November 25, 2024

दांपत्य जीवन में मधुरता एवं परिवार में खुशहाली लायें : योग गुरु महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक योग केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल कई वर्षो से निःशुल्क योग प्रशिक्षण के द्वारा लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखा रहें है वर्तमान में भी ऑनलाइन माध्यम से यह क्रम अनवरत चल रहा है | वर्तमान कोविड 19 महामारी में भी हजारों योग साधक अपनी योग साधना की निरंतरता से विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं स्वस्थ एवं सकारात्मक रहते हुए सेवा के कार्यों में लगे है साथ ही परिवार में खुशहाली अपने दांपत्य जीवन में मधुरता महसूस कर रहें है |

योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि योग अपने आप में एक पूर्ण विज्ञान माना जाता है जिसके हर आसन तन और मन को तंदुरुस्त रखने में मदद करते है। योग के आसन ना सिर्फ आपके मन और शरीर को स्वस्थ  रखने में सहायक होते है बल्कि यह आपके यौन जीवन को भी बेहतर बनाने में मदद करता है। जब आप शारीरिक और मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होंगे तभी किसी भी उम्र में एक स्वस्थ वैवाहिक जीवन को जी पायेंगे। जीवन हो या शरीर किसी भी क्षेत्र में कोई भी समस्या हो उसका सीधा प्रभाव आपके वैवाहिक जीवन पर पड़ता है। अगर आप किसी तनाव या अवसाद में हैं तो सेक्स के प्रति रूचि कम हो जाएगी। शरीर में किसी भी प्रकार का कष्ट सेक्स के दौरान चरम अवस्था तक पहुंचने में बाधा उत्पन्न कर सकता है। खराब जीवनशैली या किसी भी प्रकार के बीमारी के कारण कई प्रकार के सेक्स संबंधी समस्याओं का सामना आपको करना पड़ सकता है। स्वस्थ और बेहतर सेक्स जीवन का आनंद उठाने के लिए दूसरे उपायों का सहारा लेने के बजाय योग का सहारा लेना सबसे सुरक्षित और सही उपाय होता है। योग आपको हर पल शरीर और मन से युवा बनाए रखने की ताकत रखता है, साथ ही यह वैवाहिक जीवन सुखी बनाने में मदद भी करता है। मगर इसके लिए सतत अभ्यास की आवश्यकता है।  योग के वो आसन जो आपके यौन जीवन को सुखी बनाने में आपकी मदद कर सकते है।

पदमासान,हलासन,तितली आसन, हनुमान आसन, उष्ट्रासन, भुजंगासन,सर्वांगासन,धनुरासन, पश्चिमोतानासन,भद्रासन, योग मुद्रासन,मयूरासन,कटि चक्रासन* योग के इन आसनों से मांसपेशीयां में लचीलापन पेट, मूत्राशय, घुटनों में खिंचाव उत्पन्न, गुप्तांगों में रक्त का संचार,  जननांग सुदृढ़ होता है, छाती को चौड़ा और मजबूत, मेरुदंड और पीठ दर्द में लाभ, वीर्य की दुर्बलता,मासिक धर्म से जुड़े हए विकार , वीर्य और शुक्राणुओं में वृद्धि,डायबिटिज में सुधार, कमर, पेट, कूल्हे, मेरुदंड तथा जंघाओं का सुधार,शारीरिक थकावट तथा मानसिक तनाव दूर होते हैं |यह कामेच्छा जाग्रत करने और संभोग क्रिया की अवधि बढ़ाने में सहायक है। योगाचार्यों अनुसार यह पुरुषों के ‍वीर्य के पतलेपन को दूर करता है। लिंग और योनि को शक्ति प्रदान करता है।

ध्यान ध्यान उच्च अनुभव प्रदान करता है, जो अविनाशी होता है।* मगर यौन संयोग का अनुभव बहुत क्षणिक होता है, जिसे थोड़े समय के बाद याद कर पाना भी मुश्किल होता है। ध्यान का अनुभव एक बार होने के बाद उसे आगे जारी रखोगे तो आनन्द स्थायी और विकसित होता जायेगा, उसका स्थायी प्रभाव मन पर अमिट होगा। फिर उस क्षणिक ऐन्द्रिय सुख की लालसा भला कौन करेगा, जो केवल नाड़ी उत्तेजना से अधिक कुछ नहीं है। ध्यान से प्राप्त अनुभव उच्च एवं यौन अनुभव बिल्कुल निम्न स्तर का होता है। यहाँ यौन सन्तुष्टि का प्रश्न नहीं है, यहाँ तो पूर्ण सन्तुष्टि की बात है। क्षणिक सुख का अंत पीड़ा, उदासी और निराशा से होता है, जबकि ध्यान का सुख नित्य नवीन होता है। उसे आनन्द कहा जाता है, सुख नहीं।
*वज्रोली और सहजोली इसका अभ्यास गृहस्थ लोग करते हैं।* इससे उनका वैवाहिक सम्बन्ध विकसित और आध्यात्मिक होता जायेगा। वज्रोली पुरुषों के लिये है, जिसमें वज्र नाड़ी को नियंत्रित किया जाता है। वज्र नाड़ी ही यौन भावना के लिये जिम्मेदार नाड़ी समूह है। वज्र नाड़ी वीर्य की संचालिका है। यह दो नाड़ियों का समूह है, जो जननेन्द्रिय से नीचे उरुमूल के दोनों बगल में जाती हैं और वहाँ से अंडकोशों में जाकर टेस्टोस्टेरोन नामक हार्मोन के उत्पादक को क्रियाशील बनाती हैं। यह हार्मोन पुरुष की यौन इच्छाओं को नियंत्रित करता है और हृदय को भी संचालित करता रहता है। वज्रोली का अभ्यास पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर किया जाता है। जालंधर बंध में श्वास रोकते हुए  जननेन्द्रिय क्षेत्र और साथ ही साथ अंडकोश, जननेन्द्रिय और वज्र नाड़ी को संकुचित करते है । इस अभ्यास के दौरान मूत्राशय और गुर्दे भी सिकुड़ते हैं। सहजोली, वज्रोली का समानान्तर अभ्यास है, जो स्त्रियों के लिये है। इसका अभ्यास सिद्धयोनि आसन में किया जाता है। इसमें अंतर्कुम्भक करते हुए योनिगत स्नायुओं और मूत्र मार्ग को संकुचित करके ऊपर की ओर खींचा जाता हैं और यह आकुंचन उसी तरह का होता है जैसे तुम पेशाब को रोकने के लिये प्रयत्न करते हो। इस दौरान गर्भाशय, मूत्राशय और गुर्दे भी संकुचित होते हैं।
अभ्यासियों को इन क्रियाओं के प्रति उचित मनोभाव रखना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। योग में यौन जीवन के अभ्यास का प्रयोजन समाधि के अलावा और कुछ नहीं है। अगर यह प्रयोजन मन में रहे तो समाधि तुम्हारा लक्ष्य होगा, यौन जीवन एक क्रिया मात्र होगी तथा योग साधन होगा।

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