सावरकर नहीं होते तो 1857 स्‍वतंत्रता संग्राम इतिहास में नहीं होता : अमित शाह

वाराणसी. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने यहां गुरुवार को कहा कि “भारत का गलत इतिहास लिखे जाने के लिए अंग्रेज इतिहासकारों और वामपंथियों को कोसना और गाली देना बंद करें. हमें अपनी मेहनत को इतिहास लेखन पर केंद्रित करना होगा.” बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के भारत अध्ययन केंद्र द्वारा ‘गुप्तवंश के वीर : स्कंदगुप्त विक्रमादित्य का ऐतिहासिक पुन: स्मरण एवं भारत राष्ट्र का राजनीतिक भविष्य’ विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि शाह ने कहा, “कब तक हम वामपंथियों को गाली देंगे और अंग्रेज इतिहासकारों को दोष देंगे? हमें अंग्रेज, वामपंथी और मुगलकालीन इतिहासकारों को दोष देना बंद कर इतिहास लेखन में अपनी मेहनत करने की दिशा को केंद्रित करना होगा. अब जरूरत है कि देश के गौरवशाली उस इतिहास को सत्य के आधार पर लिखें, जिनके साथ अन्याय हुआ, उन्हें न्याय दिलाएं.”

उन्होंने कहा, “इतिहास के पुनर्लेखन की जिम्मेदारी देश के विद्वानों और जनता की है. क्या हमारे देश के इतिहासकार 200 व्यक्तित्व और 25 साम्राज्यों को इतिहास का हिस्सा नहीं बना सकते? हम कब तक दूसरों को कोसते रहेंगे?”

शाह ने कहा, “1857 की क्रांति को वीर सावरकर ने पहला स्वतंत्रता संग्राम का नाम न दिया होता, तो आज हम उसे विप्लव के नाम से जानते. सावरकर के कारण ही यह क्रांति इतिहास का हिस्सा बन पाई. नहीं तो हम अंग्रेजों द्वारा लिखे गए इतिहास को ही सत्य मानते.”

उन्होंने कहा कि चंद्रगुप्त विक्रमादित्य को इतिहास में बहुत प्रसिद्धि मिली है, लेकिन सम्राट स्कंदगुप्त के साथ इतिहास में अन्याय हुआ है. उनके पराक्रम की जितनी प्रशंसा होनी चाहिए थी, उतनी शायद नहीं हुई है. इसी कालखंड में देश में शाकुंतलम्, पंचतंत्र जैसे अनेक उत्कृष्ट साहित्यों की रचना हुई थी.

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