रोग एक अनुभव है, वह मन के स्तर पर भी हो सकता है अथवा शरीर के स्तर पर भी : योग गुरू महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक  केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल कई वर्षो से निःशुल्क योग प्रशिक्षण के द्वारा लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखा रहें है वर्तमान में भी ऑनलाइन माध्यम से यह क्रम अनवरत चल रहा है। योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि  सप्तम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21जून के अवसर पर ऑनलाइन माध्यम से सभी सम्मानीय गुरूजी, योग साधक, प्रकृति प्रेमी, सामाजिक संस्थाओ , व्यापार संगठनों , रहवासी समितियों , खेलकूद संगठनों के, सेवा कार्य में लगे सभी संगठनों के पदाधिकारी गण एवं स्कूलों के बच्चों को सादर आमंत्रित किया गया एवं सभी का सम्मान किया गया एवं  योग रत्न के सम्मान के साथ सभी सहभागी साधकों को प्रमाणपत्र डिजिटल माध्यम से दिया जायेगा | योगाचार्य डॉ फूलचंद जैन योगीराज जी का भी आशीर्वाद प्राप्त हुआ | योग दिवस के अवसर पर योग गुरू अग्रवाल ने कहा कि मन क्या है और हम इसे कैसे जानते हैं? ये वर्तुलाकार लहरियाँ क्या हैं? तकनीकी दृष्टि से ये वर्तुलाकार आकृतियाँ हमारी वृत्तियाँ हैं। ये मन की प्रवृत्तियाँ, चेतना की लहरियाँ हैं। यहाँ स्मरण में रखने की बात यह है कि मन और वृत्तियाँ दोनों एक नहीं हैं। वृत्तियों पर अंकुश लगाने का अर्थ मन पर अंकुश लगाना नहीं है। जब हम किसी निर्मित अनुभूति का प्रतिरोध करते हैं तो हम मन की एक अनुभूति विशेष को रोकते हैं, मन का प्रतिरोध नहीं करते। जब मन की एक अनुभूति का दमन करते हैं तो मन का दमन नहीं करते, क्योंकि मन और अनुभूति एक ही वस्तु नहीं हैं। वे दो पृथक्-पृथक् वस्तुएँ हैं।

योग, आधुनिक मनोविज्ञान, दर्शन और विज्ञान सभी मानते हैं कि मन एक शक्ति है। मन संपूर्ण जागरण है और यह मन तत्त्वों से निर्मित है। चौबीस तत्त्वों से निर्मित यह मन है। यदि उन चौबीस तत्त्वों का विघटन कर दिया जाय, खण्ड-खण्ड कर दिया जाय, एक-दूसरे से विलग कर दिया जाय तो मन नष्ट हो जाता है। अन्यथा मन खत्म नहीं होता। इस तरह योग में हम मन का दमन नहीं करते, मन पर आघात नहीं करते, मन के साथ छेड़-छाड़ नहीं करते, बल्कि हम मन की वृत्तियों से निबटते हैं।  योग में यह एक महत्त्वपूर्ण विषय है, जिसकी उपेक्षा योग सिखाने वाले लोग बहुधा करते हैं। संस्कारों का विज्ञान उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना शरीर के तत्त्वों का अध्ययन। हम लोगों ने अस्थि, चर्म और रक्तादि के विषय में तो शरीर का विश्लेषण बहुत कर लिया, किन्तु मनुष्य इससे भी अधिक कुछ और है, वह केवल इतना ही नहीं है। हम अगर इस रहस्य को स्वीकार करें तो हमारे अनुसंधान का कार्य अवश्य ही आगे बढ़ेगा।

रोग एक अनुभव है, वह मन के स्तर पर भी हो सकता है अथवा शरीर के स्तर पर भी। सिरदर्द, सर्दी, खाँसी, क्षयरोग, कैंसर या अन्य कोई रोग केवल एक अनुभव ही हैं। यहाँ तक कि भयंकर घातक रोग भी एक अनुभव से अधिक और क्या हो सकता है? तुम अपने बगीचे में बैठकर घास काटते हो। कुछ दिनों बाद घास फिर से बढ़ जाती है, क्योंकि उनके बीज तो वहाँ पड़े होते हैं। इसी भाँति इस जीवन के अनुभव प्रतीकात्मक रूप से मनुष्य की चेतना में विद्यमान रहते हैं। ये अनुभव जीवन में घटनाओं, क्रियाकलापों, बीमारियों, स्वप्नों, चित्रों, विचारों और कभी-कभी पागलपन के रूप में बाहर आते हैं। इन संस्कारों या आदि-रूपों को ऊपरी सतह पर लाने के लिए अगर हमें कोई रास्ता मिल जाये, तो जीवन की बहुत सी समस्याओं, भयों और कुंठाओं को रातों-रात समूल नष्ट किया जा सकता है। कुछ निश्चित योगाभ्यास, खासकर योगनिद्रा से यह अनुभव बिल्कुल संभव है।
सामूहिक योगाभ्यास करते हुए महासंकल्प लिया गया, स्वयं को एक स्वस्थ, शान्तिप्रिय, आनन्दपूर्ण एवं प्रेमपूर्ण मानव बनाने का,  अपने प्रत्येक कार्य से अपने चारों और सुख, समृद्धि एवं शान्तिमय,  स्नेहपूर्ण वातावरण बनाने का,अहम् एवं अज्ञान केन्द्रित जीवन के स्थान पर योगमय, व विवेकपूर्ण जीवन जीते हुए विश्व बन्धुत्व एवं एकत्व के भाव के साथ  पूरे विश्व को  स्वयं में समाहित करने हेतु पूर्ण पुरुषार्थ करने का,वसुधैव कुटुम्बकम् के सह-अस्तित्व के सिद्धान्त के प्रति पूर्ण आस्था रखते हुए सबके प्रति, कृतज्ञ भाव से आत्मवत व्यवहार व आचरण करने का, उपस्थित हर व्यक्ति से एकात्म होने का संकल्प  लिया गया।

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