भारतीय संस्कृति के सभी पर्व योग की शिक्षा के साथ अनुशासन, स्वच्छता, आत्मीयता, संकल्पों को गति एवं शुभ भाव में रहने का देते है संदेश
भारतीय संस्कृति के सभी पर्व योग की शिक्षा के साथ अनुशासन,स्वच्छता, आत्मीयता, संकल्पों को गति, दिनचर्या में परिवर्तन एवं शुभ भाव में रहने का संदेश देते है | रंगों का त्यौहार होली एवं रंगपंचमी धूम धाम से उत्साह पूर्वक मनाया जायेगा | आदर्श योग आध्यात्मिक केन्द्र स्वर्ण जयंती पार्क में पानी के कुंड के पास कोलार रोड भोपाल पर योग साधको एवं प्रकृति प्रेमीजन द्वारा होली महोत्सव धूमधाम से सामूहिक योग अभ्यास करते हुए मनाया जायेगा | समय सुबह 8 से 9 बजे तक | दिनाँक 29 मार्च 2021| इस अवसर पर योग गुरु महेश अग्रवाल ने सभी को हार्दिक शुभकामनायें देते हुए कहा कि घर पर रहकर योग करें परिवार के साथ योग करें एवं घर पर रहकर ही त्यौहार मनाये,मास्क का उपयोग करें |
होली के रंगों का आध्यात्मिक महत्व बताते हुए कहा कि होली भारत का एक विशिष्ट सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक त्यौहार है। अध्यात्म का अर्थ है मनुष्य का ईश्वर से संबंधित होना या स्वयं का स्वयं के साथ संबंधित होना है। इसलिए होली मानव का परमात्मा से एवं स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का पर्व है। होली रंगों का त्यौहार है। रंग सिर्फ प्रकृति और चित्रों में ही नहीं हमारी आंतरिक ऊर्जा में भी छिपे होते हैं, जिसे हम आभामंडल कहते है |एक तरह से यही आभामंडल विभिन्न रंगों का समवाय है, संगठन है। हमारे जीवन पर रंगों का गहरा प्रभाव होता है, हमारा चिन्तन भी रंगों के सहयोग से ही होता है। हमारी गति भी रंगों के सहयोग से ही होती है। हमारा आभामंडल, जो सर्वाधिक शक्तिशाली होता है, वह भी रंगों की ही अनुकृति है। पहले आदमी की पहचान चमड़ी और रंग-रूप से होती थी। आज वैज्ञानिक दृष्टि इतनी विकसित हो गई कि अब पहचान त्वचा से नहीं, आभामंडल से होती है। होली का अवसर अध्यात्म के लोगों के लिये ज्यादा उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसलिये अध्यात्म एवं योग केे विशेषज्ञ विभिन्न रंगों के ध्यान एवं साधना के प्रयोगों से आभामंडल को सशक्त बनाते हैं। इस तरह होली कोरा आमोद-प्रमोद का ही नहीं, अध्यात्म का भी अनूठा पर्व है।
होली का त्यौहार एवं उससेे जुड़ी बसंत ऋतु दोनों ही पुरुषार्थ के प्रतीक हैं। इस अवसर पर प्रकृति सारी खुशियां स्वयं में समेटकर दुलहन की तरह सजी-संवरी होती है। पुराने की विदाई होती है और नया आता है। पेड-पौधे भी इस ऋतु में नया परिधान धारण कर लेते हैं। बसंत का मतलब ही है नया। नया जोश, नई आशा, नया उल्लास और नयी प्रेरणा- यह बसंत का महत्वपूर्ण अवदान है और इसकी प्रस्तुति का बहाना है होली जैसा अनूठा एवं विलक्षण पर्व। मनुष्य भीतर से खुलता है वक्त का पारदर्शी टुकड़ा बनकर, सपने सजाता है और उनमें सचाई का रंग भरने का प्राणवान संकल्प करता है। इसलिय होली को वास्तविक रूप में मनाने के लिये माहौल भी चाहिए और मन भी। तभी हम मन की गंदी परतों को उतार कर न केवल बाहरी बल्कि भीतर परिवेश को मजबूत बना सकते हैं।
होली पर रंगों की गहन साधना हमारी संवदेनाओं को भी उजली करती है। क्योंकि असल में होली बुराइयों के विरुद्ध उठा एक प्रयत्न है, इसी से जिंदगी जीने का नया अंदाज मिलता है, औरों के दुख-दर्द को बाँटा जाता है, बिखरती मानवीय संवेदनाओं को जोड़ा जाता है। पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु- ये पांच तत्व हैं। शरीर इन्हीं पांच तत्वों से निर्मित है। इनके अलग-अलग स्थान निर्धारित हैं। माना गया है कि पैर के घुटने तक का स्थान पृथ्वी तत्व प्रधान है। घुटने से लेकर दृष्टि तक का स्थान जल तत्व प्रधान है। कटि से लेकर पेट तक का भाग अग्नि तत्व प्रधान है। वहां से हृदय तक का भाग आकाश तत्व प्रधान है। तत्वों के अपने रंग भी होते हैं। पृथ्वी तत्व का रंग पीला है। जल तत्व का रंग श्वेत है। अग्नितत्व का रंग लाल है। वायुतत्व का रंग हरा-नीला है। आकाशतत्व का रंग नीला है। ये रंग हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। पूरी रंग थेरेपी, क्रोमो थेरेपी रंगों के आधार पर ही काम करते हैं। होली पर इन पांच तत्व और उनसे जुड़े रंगों का ध्यान करने से हमारा न केवल शरीर बल्कि सम्पूर्ण वातावरण शुद्ध और सशक्त बन जाता है। रंगों से खेलने एवं रंगों के ध्यान के पीछे एक बड़ा दर्शन है, एक स्पष्ट कारण है। निराश, हताश और मुरझाएं जीवन में इससे एक नई ताजगी, एक नई रंगीनी एवं एक नई ऊर्जा आती है। रंग बाहर से ही नहीं, आदमी को भीतर से भी बहुत गहरे सराबोर कर देता है।