Diabetes के किन मरीजों को कराना चाहिए यूरिन टेस्ट, कब बजती है खतरे की घंटी?
क्या आप जानते हैं यूरिन टेस्ट में क्या है कीटोन्स और ग्लूकोज लेवल का अर्थ। आखिर क्यों डायबिटीज के मरीजों को कराना होता है यूरिन टेस्ट, आइए जानते हैं।
डायबिटीज जैसी बीमारी से जूझने वाले मरीजों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। डायबिटीज के दौरान व्यक्ति का शरीर में या तो इंसुलिन का उत्पादन बंद हो जाता है, या फिर शरीर इंसुलिन का उपयोग नहीं कर पाता है। ज्ञात हो कि डायबिटीज के दौरान रक्त शर्करा का स्तर बहुत तेजी से बढ़ने लगता है। वहीं टाइप 1 डायबिटीज के दौरान जब ऐसा होता है तो कोशिका को ग्लूकोज नहीं मिल रहा होता। जिसकी वजह से वह शरीर का फैट जलाने लगता है। इसी के कारण कीटोन्स नाम का एक रसायन पैदा होता है।
रसायन के पैदा होने की वजह से रक्त अधिक एसिडिक हो जाता है, इसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति या तो कोमा में चला जाता है। या फिर उसकी मृत्यु हो जाती है। ऐसे में आपको बता दें कि यूरिन टेस्ट डायबिटीज के जांच के लिए नहीं होता बल्कि इसके जरिए कीटोन्स का स्तर पता चलता है। इसके अलावा कई बार शरीर में डायबिटीज की स्थिति की जांच करने के लिए भी यूरिन टेस्ट कराया जाता है।
ग्लूकोज स्तर की जांच कैसे होती है
- ब्लड शुगर लेवल 300 mg/dl से अधिक होना
- बीमार होना
- डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के लक्षण दिखना।
- जी मिचलाना और उल्टी आना
- उपचार के बावजूद ब्लड शुगर लेवल का उच्च स्तर पर बने रहना।
- हमेशा थका हुआ महसूस करना
- प्यास अधिक लगना या मुंह सुखते रहना।
- बार बार पेशाब आना
- मुंह से किसी तरह की स्मेल आना
- अगर गर्भावस्था में डायबिटीज है
- एक्सरसाइज करने की सोच रहे हैं और ब्लड शुगर लेवल हाई है।
कीटोन्स आमतौर पर टाइप 1 डायबिटीज के मरीजों में अधिक देखा जाता है। जबकि टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों में यह कम ही देखने को मिलता है। नेशनल हेल्थ सर्विस के मुताबिक 0.6 मिलीमोल्स प्रति लीटर एक सामान्य परिणाम है। जबकि इससे अधिक होने पर व्यक्ति की स्थिति को तीन अलग – अलग हिस्सों में बाँटा गया है।