जिले में 2 करोड़ 19 लाख 95 हजार से अधिक कोसा फल का उत्पादन, कोसा रेशम निर्माण से रोजगार के अवसर बढे़
बिलासपुर. बिलासपुर जिले में विगत 5 वर्षाें में 2 करोड़ 19 लाख 95 हजार से अधिक कोसा फल का उत्पादन कर 3 करोड़ 26 लाख 11 हजार से अधिक की राशि हितग्राहियों का वितरित की गई। बिलासपुर जिला कोसा रेशम निर्माण में अग्रिण जिलों में शामिल है। जिले में रेशम विकास की गतिविधियों से विगत पांच वर्षाें में अनुसूचित वर्ग के 148, जनजाति वर्ग के 176, अन्य वर्ग के 508 तथा 434 महिला हितग्राहियों को लाभान्वित किया गया। यहां तसर ककून उत्पादन मुख्य रूप से किया जाता है। रेशम विकास कार्य गतिविधियों से ग्रामीण एवं वन क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़े है। रेशम के उत्पादन क्षेत्र में जरूरत मंद लोगों को हुनरमंद बनाया जा रहा है। जिससे उनकी आय भी हो रही है। रेशम उत्पादन के लिए पौध रोपण, कोसा उत्पादन व धागा उत्पादन से जुड़े लोग पूर्ण रूप से गांव में निवासरत होते है।
जिले में वर्तमान में तसर सेक्टर में 250 हेक्टेयर तसर प्लांटेशन किया गया है। जिसका लगभग 500 रेशम कीट पालनकर्ता उपयोग करते है। वर्तमान में 23 सेरीकल्चर किसान समूह ककून उत्पादन में लगे हुए है। ककून से तसर कोसा उत्पादन के लिए 15 महिला स्व सहायता समूहों को प्रशिक्षण दिया गया है तथा लाभान्वित हितग्राहियों को 165 रीलिंग और मशीनें प्रदान की गई है। महिला कैदियों को भी उनके कौशल विकास के लिए तसर प्रशिक्षण प्रदान कर 100 रीलिंग मशीनें उपलब्ध कराई गई है। बिलासपुर जिले में संचालित 20 रेशम केंद्रों में कोसा उत्पादन एवं फार्म संधारण कार्य में 372 हितग्राही श्रमिक कार्य कर रहे है। तखतपुर विकासखण्ड के गोबंद, लमेर, नेवसा, जोंकी, कुंआ, बेलपान, करका, जोगीपुर और पोड़ी में तसर केंद्र स्थापित है। इसी तरह कोटा विकासखण्ड के तसर केंद्र सिलदहा, मेण्ड्रापारा, शीश और गरवट में तसर केंद्र स्थापित है।
सिलदहा के तसर केंद्र में ककून बैंक बनाया गया है। बिल्हा विकासखण्ड के बरतोरी, बाम्हू, खैरा और सोंठी और मस्तूरी विकासखण्ड के दर्राभाठा और नवागांव, बिटकुला में तसर केंद्र स्थापित कर रेशम विकास की गतिविधियां संचालित की जा रही है। वर्तमान में जिले के कोटा विकासखण्ड के बासाझांर, करका, मेण्ड्रापारा, बिजराकापा, सेमरिया, नकटाबांधा, जमुनाही, परसदा, कोदवा, छतौना और भरारी वन ग्रामों में कोसा कृमी पालन का कार्य किया जा रहा है। कोसा धागाकरण का कार्य अकलतरी, लखराम, गोबंद, मेण्ड्रापारा, सागर, कर्रा, बांसाझाल और सेंट्रल जेल में किया जा रहा है। इस कार्य में अधिकांशतः महिलाएं कार्यरत है। जिससे उन्हें अच्छी आय हो रही है। जिले के एक हिस्से को रेशम विकास गतिविधियों के लिए छत्तीसगढ़ में सिल्क हब के रूप में जाना जाता है। जिले में केंद्रीय रेशम बोर्ड एवं राज्य शासन के कई महत्वपूर्ण संस्थान स्थापित है, जो जिले के जरूरत मंद और ग्रामीण लोगों का कौशल विकास कर उन्हें सशक्त बनाने में लगे हुए है।