मुख्यमंत्री आवास घेराव “बेटियों के न्याय के लिए हुंकार”
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर आज एक ऐतिहासिक जनसैलाब का गवाह बनी, जब कांग्रेस पार्टी ने बेटियों के साथ हो रहे अत्याचार, शोषण और सरकार की चुप्पी के खिलाफ मुख्यमंत्री आवास का घेराव किया। हजारों कार्यकर्ता, नेता और आम नागरिक इस शांतिपूर्ण लेकिन दृढ़ प्रदर्शन में शामिल हुए, जिसमें हर चेहरे पर आक्रोश था और हर नारे में न्याय की मांग।
“जब बेटियाँ रोती हैं, तो इंसानियत कांपती है – अब यह अन्याय नहीं सहेंगे!”
इस नारे ने न सिर्फ राजधानी की सड़कों को गूंजा दिया, बल्कि सत्ता के गलियारों तक एक तीखा संदेश भेजा — अब चुप्पी नहीं, संघर्ष होगा।
प्रदेश में बढ़ते अपराध और कानून व्यवस्था पर सवाल
कांग्रेस नेताओं ने प्रदेश की भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा नाम की कोई चीज़ नहीं बची है। हाल के महीनों में बलात्कार, छेड़छाड़, हत्या और अपहरण जैसे अपराधों में तेज़ी से वृद्धि हुई है।
नेताओं ने आरोप लगाया कि अपराधियों को न कानून का डर है, न प्रशासन की परवाह। यह सब सरकार की निष्क्रियता और संवेदनहीनता का नतीजा है। अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे खुलेआम अपराध कर रहे हैं और सरकार आँखें मूँदे बैठी है।
बेटियाँ अब खामोश नहीं रहेंगी
प्रदर्शन के दौरान कई महिलाओं और छात्राओं ने मंच पर अपनी बात रखी। उन्होंने अपने अनुभव साझा किए और बताया कि किस तरह डर के साए में उन्हें हर दिन जीना पड़ता है — स्कूल, कॉलेज, दफ्तर या फिर अपने ही घरों के आस-पास।
एक छात्रा ने कहा, “हम पढ़ना चाहते हैं, आगे बढ़ना चाहते हैं, लेकिन हर मोड़ पर डर हमारा रास्ता रोकता है। सरकार हमारी सुरक्षा की बात नहीं करती, हमारी चुप्पी को सहमति समझ बैठी है।”
कांग्रेस का संकल्प: न्याय की लड़ाई सड़क से सदन तक
इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, भूपेश बघेल, टी.एस. सिंहदेव, सचिन पायलट, दीपक बैज और डॉ. चरणदास महंत जैसे वरिष्ठ नेताओं ने किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह केवल विरोध नहीं, बल्कि अन्याय के खिलाफ जनआंदोलन की शुरुआत है।
“हम हर बेटी की आवाज़ बनेंगे। यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक इस धरती पर हर लड़की बिना डर के जीने का अधिकार हासिल नहीं कर लेती।”
तीखे सवाल जो सरकार से पूछे गए:
1. कब तक बेटियाँ डर में जीती रहेंगी?
2. अपराधियों को सज़ा क्यों नहीं मिल रही?
3. क्या बेटियों की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं?
4. क्या सरकार को इंसाफ़ के लिए और लाशें चाहिए?
5. क्या लोकतंत्र में बेटियों की चीखें यूं ही अनसुनी होती रहेंगी?
जनता की भागीदारी: एक जनांदोलन का आग़ाज़
प्रदर्शन में आम जनता, सामाजिक संगठनों, महिला समूहों और युवाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही। यह साबित करता है कि यह मुद्दा केवल राजनीति तक सीमित नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतना का हिस्सा बन चुका है।
कांग्रेस ने साफ कहा कि यह लड़ाई रुकने वाली नहीं है। यह केवल आज का प्रदर्शन नहीं, बल्कि हर बेटी के सम्मान और सुरक्षा की लड़ाई है।
“हम चुप नहीं रहेंगे — जब तक हर बेटी को इंसाफ़ नहीं मिलेगा!”
यह हुंकार है उस समाज की, जो अब अन्याय के आगे झुकेगा नहीं।
यह चेतावनी है उस सत्ता के लिए, जिसने दर्द की चीखों को अनसुना कर दिया।
अब वक़्त आ गया है — डर को हराने का,
अब वक़्त आ गया है — इंसाफ़ को उसकी जगह दिलाने का।
यह आग़ाज़ है परिवर्तन का।