सरकार की दोहरी नीति से नगर सैनिकों में असंतोष
बिलासपुर . राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश के बाद तत्काल पूर्व मुख्य सचिव समेत 11 अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई जांच को लेकर फौरन एक्शन मोड में नजर आई, वहीं दूसरी ओर वर्षों से लंबित पड़े नगर सैनिकों की मांगों पर चुप्पी साधे बैठी है। इससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर क्यों सरकार कोर्ट के आदेशों को लेकर दोहरी नीति अपनाए हुए है।
दरअसल, नगर सेना (Nagar Sainik )जवानों से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court )और हाईकोर्ट (High Court )दोनों ही स्पष्ट आदेश दे चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने 4 जून 2015 को ही यह निर्णय दिया था कि होमगार्ड जवानों को ग्रेड पे, ड्यूटी एलाउंस और वॉशिंग एलाउंस जैसे भत्ते दिए जाएं। इसके अलावा 25 अप्रैल 2022 को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी इस आदेश का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को चार माह के भीतर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का पालन करने का निर्देश दिया था। बावजूद इसके, दो साल से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी न तो आदेश लागू किया गया और न ही जवानों को उनका वैध हक मिल पाया।
स्थिति यह है कि कोर्ट के स्पष्ट आदेशों के बावजूद सरकार इस मामले को टालती रही है। जबकि अधिकारियों पर कार्रवाई करने में सरकार ने तत्परता दिखाई। विशेषज्ञों का मानना है कि यह रवैया सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करता है। आखिर क्यों नगर सैनिकों जवानों की जायज मांगों को नजरअंदाज किया जा रहा है?
होमगार्ड जवानों का कहना है कि उन्हें वर्षों से ड्यूटी के बदले सिर्फ नाममात्र का भत्ता दिया जाता है, जिससे परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है। कई बार वेतन वृद्धि और भत्तों को लेकर आवाज उठाई गई, लेकिन हर बार मामले को लटकाकर छोड़ दिया गया। इससे जवानों में गहरी नाराजगी है।
सरकार ने समय पर कोर्ट के आदेश का पालन किया होता तो हजारों जवानों को राहत मिलती। न्यायालय ने भी बार-बार कहा है कि आदेश का पालन करना सरकार की जिम्मेदारी है, मगर राज्य सरकार इस दिशा में गंभीर नहीं दिख रही।
राजनीतिक हलकों में भी इस मुद्दे ने जोर पकड़ा है। विपक्ष लगातार यह सवाल उठा रहा है कि सरकार अधिकारियों के मामले में त्वरित कदम क्यों उठाती है और जवानों के मामले में चुप क्यों रहती है। आखिरकार होमगार्ड भी उसी व्यवस्था का हिस्सा हैं, जिनकी सेवाओं पर जनता की सुरक्षा और व्यवस्था टिकी हुई है।
साफ है कि सरकार की इस दोहरी नीति से जवानों में असंतोष गहराता जा रहा है। यदि शीघ्र ही इस मामले का समाधान नहीं किया गया तो यह मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर बड़ा आंदोलन बन सकता है। सरकार को चाहिए कि वह संवेदनशीलता दिखाते हुए कोर्ट के आदेशों का तत्काल पालन करे और जवानों को उनका हक दिलाए।