कबीरदास जयंती : संवेदना से जुड़ने से है सेवा की सार्थकता – योग गुरु महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल कई वर्षो से निःशुल्क योग प्रशिक्षण के द्वारा लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखा रहें है वर्तमान में भी ऑनलाइन माध्यम से यह क्रम अनवरत चल रहा है | योग प्रशिक्षण के दौरान केंद्र पर सभी समाज की जयंती, महापुरुषों की जयंती, सभी धार्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय पर्व उत्साह पूर्वक मनाये जाते है, स्वच्छता, नशामुक्ति वृक्षारोपण, पर्यावरण, शिक्षा, खेलकूद जैसे विषय पर जागरूकता अभियान एवं सभी राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय दिवस धूमधाम से मनाते हुए साधकों स्वस्थ रहते हुए सेवा कार्य करते रहने के लिए प्रेरित किया जाता है |
संत कबीरदास जयंती के अवसर पर योग गुरु अग्रवाल ने कहा कि हृदय हमारी भावनाओं का, हमारी संवेदनाओं का केंद्र है। हम विचारशील होते हैं मस्तिष्क से और संवेदनशील होते हैं हृदय से । विचारशील तो हम हैं, तर्कशील तो हैं; लेकिन संवेदनशील भी हैं; इसमें थोड़ा-सा संदेह है। हमारा जो जीवनक्रम है उसमें संवेदनाएँ दब गई हैं, छिप गई हैं। हमारे जीवन में भावनाओं का विकास और भावनाओं की सुगंध, दोनों दिखाई नहीं देते हैं ।
सेवा का मार्ग बहुत सरल है, किंतु यह सेवा तभी सार्थक रंग लाती है, जब इसके साथ संवेदना जुड़ती है और संवेदना तभी लोगों के मन में जगती है, जब दूसरों की पीड़ा हमें अपनी प्रतीत होती है। जब दूसरों की परेशानी हमें अपनी परेशानी महसूस होती है, तब सेवा के लिए उठे हाथ पीछे नहीं होते। तब सेवा के लिए आगे बढ़े कदम पीछे नहीं लौटते। जिस दिन मानव समाज इस संवेदना को महसूस करने लगेगा तब हमारे देश व समाज की दशा व दिशा, दोनों ही बदल जाएँगी और तब हमारे आस-पास अच्छे कार्यों की, अच्छे लोगों की बाढ़ आ जाएगी और फिर इस सेवा-संवेदना के कारण धरती पर ही स्वर्ग की सुखद अनुभूति होने लगेगी।
कबीरदास जयंती 24 जून को मनाई जाती है,कबीर दास का जन्म ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए प्रतिवर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन उनकी जयंती मनाई जाती है। कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवि थे, वे ज्ञानाश्रयी- निर्गुण  शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समाज की बुराइयों को दूर करने में लगा दिया। दोहे के रूप में उनकी रचनाएं आज भी गायी गुनगुनाई जाती हैं। कबीर दास जी का जन्म काशी में 1398 में हुआ था, जबकि उनका निधन 1518 में मगहर में हुआ था।
कबीरदास जी ने स्वर्ग और नर्क को लेकर समाज में व्याप्त भ्रांतियों को तोड़ने के लिए एक बड़ी मिसाल पेश की। अपना पूरा जीवन काशी में बिताने वाले संत कबीर दास ने अपने अंतिम समय के लिए एक ऐसे स्थान को चुना, जिसे उन दिनों अंधविश्वास कायम था कि वहां पर मरने से व्यक्ति नरक में जाता है।
संत कबीर ने अपने पूरे जीवन काल में पाखंड, अंधविश्वास और व्यक्ति पूजा का विरोध करते हुए अपनी अमृतवााणी से लोगों को एकता का पाठ पढ़ाया। आज भी कबीर की वाणी अमृत के समान है, जो व्यक्ति को नया जीवन देने का काम कर रही है। संत कबीर के लोकप्रिय दोहे हमें अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में ले जाने का काम करते हैं।
कबीरदास जी ने अपने पूरे जीवनकाल में लोगों के बीच , प्रेम,सद्भाव और एकता कायम करने का प्रयास किया। उन्होंने अपनी अमृत वाणी से ही नहीं बल्कि स्वयं का उदाहरण पेश करते हुए लोगों के भ्रम को तोड़ने की कोशिश की थी। उनके नाम से कबीर पंथ संप्रदाय की स्थापना भी गई थी। धर्मदास ने उनकी वाणियों का संग्रह ” बीजक ” नाम के ग्रंथ मे किया जिसके तीन मुख्य भाग हैं- साखी, सबद (पद), रमैनी।
कबीरदास जी ने स्वर्ग और नर्क को लेकर समाज में व्याप्त भ्रांतियों को तोड़ने के लिए एक बड़ी मिसाल पेश की। अपना पूरा जीवन काशी में बिताने वाले संत कबीर दास ने अपने अंतिम समय के लिए एक ऐसे स्थान को चुना, जिसे उन दिनों अंधविश्वास कायम था कि वहां पर मरने से व्यक्ति नरक में जाता है। कबीर दास जी ने लोगों को इस भ्रम को तोड़ने के लिए अपने अंतिम समय में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के पास मगहर चले गए और उन्होंने वहीं पर अपनी देह त्यागी।
कबीरदास जी का जब मगहर में देहावसान हो गया तो उनके हिंदू और मुस्लिम भक्तों में उनके शव के अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हो गया। कहते हैं कि उस समय जब उनके मृत शरीर से चादर हटाई गई तो वहां पर लोगों को सिर्फ फूलों का ढेर मिला। जिसके बाद आधे फूल से हिंदुओं ने अपनी रीति-रिवाज के मुताबिक और मुस्लिम ने अपनी परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार किया।

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