महिंदा राजपक्षे: आधार खोने के बाद लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचे, SLPP की बड़ी जीत
कोलंबो. हिंद महासागर में भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका (Sri Lanka) में राजपक्षे भाइयों का जलवा कायम है. 5 तारीख को हुए आम चुनावों में महिंद्रा राजपक्षे की पार्टी ने करीब 60 फीसदी वोट हासिल करते हुए, सत्ता की चाभी अपने पास रखी है. सैन्य अभियान में लिट्टे (LTTE) का सफाया करने वाले महिंदा राजपक्षे 2 बार देश का राष्ट्रपति रहने के बाद जब 2015 का चुनाव हारे, तो लोगों को लगा कि उनका करिश्मा अब खत्म हो गया. लेकिन हारी बाजी को जीतने वाले महिंद्रा राजपक्षे ने अपने करिश्माई नेतृत्व से नवगठित श्रीलंका पीपल्स पार्टी (SLPP) को इतने कम समय के अंदर पूर्ण बहुमत से सत्ता दिलाकर एक नया इतिहास भी रच दिया. राजपक्षे अगले सप्ताह शपथ ग्रहण करेंगे और अपने राजनीतिक जीवन में चौथी बार प्रधानमंत्री बनेंगे.
कोरोना काल में दो बार स्थगित हो चुके आम चुनावों में इस बार एसएलपीपी को 225 सदस्यीय संसद में सहयोगी दलों के साथ कुल 150 सीटें हासिल हुई हैं और इस तरह उन्हें दो-तिहाई बहुमत हासिल हो गया है. राजपक्षे राष्ट्रपति के अधिकारों को प्रतिबंधित करने वाले संविधान के 19वें संशोधन को हटाना चाहते हैं और दो-तिहाई बहुमत मिलने से उन्हें इससे संबंधित संविधान संशोधन में आसानी होगी.
श्रीलंका की राजनीति में दखल
राजपक्षे के लिए यह राजनीतिक सफर आसान नहीं रहा. वह 24 साल की उम्र में संसद पहुंचे थे और सबसे कम उम्र के सांसद बने. 1977 में पराजय के बाद उन्होंने अपनी वकालत के पेशे पर ध्यान दिया और 1989 में फिर से संसद पहुंचे. वह राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा के शासनकाल में श्रम मंत्री (1994-2001) और मत्स्य पालन तथा जल संसाधन मंत्री (1997-2001) रहे. कुमारतुंगा ने उन्हें अप्रैल 2004 के आम चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नियुक्त किया. उस चुनाव में यूनाइटेड पीपल्स फ्रीडम अलायंस की जीत हुई थी.राजपक्षे को नवंबर 2005 में श्रीलंका फ्रीडम पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुना गया.
राजनीति का टर्निंग प्वाइंट
चुनाव में जीत के बाद राजपक्षे ने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) को समाप्त करने की अपनी मंशा साफ कर दी. लिट्टे के साथ करीब 30 साल चले खूनी संघर्ष को समाप्त करते हुए राजपक्षे लोकप्रियता के चरम पर थे और इसका इस्तेमाल उन्होंने 2010 में शानदार जीत हासिल करने में किया. राजपक्षे ने कई बार स्वीकार किया है कि उनके चार दशक से अधिक समय के राजनीतिक कॅरियर में लिट्टे के सफाये की उनकी कार्रवाई सबसे अहम उपलब्धि रही.
राजपक्षे पर लगे थे गंभीर आरोप
हालांकि उन पर मई 2009 में समाप्त हुए असैन्य संघर्ष के दौरान श्रीलंकाई सुरक्षा बलों द्वारा कथित तौर पर की गयी यौन हिंसा और न्याय से इतर हत्याओं को माफ कर देने के भी आरोप हैं. उन पर असंतोष के स्वरों को दबाने के भी आरोप लगे. राजपक्षे ने 2005 से 2015 तक राष्ट्रपति रहते हुए अपनी स्थिति को मजबूत किया. संविधान में संशोधन किया गया ताकि वह तीसरी बार राष्ट्रपति बन सकें और उनके तीन भाई- गोटबाया, बासिल और चमल को भी प्रभावशाली पदों पर बैठाया जा सके. इसके बाद उन पर देश को परिवार के प्रतिष्ठान की तरह चलाने के भी आरोप लगे.
हालांकि 2014 में महंगाई और भ्रष्टाचार तथा सत्ता दुरुपयोग के आरोपों के बीच देश में उनकी लोकप्रियता कम होने लगी और उन्होंने समर्थन और आधार खिसकने से पहले एक और बार राष्ट्रपति बनने के मकसद से जल्द राष्ट्रपति चुनाव करा लिये. लेकिन उनकी यह तिकड़म काम नहीं आई और पूर्व सहयोगी मैत्रीपाला सिरीसेना ने 2015 के चुनाव में उन्हें शिकस्त दे दी.उनके खिलाफ रिश्वतखोरी के अनेक मामले दर्ज किये गये थे.
भाइयों की जोड़ी ने जीता भरोसा
राष्ट्रपति के तौर पर अपने शासनकाल में राजपक्षे ने चीन के साथ अनेक बुनियादी संरचना निर्माण संबंधी समझौते किये जिससे भारत और पश्चिमी देशों की चिंताएं बढ़ गईं. आलोचकों के अनुसार राजपक्षे की वजह से देश चीन के कर्ज के जाल में फंस गया. 21 अप्रैल, 2019 को ईस्टर के मौके पर हुए बम विस्फोटों के बाद श्रीलंका की राजनीति ने करवट ली.तत्कालीन सरकार आतंकी हमले की पूर्व खुफिया सूचना होने के बाद भी कार्रवाई में विफल दिखी. राजपक्षे ने राष्ट्रपति सिरीसेना और पीएम विक्रमसिंघे की सरकार पर निशाना साधा और सुरक्षा के मोर्चे पर विफल रहने का आरोप लगाया. एसएलपीपी ने राजपक्षे के छोटे भाई गोटभाया राजपक्षे की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की घोषणा की जो लिट्टे के खिलाफ असैन्य संघर्ष के दौरान देश के रक्षा मंत्री थे.
गोटभाया राजपक्षे 2019 में राष्ट्रपति चुनाव जीत गये और उन्होंने अपने भाई महिंदा को कार्यवाहक सरकार का प्रधानमंत्री नियुक्त किया. राजपक्षे प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा पर फरवरी में भारत आये थे. वहीं गुरुवार को महिंदा राजपक्षे की जीत पर सबसे पहले बधाई देने वाले दुनिया के नेताओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल रहे.