खाने-पीने वाले लोग

ब्रह्मा जी ने तलब किया और कहा-तुमको धरती पर जन्म लेना है।तब हमने पूछा-धरती पर कहां जन्म लेना है?उन्होंने कहा- आर्यावर्त,भारत भूमि में।हम समझ गए कि हमें खाने-पीने के लिए भेजा जा रहा है।
आश्रमों में रहने वाले आर्य ज्यादातर उपवास करते हैं।उपवास साधना उनकी एक विशिष्ट साधना है।इसमें साधक को अन्न का त्याग तथा फलाहार करना पड़ता है।अन्न न सही फल ही सही।याने खाने में कोई कमी नहीं होती।हमारी बात से जिन्हें असहमति हो वे ध्यान दें।हमारे देश का आगरा जितना ताजमहल के लिए प्रसिद्ध नहीं है उससे कहीं ज्यादा पंछी पेठा के लिए मशहूर है।मथुरा-वृन्दावन में लोग लाख बांके बिहारी लाल की जय बोलें, राधे-राधे बोलें पर पेड़े का नाम लेते ही लार टपकने लगती है।
इसी तरह महाराष्ट्र में कढ़ी, वड़ा पाव,कंगना रणौत की तरह प्रसिध्द है।बिहार का ठेकुआ, हैदराबाद की बिरियानी, तमिलनाडु की इडली, डोसा, सांभर बड़ा का क्या कहना।इस प्रकार देख लीजिए खाने-पीने के नाम से शहर तक पहचाने जाते हैं।हमारा छत्तीसगढ़ भी पीछे नहीं है। यहां का बरा,फरा,अनरसा, कुसली जो एक बार खाता है वह बार-बार खाता है।खाने-पीने के लिए गढ़ कलेवा ही खुल गया है अपने प्रदेश में।
इससे स्पष्ट है कि इस भूमि में जन्म लेने वाले का जन्म खाने-पीने से ही सार्थक होता है।सुबह उठो,चाय-नाश्ता करो।दोपहर को लंच लो।शाम को भी स्वल्पाहार लेने के बाद रात्रिभोज जिमों।ब्रह्मा ने जब हमें आर्यावर्त पठाया तो हम अच्छी तरह जान गए थे कि जन्म को हमें हर हाल में सार्थक करना है।हमें ब्रह्मलोक की नाक नहीं कटानी है।खाने का सामान तो घर,होटल,रेस्टोरेंट यहां तक कि ठेलों में भी गली-गली मिल जाता है पर पीने के लिए भट्ठी जाना ही पड़ता है।
भला हो सरकार का आजकल जगह-जगह अंग्रेजी और देशी दारू की दुकानें खुल गई हैं।जाइये अपने ब्रांड की बॉटल पेट में छिपाइए और चले आइए, बस जेब में पैसे होना चाहिए।हमने पहले ही ब्रह्मा जी को कह दिया था कि आर्यावर्त में हमें पैसे-कौड़ी की कमी न हो।
अब तो लोगों का पेट खाने पीने की आम चीजों से नहीं भरता इसीलिए वह खाने-पीने की विशेष और नई-नई चीजें तलाशने लगा है।घूस खाता है।कई कर्मचारी तो छड़, सीमेंट,ईंट,पत्थर तक अपने अफसरों के साथ खा जाते हैं, डकार तक नहीं लेते।कमीशन लेन-देन की नहीं खाने की जिंस बन गया है।अनुदान,दान,ग्रांट ऐसा खाते हैं कि हवा तक नहीं लगती।
हमें लगता है कि लोगों के मुंह का स्वाद बिगड़ चुका है।खाद्यान्न की बजाय रेत,बजरी आदि खाने लगे हैं इसीलिए उनके दांत जल्दी झड़ जाते हैं और बत्तीसी दिखाने के लिए नकली सेट लगाना पड़ता है।
हम सोच रहे हैं कि ब्रह्मा जी ने हमें कहीं ऐसी ही अलवा- जलवा चीजें खाने को तो नहीं भेजा है।यदि इसके लिए भेजा है तो वे हमें माफ़ करें।हम छड़, सीमेंट,कोयला,पत्थर,रेत आदि बिल्कुल नहीं खा-पचा सकते क्योंकि हमारा मेदा इन चीजों को पचाने लायक नहीं है।आप पचा सकते हैं तो जरूर जमकर खाएं और इतना खाएं की एसीबी, सीबीआई आदि एजेंसियां छापा मारने को लालायित हो जाएं।

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