देशभक्ति, यह शब्द आज कल बहुत प्रचलन मे है। जिसे देखो वही देशभक्ति का गाना गा रहा है। अभी कुछ दिन पहले पूरे देश मे थाली बजा कर, दीया जलाकर देशभक्ति दिखाने की होड़ मची हुई थी। इससे खुशी भी हुई कि समस्त देशवासी देशभक्त है। लेकिन अब बारीकी से नजर डालता हूं तो देखता हूं कि
जीवन तुझे है बढ़ते रहना, जलकर होना राख नहीं ऐ युवा तू अवसर वाद की, भट्टी का अंगार नहीं युवाओं को अब स्पष्ट संदेश देना होगा कि युवा अवसरवाद की भट्टी में तपता लोहा नहीं है जिसे जैसे चाहा ढ़ाल लिया। युवा धर्म, संप्रदाय, जाति, भाषा क्षेत्र को लेकर नफरत फैलाने का औजार नहीं है जिसे जब चाहा चला लिया। युवा झूठ को
लाचार सिसकता मजबूत भारत के निर्माण का स्तंभ गरीब मजदूर भूखे, प्यासे, रोते बिलखते सैकड़ो किलोमीटर की यात्राएं कैसे कर रहा है, यह तो भगवान ही जानता है। कोई पैदल जा रहा है। कोई सायकल से। कोई मालगाडी मे तो कोई गुड्स वाहन मे। आज सुबह बांदा (यूपी) के तीन भाई मेरे पास आए जो
देश की अर्थ व्यवस्था टूट रही है। बेरोजगारी बढ़ रही है। अफसरशाही सर चढ़ कर बोल रही। युवाओं जागोगे की सोये रहोगे, अब यह निर्णय लेने का वक्त आ गया है। राजसत्ता आपको चुनौती दे रही है। भय, आतंक, नफरत के वातावरण में फंसा कर आपको लूट रही है। क्या अब भी प्रश्न नहीं करोगे।
एक ओर पूरा विश्व कोरोना की महामारी से जूझ रहा है। दूसरी ओर भारत मे झूठ, नफरत, घृणा का बाजार तप रहा है। विगत कुछ वर्षो मे धर्मो व जातियों के बीच इस कदर कटुता फैला दी गई है कि मनुष्य एक दूसरे का विरोधी नही वरन् दुश्मन बन गया है । नफरत की पराकाष्ठा
(धीरेंद्र कुमार द्विवेदी) आए दिन देश- प्रदेश में सुनने व देखने को मिलता है कि पूरा देश कोरोना वायरस से लड़ने में अपना सर्वस्व न्योछावर कर रहे हैं वहीं कोरोना वारियर्स को भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है पूरे देश में लॉक डाउन को पूर्णता लागू कराने में पुलिस जवानों को भी
(आलेख : बादल सरोज) कोरोना की आपदा ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि खतरे में सिर्फ भात-रोटी, छत-रोजगार और जिंदगी भर नहीं है। खतरे में पूरी दुनिया है – वह पृथ्वी है, जिस पर मनुष्यता बसी है। जंगल नेस्तनाबूद कर दिए, नदियाँ सुखा दीं, धरती खोदकर रख दी, पशु-पक्षियों को उनके घरों
(आलेख : बादल सरोज) इतिहास के साथ एक सुविधा है, इसे आराम से देखा जा सकता है। दुविधा यह है कि दीवार पर लटकी तस्वीरों को बदलकर इसे बदला नहीं जा सकता। इतिहास हमेशा मैक्रो रूप में होता है, एक सूर्य के दीप्तिमान पिंड पुंज की तरह। इसे नैनो या माइक्रो करके नहीं देखा जा
(आलेख : बादल सरोज) मौजूदा समय विडम्बना का समय है। बिना किसी अतिशयोक्ति के कहा जाए तो; देश और समाज एक ऐसे वर्तमान से गुजर रहा है जिसमे प्राचीन और ताजे इतिहास में, अंग्रेजो की गुलामी से आजादी के लिए लड़ते लड़ते जो भी सकारात्मक उपलब्धि हासिल की गयी थी, वह दांव पर है। समाज
