ट ग्रेजुएशन की इजाजत मिलेगी. अभी एग्जिट टेस्ट सिर्फ विदेश से मेडिकल की पढ़ाई पढ़कर आने वाले छात्र देते हैं.
3- एनएमसी प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की 40 फीसदी सीटों की फीस भी तय करेगी. बाकी 60 फीसदी सीटों की फीस तय करने का अधिकार कॉलेजों का होगा.

4- मेडिकल संस्थानों में एडमिशन के लिए सिर्फ एक परीक्षा NEET (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेस टेस्ट) ली जाएगी.

बिल के विरोध की क्या है वजह ?
1- भारत में अब तक मेडिकल शिक्षा, मेडिकल संस्थानों और डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन से जुड़े काम मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) की जिम्मेदारी थी, लेकिन बिल पास होने के बाद मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) की जगह नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) ले लेगा.
2- बिल के सेक्शन 32 के तहत, करीब 3.5 लाख गैर-मेडिकल लोगों को लाइसेंस देकर सभी प्रकार की दवाइयां लिखने और इलाज करने का लाइसेंस मिलेगा.
3- डॉक्टर्स NEET से पहले NEXT को अनिवार्य किए जाने के भी खिलाफ हैं. डॉक्टरों का कहना है कि इससे आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों की मेडिकल सेक्टर में आने की संभावना कम हो सकती है.

बाकी अहम बातें 
-ये बिल नीति आयोग ने बनाया है. बिल पर 2015 से काम शुरू हुआ था. आरोप यह है कि इस बिल को ब्यूरोक्रेटस ने बनाया है जो मेडिकल जगत की बारीकियों से अंजान हैं. सरकार का पहला एतराज ये था कि एक ही संस्था के पास मेडिकल एजुकेशन और डॉक्टरों की प्रैक्टिस – दो बड़े काम नहीं होने चाहिए.

-नीति आयोग को ऐतराज ये था कि ज्यादातर सदस्य चुनाव से आते हैं जिसमें डॉक्टरों की लॉबी सक्रिय भूमिका में रहती है लिहाज़ा योग्य और प्रशिक्षित व्यक्ति बाहर ही रह जाते हैं. 2016 में स्वास्थ्य को लेकर बनी स्टैंडिंग कमेटी ने लिखा कि एमसीआई का सारा फोकस कॉलेजों को लाइसेंस देने पर है. एजुकेशन में फैले भ्रष्टाचार और पढ़ाई की बेहतरी पर कभी ध्यान नहीं दिया गया.

-अब इसका चेयरपर्सन का नाम केंद्र सरकार सुझाएगी – वो 4 साल के लिए चुना जाएगा. दोबारा नहीं बन पाएगा. पहले डॉक्टर ही इसका अध्यक्ष होता था.



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