सतनाम बाड़ा में मनाय गया गुरु पूर्णिमा, किया गया ध्वजारोहण

बिलासपुर.  सतनाम बाड़ा विद्याडीह के समर्पित और कर्मठ सेवादारों और समाज के महिला समूहों के द्वाराआषाढ पूर्णिमा को गुरु अमर दास  कि जन्म जयंती समारोह आयोजित किया गया । इस अवसर पर एक नवाचार को जन्म दिया गया ध्वजारोहण केवल दिसंबर माह में होने की धारणा को खत्म कर सर्वप्रथम ध्वजारोहण एवं दीप प्रज्ज्वलित कर गुरु पूर्णिमा के अवसर पर उपस्थित मुख्य अतिथि महंत दिनेश लहरे जी विस्तृत प्रबोधन कर समाज में व्याप्त आडंबर, पाखंड और अंधविश्वास को दूर करने और गुरु घासीदास के वैज्ञानिक दृष्टिकोण आधारित शिक्षा पर जोर देते हुए समाज के लोगों से कहा कि वे किसी भी तरीके से आज के डिजिटल युग में प्रसारित विकृत सूचनाओं का बिना चिंतन- मनन अर्थात् बिना सोंचे समझे ना माने और ना ही आचरण में उतारे तथा उन्होंने यह भी जोर देते हुए कहा कि आज 21वीं शदी में भारत की ओर पूरा विश्व देख रहा है जो गुरु घासीदास के “मनखे मनखे एक बरोबर” एवं प्रकृति नियमानरुप जीवन जीने की विचारधारा को अपनाने के लिए तैयार है । विशिष्ट अतिथियों के क्रम में मालिकराम घृतलहरे और जेठूराम घृतलहरे जी ने गुरु अमरदास जी के बारे में अलग-अलग विचार बिंदुओं पर अपना प्रबोधन किये । समाज आज कैसे अनेकानेक विषयों को समझबूझकर सशक्त तथा मजबूत बने इस दिशा में इन वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने लोगों का ध्यान आकर्षित किये । अन्य वक्ताओं में सौखीलाल चेलके, चौवन गेंदले , जनक राम ,पंडित खेमन खूँटे इन्होंने गुरु घासीदास के बड़े पुत्र गुरु अमरदास के रास्ते पर चलने एवं इस गुरु पर्व को जन–जन तक पहुंचाने का बीड़ा उठाने का संकल्प लिए । सभी वक्ताओं ने संयुक्त रूप से इन बातों पर जोर दिया कि गुरु घासीदास के बड़े पुत्र गुरू अमर दास उस समय समाज में व्याप्त रूढ़िवादी विचारधारा ,अंधविश्वास ,पाखंड को गुरु घासीदास के साथ कम उम्र में समझकर व्यापक प्रबोधन का जिम्मा उठकर चलना प्रारंभ किये । ये अलग बात है कि नियति को कुछ और ही मंजूर था वे हमारे बीच से बहुत ही कम उम्र में विदा हो गए जिसके कारण समाज के प्रबुद्धजनों को उनकी भूमिका के संबंध में विषेश जानकारी नहीं है अथवा वे जानने का उचित प्रयास भी नहीं किये । समय कभी अनुकूल तो कभी प्रतिकूल होती है और ना ही उसकी हमें चिंता करना चाहिए । बल्कि अविलंब हमें अपने महामानवों के बेहतर समाज निर्माण के लिये किये गए कार्यों एवं सिद्धांतों को जानना समझना और समझाना ही होगा । अन्त में जो परंपरागत रूप से चली आ रही धारणायें हैं उन्हें विवेकशीलता और नैतिकता के पैमाने पर खरा ना उतरे तो त्याग देने की सामूहिक सहमती बनी ।

हमारे बीच से ओजस्वी युवा चंद्रिका घृलहरे जी ने मंच संचालन का जिम्मा लिया इन्होंने बहुत ही ओजपूर्ण कहावतों और महापुरुषों के विचारों एवं संघर्षों से उद्घृत कथनों द्वारा सभा में उपस्थित बच्चे,बुजुर्गों तथा युवावों का ध्यान आकर्षित करते हुए सफल कार्यक्रम आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया ।
इतिहास छिपाये नहीं छिपता और नये इतिहास बनने में प्रेरणा स्रोत बनता है। यह प्रथम बार ऐसा कार्यक्रम है जब कृतज्ञ समाज ने गुरु अमरदास जी को याद करते हुए इस ऐतिहासिक कार्यक्रम को सम्पन्न किया । जिससे आज प्रत्येक सतनाम विचारधारा को मानने वाले लोगों के घर-घर में इस विचारधारा को अपनाने और पहुँचाने के लिए लोक संकल्पित हुए ।

महिलाओं ने बड़े ही हर्षोल्लाश के साथ इस कार्यक्रम में भाग लेकर प्रबोधन में अपनी कामरता को स्वीकारते हुए निकट भविष्य में जो उनकी भूमिका बेहतर समाज निर्माण में हो सकती है उसके लिए संकल्पित हुए तथा माता सहोद्रा द्वारा कृत कार्यों को आने वाले समय में इस क्षेत्र से आगे ले जाने और शिक्षा के महत्ता को सर्वोपरि मानकर उसके बेहतरी हेतू प्रतिबद्धता जाहीर किये । युवाओं में विशेष तौर पर यह बात उजागर हुआ कि वे गुरु अमर दास को कम उम्र में अपने बीच से चले जाने को बहुत बड़ी क्षति के रूप में स्वीकार किये ।

सतनाम बाड़ा के संचालक गुरुजी बसंत जांगड़े जी ने लोगों को “शब्द,स्पर्श, रूप, रस ,गंधा । ये पाँच बनाये ज्ञानी और अन्धा ।।” कहते हुए ये किस तरह से मानव मन को प्रभावित करते हैं तथा सकारात्मक , नकारात्मक और सृजनात्मकता की ओर लेकर जाती है इन बातों पर जोर देते हुए उन्होंने कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रत्येक के योगदान हेतू जगजीवन घृतलहरे डॉ जीवल लाल घृतलहरे सुंदरलाल अशोक जांगड़े मनोज कुर्रे राजू कौशल साधराम कौशल रामाधार कौशल रवि शांडिल्य अजय कुर्रे अनिल जांगड़े हुलास गेंदले दिलमोहन मनोज महिलागे जी व अन्य बहुत से लोगों का आभार व्यक्त किये तथा भोजन के लिए आमंत्रित किये ।
महिलाएँ और युवकों ने मिलकर भोजन व खीर वितरण का जिम्मा उठाये ।

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