सिस्टम की बेशर्मी

हम समझते थे कि एक न एक दिन हमारे सिस्टम को शर्म आएगी पर नहीं आई बेशर्मी और ही बढ़ गई।हमें लगता था यह जनता का,जनता के लिए,जनता के द्वारा सिस्टम है किंतु यह तो    ” जानता ” का सिस्टम है।जो सिस्टम को जानता है वह राज्य करता है,समस्त अधिकारों का उपभोग करता है।जनता बेचारी तो टुकुर-टुकुर मुंह ताका करती है।
बताया गया था कि जनता को कहीं भी काम पाने,रहने,कमाने- खाने का मूल अधिकार है किन्तु काम सिस्टम से ही हो पायेगा, उतना ही कमाएगा जितने में सिर्फ उसका पेट भर सकेगा।लेकिन जो ” जानता ” है उसे काम करने की जरूरत नहीं है।वह सिस्टम से काम करता है,सिस्टम के लिए पैसा कमाता है और खुद कमीशन खाकर मज़े उड़ाता है।
सिस्टम का यह दोगलापन है कि बात जनता की करता है और काम ‘ जानता ‘ का आता है।विधि की जिन्हें जानकारी ही नहीं है वह विधि पूर्वक शासन क्या करेगा ? जिसे विधि का ज्ञान है वह ही विधि पूर्वक शासन करता है। उद्योगपतियों को इंडस्ट्रियल लॉ का ज्ञान होता है तो वह उद्योग के क्षेत्र में एक छत्र राज्य करता है।उसका भवन संसद बन जाता है।अब जनता की झोपड़पट्टी पार्लियामेंट तो नहीं बन सकती।सिस्टम की यही बेशर्मी है कि वह भवन और झोपड़पट्टी के बीच खाई खोद कर रखती है।
रामबाबू एलडीसी हैं।उनके माता-पिता बूढ़े और बीमार रहते हैं।उनकी देख-भाल करने वाला कोई नहीं है इसलिए राम बाबू ट्रांसफर चाहते हैं।अफसर यह बात जानते हैं पर उसका ट्रांसफर नहीं कर सकते क्योंकि रामबाबू सिस्टम नहीं जानते।आवेदन लगाने के बाद वे फ्री हो गए है ,समझते हैं कि अब उन्हें ट्रांसफर मिल जाएगा।अफसर की टेबिल से आवेदन पत्र उड़ता है और समीप रखी रद्दी की टोकरी में वह कब चला जाता है यह अफसर को भी नहीं पता चलता।
शरद बाबू हैं जिनके माँ-बाप पहले ही मर चुके है पर वे भी माँ-बाप की सेवा के नाम पर ही ट्रांसफर चाहते हैं।वे सिस्टम को जानते हैं इसलिए आवेदन के पहले पहुंच का जुगाड़ लगाते हैं।आवेदन पत्र अफसर की टेबिल से  न उड़े इस वजह से उसके ऊपर नोटों का एक बंडल पेपर वेट बनाकर धर देते हैं।तत्काल की नोटशीट के साथ उनका ट्रांसफर ऑर्डर जारी हो जाता है।यह है जनता और ‘ जानता ‘ के बीच फर्क।
इसी तरह पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने जाओ तो यह पता रहना चाहिये कि स्टेशनरी का खर्च तो पुलिस वालों को देना ही पड़ेगा।पुलिस तफ़्तीश करेगी तो पेट्रोल एवं अन्य भत्ता कौन देगा?सरकार तो सिर्फ तनखा देती है।
मंत्रियों से सामान्य तौर पर मिलने जाओ तो एक गुलदस्ता तो लेकर जाना ही पड़ता है।यदि कुछ काम लेकर जा रहे हैं तो चढ़ोत्री लेकर जाइये।मंत्री काम भले भूल जाए पर आपकी चढ़ोत्री याद रहेगी।इससे वह आपसे काम पूछकर कर देगा।
आज कौन सा कार्य ऐसा है जो बिना पैसे के होता है ?बिना पैसे के पत्ता भी नहीं हिलता भाई जी।पैसा फेंको तमाशा देखो।आज प्रैक्टिकल हुए बिना गुजारा नहीं है।प्रैक्टिकल हो जाओ, दुनिया का दस्तूर निभाओ।सिस्टम की बेशर्मी से कुछ सीखो।यदि न सीख सको तो खुद भी बेशर्म हो जाओ।कबीर दास जी ने कहा है-
” कबिरा लहर समुद्र की,
निष्फल कभी न जाय
बगुला परख न जानई,
हंसा चुग-चुग खाय।। “

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