हमारी सोच, हमारा चिंतन हमारे शरीर तथा हमारे क्रिया-कलापों पर गहरा प्रभाव डालते हैं : योग गुरु महेश अग्रवाल

भोपाल.आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि एक डॉक्टर की मुस्कुराहट, उसकी दवाओं से कहीं ज्यादा असर करती है। डॉक्टर का दर्जा हमारे समाज में बहुत ऊंचा है. हर साल 1 जुलाई को भारत में डॉक्टर्स डे मनाया जाता है. भारत के मशहूर चिकित्सक डॉ. बिधान चन्द्र रॉय को श्रद्धांजलि देने के लिए डॉक्टर्स डे मनाया जाता है. कई डॉक्टर्स समाज में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के साथ साथ लगातार परिवर्तन लाने की कोशिश भी कर रहे हैं.

योग गुरु अग्रवाल ने कहा कि आपको शायद कभी ऐसा अनुभव हुआ हो जो कि किसी बहुत ही मधुर भाषी, कुशल और सुप्रसिद्ध चिकित्सक ने किसी रोगी का परीक्षण करते हुए मीठे ढंग से, प्रभावशाली शब्दों में रोगी से कहा हो- ‘फिक्र न करें, आपकी जांच मैंने कर ली है। चिन्ता की कोई बात नहीं है। आप बहुत जल्दी ठीक हो जाएंगे।’ आपने देखा होगा कि चिकित्सक के ऐसे मधुर व्यवहार और है आश्वासन से रोगी की आधी बीमारी उसी वक्त थी ठीक हो जाती है। उसके मुरझाए हुए चेहरे पर एक रौनक सी आ जाती है। उसके दिलो दिमाग से एक बोझ सा हट जाता है और हाथ पैरों में जान आ जाती है। ऐसा क्यों होता है? ऐसा सिर्फ इसीलिए होता है कि वह रोगी चिन्ता, निराशा और घबराहट से मुक्त हो जाता है। अधिकांश स्त्री-पुरुषों का ऐसा स्वभाव ही होता है कि जरा से कष्ट से घबरा जाते हैं। मन में आशंकाएं करने लगते हैं। ऐसे लोग खुद चाहते हैं कि कोई उनको ढांढस दे, हिम्मत बंधाए और उनकी यही इच्छा चिकित्सक के आश्वासन से पूरी हो जाती है। तो उन्हें तत्काल ऐसा लगता है कि भई, अमुक चिकित्सक तो कमाल का व्यक्ति है, उसके हाथ में शिफ़ा है। आधी बीमारी तो उसके हाथ लगाते ही दूर हो जाती है। रोगी की मानसिकता पर जो जादुई असर चिकित्सक से मिलने पर होता है वैसा असर अपने मनोबल से, इच्छा शक्ति से और विवेक से काम लेकर रोगी खुद भी पैदा कर सकता है। जो व्यक्ति फिसल कर गिर पड़ने पर खुद ही उठ कर खड़ा हो जाए उसे किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ती। उठना तो होगा ही, भले ही आप खुद उठकर खड़े हो जाएं या दूसरे आपको उठा कर खड़ा करें। और दरअसल खुद का उठकर खड़े होना ज्यादा अच्छा है क्योंकि यह आपकी क्षमता का प्रतीक है और यह खबर देता है कि बाद में आप फिर से न गिरेंगे।