(आलेख : संजय पराते) कल लॉक डाऊन के पहले चरण का आखिरी दिन है और इसके बाद दूसरा चरण शुरू हो जाएगा। 21 दिनों की तालाबंदी में संघी गिरोह ने खूब थाली-घंटे बजवाये, खूब मोमबत्ती-टॉर्च जलवाए, लेकिन कोरोना का हमला थमने का बजाए बढ़ता ही गया है। कल दस बजे जब *जिल्ले इलाही* संबोधित कर
(आलेख : बादल सरोज) 1757 भारतीय इतिहास का विडंबना वर्ष है। इसी साल प्लासी का लगभग अनहुआ युद्ध जीत कर ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपने राज की शुरुआत की थी। रानी एलिजाबेथ से भारत से व्यापार की 21 साल की अनुमति लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी बन तो 1600 में ही गयी थी।
बादल सरोज इंदौर की टाटपट्टी बाखल में कोरोना संभावित बुजुर्ग को जांच के लिए लेने गयी डॉ ज़ाकिया सैयद और नर्सेज, पैरा मेडिकल स्टाफ के साथ जिस तरह की बेहूदगी और बदतमीजी हुयी उसकी सिर्फ निंदा, भर्त्सना और मज़म्मत ही की जा सकती है। उसे लेकर किसी भी लेकिन, किन्तु, परन्तु, अगर, मगर, फिर भी
संजय पराते इधर अडानी ने पीएम केयर्स फंड में कोरोना से लड़ने के नाम पर अपना बहुप्रचारित दान दिया और उधर चुपचाप तमिलनाडु स्थित मुनाफा कमाने वाला कामराजार बंदरगाह उसके हवाले कर दिया गया। राष्ट्रीय आपदाओं से निपटने के लिए पहले से ही एक राहत कोष है — प्रधानमंत्री राहत कोष। हालांकि इस कोष से न्यायपूर्ण
(आलेख : संजय पराते) प्रधानमंत्री मोदी द्वारा देश को 21 दिन के लिए लॉक डाउन करने की घोषणा के बाद अब स्पष्ट है कि कोरोना वायरस का हमला भारत में सामुदायिक संक्रमण (कम्युनिटी ट्रांसमिशन) के तीसरे चरण में प्रवेश कर गया है। इस चरण में यह वायरस मनुष्य द्वारा मनुष्य से ही नहीं फैलता, बल्कि
आलेख :-संजय पराते भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को फांसी की सजा दी गई थी और अपनी शहादत के बाद वे हमारे देश के उन बेहतरीन स्वाधीनता संग्राम सेनानियों में शामिल हो गये, जिन्होने देश और अवाम को निःस्वार्थ भाव से अपनी सेवाएं दी। उन्होंने अंगेजी साम्राज्यवाद को ललकारा। मात्र 23 साल की उम्र
कोरोना वायरस यदि विश्वव्यापी महामारी का जनक है, तो उससे लड़ने के लिए किसी भी देश के पूरे संसाधनों को झोंक देना चाहिए। भारत के लिए भी यही होना चाहिए। विभिन्न देशों ने इससे लड़ने के लिए सैकड़ों अरबों डॉलर : मसलन अमेरिका ने 850 अरब डॉलर, यूनाइटेड किंगडम ने 440 अरब डॉलर (जीडीपी का
वायरस को महामारी का दर्जा दिया जा चुका है। पूरी दुनिया इसके प्रकोप या उसकी आशंका से लगभग कांप रही हैं। मगर कुछ हैं, जिन्हे इसमें भी कमाई के अवसर और मुनाफ़ों के पहाड़ नजर आ रहे हैं। हमारे देश में मास्क और हाथधुलाऊ तरल – सेनेटाइजर – दस से बीस गुनी कीमत पर बेचे
बादल सरोज. 70 और 80 के दशक में एक अमरीकी खुफिया प्लान बड़ी चर्चा का विषय बना था। संसद में भी उसे लेकर बहुत शोर – जाहिर है वामपंथियों और कुछ सोशलिस्ट सांसदों द्वारा – किया गया था। इस खुफिया दस्तावेज का नाम था “प्रोजेक्ट ब्रह्मपुत्र” और इसे अमरीकी विदेश विभाग के साथ मिलकर पेंटागन