काम नहीं आया US का ये कदम, अर्मेनिया-अजरबैजान में अब भी जारी हैं झड़पें
येरेवन/बाकू, अर्मेनिया/अजरबैजान. नागोर्नो-करबाख (Nagorno-Karabakh) के पहाड़ी इलाकों में रविवार को अजरबैजान और अर्मेनियाई सेना के बीच ताजा झड़पें हुईं हैं और दोनों पक्षों ने संघर्ष विराम का उल्लंघन करने के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराया है. जबकि इससे पहले शुक्रवार को ही अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ (Mike Pompeo) ने दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच नई शांति वार्ता कराई थी.
दोनों ने लगाए एक-दूसरे पर आरोप
अर्मेनिया ने अजरबैजान की सेना पर नागरिक बस्तियों को निशाना बनाने का आरोप लगाया है. वहीं अजरबैजान ने कहा है कि वह संघर्ष विराम लागू करने के लिए तैयार था, बशर्ते कि अर्मेनियाई सेना युद्ध के मैदान से हट जाए. नागोर्नो-करबाख में स्थानीय अधिकारियों ने अजरबैजान के सुरक्षा बलों पर रात में असेरन और मार्टूनी क्षेत्रों की बस्तियों पर गोलीबारी करने का आरोप लगाया. उधर अजरबैजान ने कहा कि उसकी जगहों पर छोटे हथियारों, मोर्टार, टैंक और हॉवित्जर के से हमला किया गया था.
तुर्की भी है युद्ध में शामिल
अर्मेनियाई राष्ट्रपति Armen Sarkissian ने बाकू पर ‘आक्रामक तरीके से जिद्दी और विनाशकारी’ होने का आरोप लगाया है. अर्मेनियाई प्रधानमंत्री निकोलस पशिनियन ने शनिवार को बातचीत में कहा कि तुर्की युद्ध में सीधे तौर पर शामिल है क्योंकि यह अजरबैजान की मदद करने के लिए भाड़े के सैनिकों को और सशस्त्र लोगों को भेज रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें जानकारी मिली थी कि पाकिस्तान भी सशस्त्र आतंकवादियों को भेजने में मदद कर रहा है. दुनिया की ताकतें तुर्की में एक बड़े युद्ध की आशंका को रोकना चाहती हैं क्योंकि तुर्की अजरबैजान और रूस के लिए अपना मजबूत समर्थन दे रहा है.
अंकारा और नाटो कर रहे आग में घी डालने का काम
तुर्की की राजधानी अंकारा और उसके नाटो सहयोगी इन संघर्षों पर मतभेदों को बढ़ाने का काम कर रहे हैं. पोम्पिओ ने तो तुर्की पर अजरबैजान पक्ष में संघर्ष को बढ़ावा देने का सीधा आरोप लगाया है. हालांकि अंकारा ने इस बात से इनकार किया कि उसने इस संघर्ष को हवा दी है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि संयुक्त राज्य अमेरिका मास्को को इस संघर्ष का समाधान करने में मदद करेगा. बता दें कि 1991-94 के बीच हुए नागोर्नो-करबाख के युद्ध में लगभग 30 हजार लोग मारे गए थे. अर्मेनियाई लोग इसे अपनी ऐतिहासिक मातृभूमि का हिस्सा मानते हैं वहीं अजरबैजान इसे अवैध रूप से कब्जा की गई भूमि कहता है और मांग करता है कि यह उसे वापस मिलनी चाहिए.