शुभ चिंतन, उपवास, गाढ़ी गहरी नींद एवं योग अभ्यास के साथ प्रेम सहानुभूति, दया, सेवा भाव से व्यक्ति आजीवन स्वस्थ रहता हैं


भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केन्द्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि विपरीत परिस्थितियों में बिना डरें बिना निराश हुए खुद के प्रति यदि थोड़ा कठोर अनुशासन का पालन कर लें तो व्यक्ति उस कठिन दौर से भी अपने आप को परिवार को सुरक्षित रख सकता हैं |
योग गुरु महेश अग्रवाल ने योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा के बारे में बताया प्राकृतिक चिकित्सा कैसे?
*(1) प्राकृतिक जीवन* – जैसे प्राकृतिक जीवन बिताने वाले पशु पक्षी बिना औषधियों और बिना डॉक्टरों के सुखी व स्वस्थ जीवन सकते हैं वैसे ही मनुष्य भी उनका अनुकरण कर स्वस्थ रह सकता है।
*(2) प्राकृतिक चिकित्सा*- जानवर जब बीमार होते हैं तो भोजन करना एकदम बन्द कर देते हैं। वे केवल पानी पीते, धूप लेते, खुली हवा में आराम करते एवं गीले कीचड़ (मिट्टी) के ऊपर बैठकर पेट को ठण्डक पहुँचाते हैं। फिर जब स्वस्थ होने लगते हैं तब धीरे-धीरे भोजन लेना आरम्भ करते हैं। हम भी जब बीमार पड़ें तब उपरोक्त नियमों का पालन कर अपना स्वास्थ्य सुधार सकते हैं।
*(3) प्राकृतिक आहार*- सभी प्राणी अपने शरीर की बनावट एवं आवश्यकतानुसार प्राकृतिक आहार सेवन करके स्वस्थ रहते हैं। कोई भी पशु पक्षी प्राकृतिक आहार को आग पर पकाकर, नमक, मिर्ची, शक्कर अथवा खटाई से मिलावट करके अपना स्वास्थ्य नहीं बिगाड़ता है। केवल मनुष्य ही अपने आहार को आग पर पकाकर नमक, मिर्ची मिलाकर खाता है। मनुष्य के लिये भी अपक्व प्राकृतिक आहार सेवन करने से रोग-मुक्त, दवा-मुक्त स्वस्थ जीवन और दीर्घ आयु रहना सम्भव है।


रोगी से बर्ताव:  पाठकों से विनय है कि कभी भी रोगी के सामने उसकी बिगड़ी हुई अवस्था का वर्णन न करें। साधारणतः देखा गया है कि रोगी की सहानुभूति के लिये आने वाले मित्र रोगी के सामने आकर कहते हैं कि बेचारा बहुत दुबला हो गया है, केवल हड्डियों का पिंजरा बचा है, चेहरा कितना पीला पड़ गया है आदि। कुछ लोग तो यहाँ तक कहने में नहीं हिचकते कि डॉक्टर ने तो असाध्य कह दिया है, ऐसे रोग से स्वस्थ होना असम्भव है, हमरा कोई मित्र इस रोग से पीड़ित होकर मर गया था आदि। ऐसे सहानुभूति रखने वाले, रोगी के मित्र होते हुए भी शत्रु का काम करते हैं।

रोगी के सामने खतरे, भय, निराशा व चिन्ता के विचार प्रकट करने से रोगी की स्थिति अधिक बिगड़ती है और रोगी की मानसिक दुर्बलता एवं निराशा बढ़ने से तुरन्त मृत्यु भी हो सकती है।

सदैव रोगी के सामने निम्न रीति से सहानुभूति प्रकट करनी चाहिये। आज तो आप पहले से अच्छे दिख रहे हैं, चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है, दुःख के पीछे सुख अवश्य आता है, अभी आप तुरन्त स्वस्थ हो जायेंगे, हमारी शुभकामनाए आपके साथ हैं। हम आपकी हर प्रकार की सेवा- सहायता करने के लिये तैयार हैं, घबराने की कोई बात नहीं है इत्यादि इत्यादि, उत्साह, साहस, आशा तथा प्रसन्नता उत्पन्न करने वाली बातें करनी चाहिये।

दुर्बल रोगी को क्रोध जल्दी आता है इसलिये रोगी की दुःखी अवस्था पर दया करके, सहानुभूति, प्रेम एवं सेवा का बर्ताव घटाना नहीं चाहिये। रोगी के सामने सदा प्रसन्न मुद्रा में रहना चाहिये।

योग के आधारभूत तथ्य के बारे में बताया कि व्यक्ति की शारीरिक क्षमता, उसके मन व भावनाएं तथा ऊर्जा के स्तर के अनुरूप योग कार्य करता है। इसे व्यापक रूप से चार वर्गों में विभाजित किया गया है : *कर्मयोग में हम शरीर का प्रयोग करते हैं, ज्ञानयोग में हम मन प्रयोग करते हैं; भक्तियोग में हम भावना का प्रयोग करते हैं और क्रियायोग में हम ऊर्जा का प्रयोग करते हैं।* योग की जिस भी प्रणाली का हम अभ्यास करते हैं, वह एक दूसरे से आपस में कई स्तरों पर मिली-जुली हुई होती है। प्रत्येक व्यक्ति इन चारों योग कारकों का एक अद्वितीय संयोग है। केवल एक समर्थ गुरु (अध्यापक) ही योग्य साधक को उसके आवश्यकतानुसार आधारभूत योग सिद्धान्तों का सही संयोजन करा सकता है। “योग की सभी प्राचीन व्याख्याओं में इस विषय पर अधिक बल दिया गया है कि समर्थ गुरु के मार्गदर्शन में अभ्यास करना अत्यंत आवश्यक है।” आदर्श योग आध्यात्मिक केन्द्र कई वर्षो से निःशुल्क योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा के बारे में जानकारी एवं प्रशिक्षण देकर लोगों को जागरूक कर स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखा रहा हैं | वर्तमान में कोविड 19 के दौरान बिना कोई अवकाश के ऑनलाइन माध्यम से निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा हैं |

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!