विधिक शिक्षा भारतीय भाषाओं में होनी चाहिए : कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल
वर्धा. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा है कि विधिक शिक्षा भारतीय भाषाओं में होनी चाहिए। इस विश्वविद्यालय में हिंदी में विधि की पढ़ाई प्रारंभ कर दी है और आने वाले समय में अन्य भारतीय भाषाओं में भी विधि की पढ़ाई की व्यवस्था करने की योजना है। प्रो. शुक्ल विश्वविद्यालय के विधि विभाग द्वारा ‘भारतीय विधिक व्यवस्था एवं विधिक शिक्षा’ विषय पर आयोजित तरंगाधारित राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं में विधि की शुरुआत एक क्रांतिकारी परिवर्तन की शुरुआत है। न्याय जनता के संप्रेषण की भाषा में होना चाहिए। महात्मा गांधी और मदन मोहन मालवीय ने भारतीय भाषाओं को न्यायालय में प्रयोग करने का स्वप्न देखा था। श्रेष्ठ पुरुष वहीं है जो न्याय के पथ पर चलता है। भारतीय संविधान में भारतीय भाषाओं को विशेष स्थान प्रदान किया है। उन्होंने विश्वास प्रकट किया गया कि आने वाले वर्षों में भारत, भारत की जबान में बोलेगा, काम करेगा, न्याय प्राप्त करेगा और शिक्षा प्राप्त करेगा और अंततः स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व की लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को प्राप्त करेगा। प्रो. शुक्ल ने कहा कि विधि व्यवस्था एवं विधि शिक्षा को देश की भाषा में होना आवश्यक है।
राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन बुधवार 25 अगस्त को मुंबई उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर. सी. चव्हाण के द्वारा किया गया। न्यायमूर्ति चव्हाण ने कहा कि अगर विधि व्यवस्था ना हो तो जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली स्थिति बन जाती है। जो कानून व्यवस्था 1947 के बाद हमें मिली है उसकी समीक्षा होनी चाहिए। अगर उसमें कोई त्रुटि या गलती है तो उसे दूर किया जाना चाहिए। विधि व्यवस्था और कानूनों में लगातार सुधार करने की आवश्यकता है, समय-समय पर इसकी समीक्षा करनी चाहिए और जो कानून न्याय देने में सक्षम ना हो उसका त्याग करना चाहिए। उन्होंने बताया कि अनेक विधि विद्वानों का मानना है कि न्यायालय के निर्णयों का अनुवाद सभी भारतीय भाषाओं में होना चाहिए और साथ ही सभी भारतीय भाषाओं में कानून के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था होनी चाहिए। जनता में कानून का डर नहीं बल्कि न्याय पर विश्वास होना चाहिए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बार काउंसिल ऑफ इंडिया, विधिक शिक्षा समिति के सदस्य एवं काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के सेवानिवृत्त संकायाध्यक्ष प्रो. बी. एन. पाण्डेय ने कहा कि ब्रिटिश न्याय व्यवस्था अभियोग मूलक है यानी न्याय को वरीयता देने वाली है। वही कॉमन लॉ सिस्टम जांच मूलक है इसमें सत्य को वरीयता दी जाती है। उन्होंने बताया कि भारतीय विधिक प्रणाली एक मिश्रित या खुली प्रणाली हैं। इसमें कैसे सुधार किया जाए या उसे बेहतर कैसे बनाया जाए इस पर काम करने की जरूरत है।
कार्यक्रम का संयोजन एवं स्वागत वक्तव्य विधि विभाग के अध्यक्ष प्रो. चतुर्भुज नाथ तिवारी ने दिया। सत्र का संचालन दर्शन एवं संस्कृति विभाग के अध्यक्ष डॉ. जयंत उपाध्याय ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. चंद्रकांत रागीट ने किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉ. वागीश राज शुक्ल द्वारा मंगलाचरण की प्रस्तुति से किया गया । कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के विभिन्न विद्यापीठों के अधिष्ठातागण, विभागाध्यक्ष, अध्यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थियों की उपस्थिति रही।