आधुनिक समय में हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर तथा विविध कष्ट साध्य, असाध्य प्राण संघातक मनोकायिक व्याधियों से पीड़ित रोगियों की संख्या तीव्र गति से बढ़ी है। इसके अलावा उच्च रक्तचाप, सर्वाइकल, घुटने का दर्द, मोतियाबिंद, बवासीर, मोटापा आदि ऐसे अनगिनत रोग हैं जिनकी संख्या में भारी इजाफा हुआ है। प्रसव ऑपरेशन हो रहे हैं। आज के कुछ वर्षों पूर्व तक इस प्रकार के रोग बहुत कम संख्या में हुआ करते थे। इन रोगों की विकरालता देखकर इस युग को व्याधि युग भी कह दिया जाए तो अनुपयुक्त नहीं होगा। रोगों के बढ़ने के कई कारण है। हमारा खान-पान, रहन-सहन, जीवन के तौर-तरीकों में भारी परिवर्तन आया है। हमारा जीवन सुविधाभोगी हो गया है। ‘‘अल्प मृत्यु और बुढ़ापे को रोकने के लिए सौ दवाओं की एक दवा है, सुविधाजनक जीवन। जिस कार्य से शरीर और मन पर अत्यधिक दबाव पड़े, उसे छोड़ देना चाहिए। अपनी शक्ति व सामर्थ्य क्षमता तथा उम्र के अनुसार अपने दैनिक कार्यक्रम में आवश्यकतानुसार परिवर्तन करते रहना चाहिए। इसी सूत्र को पकड़कर यदि आप चाहें तो लंबी उम्र प्राप्त कर सकते है और अनेक लोगों को जीवन के कष्टों और रोगों से मुक्ति दिला सकते है।’’ आज भी पुराने लोग स्वस्थ, मस्त व दीर्घजीवी हैं। उनके पीछे कई कारण है। आज भी हम जीवन जीने के तौर तरीके, खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार में बदलाव लाये तो हम भी कुछ अर्थों में स्वस्थ, मस्त, प्रसन्न व तनावरहित रह सकते हैं। चिंताओं को अपने पास न फटकने दें। निरन्तर प्रसन्न रहें। भोजन को खूब चबा-चबा कर खायें ताकि दांतों का काम पेट को ना करना पड़े। हरी सब्जियां व फलों का सेवन करें। चर्बीदार पदार्थों से दूर रहे। अंततः कहा जा सकता है कि श्रमशीलता, स्वच्छता, सुव्यवस्था, नियमितता, संतुलित जीवन, सात्विक आहार, पर्याप्त मात्रा में नींद तथा प्राकृतिक तौर तरीके से जीवनयापन ही दीर्घ जीवन का रहस्य है। कुछ बातों को अपनाकर हम तनाव रहित स्वस्थ व दीर्घ जीवन व्यतीत कर सकते हैंः  तनाव रहित रहें। अपने तनाव को पहचाने।
महात्वाकांक्षी योजनाएं न बनाए। अनावश्यक संकल्पों को छोड़ दें।नियमित व व्यवस्थित दिनचर्या अपनाएं। आवश्यक व जरूरी कामों की सूची बनाएं। जल्दी सोये व जल्दी उठे। एक साथ सभी कार्य हाथ में न लें। एक-एक कार्य को प्राथमिकता के आधार पर करते जाएं। काम टालू प्रवृत्ति से बचे। आज का काम आज करें।अनावश्यक ऊर्जा का क्षय नहीं करें।फिजूल की बातें, अनावश्यक विवाद व बहस से दूर रहने का प्रयास करें।दूसरे की आलोचना न करें।अच्छे मित्र बनाएं। फिजूलखर्ची व दिखावे में विश्वास न करें। गलत खान-पान से दूर रहें। धैय व संतोष रखें। दूसरों की सहायता करें। पीड़ित व परेशान व्यक्ति को सहानुभूति की आवश्यकता रहती है। अतः इसमें कंजूसी न बरतें। काम के बीच थकान अनुभव होने पर काम बंद कर दें। कुछ देर टहले, लेट जाए। कुछ समय आंखें बंद कर लें व आराम करें। पारिवारिक वातावरण बहुत ही शांत रहे। इसके लिए सभी एक साथ प्रार्थना करें, चर्चा करें तथा संभव हो तो भोजन भी एक साथ करें। साधु-संतों का समागम करें। अच्छा साहित्य पढ़े, अच्छे गीत, लेख पढ़े व संकलन करें। इससे बहुत मानसिक शांति मिलती है। हमारे जीवन की रचना हमारे मन द्वारा होती है। जैसा हम सोचते हैं, वैसे ही हम हो जाते हैं।’हमारी सोच, हमारा चिंतन हमारे शरीर तथा हमारे क्रिया-कलापों पर गहरा प्रभाव डालते हैं।

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