कोरोना संक्रमण काल बना अतिरिक्त आमदनी का माध्यम

बिलासपुर. कोरोना संक्रमण से पूरा विश्व प्रभावित हुआ है। हमारे देश में भी मार्च 2021 से सभी व्यवस्थायें प्रभावित हुई है। पूरे देश भर में सबसे ज्यादा असर शिक्षण संस्थाओं और विद्यार्थियों पर पड़ा है, आज भी शिक्षा की रफ्तार सुचारू ढंग से नही चल रही है। वैकल्पिक माध्यमों आनलाईन कक्षा संचालित की जा रही है। लगभग डेढ़ वर्षो बाद धीरे-धीरे स्कूल संचालित करनें की प्रक्रीया प्रारंभ की जा रही है। लेकिन जुनियर स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता और अभिभावक कोरोना संक्रमण के भय से अपने बच्चों को स्कूल भेजने में असहज महसूश कर रहें है। क्योकि बच्चा स्कूल में जाकर अलग-अलग स्थानों से आये बच्चों के साथ बैठेगा, भोजन करेगा तो संक्रमण का खतरा अधिक होगा एक समान्य बच्चा कोरोना संक्रमण से बचाव के उपयोग जैसे मास्क पहनना, बार-बार सेनेटाईजर का उपयोग एवं सोशल डिस्टेसिंग का कितना समझदारी से पालन करेगा यह निश्चित नही है। इसके वावजूद भी यदि कोरोना संक्रमण फैलता है तो जिस परिवार का कोई सदस्य प्रभावित होता है। उसके उपर क्या बितता है कोई नही जानता हालांकि सरकार द्वारा कोरोना संक्रमितों के इलाज की पूरी व्यवस्था सर्वोच्च प्राथमिकता से की जा रही है। इसके बाद भी जो व्यक्ति अपने आपको सक्षम समझता है वह निजी/प्रायवेट अस्पतालों में चले जाते है। जहां शासन द्वारा निर्धारित दरों पर इलाज नही करते हुये अत्याधिक राशि का बिल निजी असपतालों द्वारा वसूला जाता है। इसका ताजा उदाहारण पिछले दिनों सार्वजनिक हुआ कि उत्तर भारत में राज्य शासन द्वारा कोरोना संक्रमितों के इलाज में निजी अस्पतालों द्वारा अधिक राशि की वसूली की जांच कराये जाने का निर्णय लिया तो अस्पतालों द्वारा वसूली गई अधिक राशि को कोरोना संक्रमित मरीज के परिवारजनो को वापस कर दिया गया। क्या यह अपराध नही है, कि कोरोना जैसे गंभीर बीमारी से पिड़ित व्यक्तियों के घर वालों से अत्याधिक राशि वसूल की गयी और इस मौके का फायदा उठाकर निजी असपतालों द्वारा कोरोना संक्रमित मरीजों के परिवार वालों का शोषण किया गया। अस्पताल संचालित करने वाले क्या भारत देश में कोरोना संक्रमण के दौरान सामान्य नागरिकों की बदहाली से अनजान थे कि सामान्य नागरिक जो शहरों में दैनिक मजदूरी का काम करता था या श्रमिक का कार्य करता था। रोजगार धंधे बंद होने या लाॅक डाउन होने पर कैसे बदहवास होकर अपने गांव को लौटने के लिए मजबूर हुआ। रेलवे प्रशासन द्वारा ट्रेन बंद करने का निर्णय लिए जाने पर राज्य सरकारो द्वारा रेलवे को पृथक-पृथक राशि जमा करके विभिन्न शहरों से स्पेशल ट्रेनों द्वारा अपने नागरिको को बुलाया गया और अतिरिक्त बसों के माध्यम से प्रायः देश के प्रत्येक भाग से अपने प्रवासी श्रमिकों को बुलाया गया। उन्हे भोजन उपलब्ध कराया गया तथा क्वांरेटिन सेंटरों में रखकर स्वास्थ परीक्षण किया गया। इस प्रकार राज्य सरकारों द्वारा अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिये आक्सीजन उपलब्ध कराने से लेकर प्रवासियों को रोजगार उपलब्ध कराने तक के सभी आवश्यक प्रबंध किये गये। राज्य सरकारों के आय श्रोत सीमित है फिर भी छत्तीसगढ़ सहित सभी राज्य सरकारो ने अपने संसाधनों को उपयोग कोरोना महामारी से बचाव के लिये किया। राज्य सरकारों ने अपने नागरिकों पर अतिरिक्त व्यय या टेक्स नही लगाया। देश का सबसे बड़ा परिवहन नेटर्वक रेलवे जो कि देश के नागरिकों को सस्ते आवागमन की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए जाना जाता है। पहले तो सभी यात्री ट्रेनों को बिल्कुल बंद किया और कोरोना संक्रमण कम हुआ तो एक-एक करके लगभग 80-90 प्रतिशत ट्रेनों का संचालन प्रारंभ तो किया गया लेकिन सभी ट्रेनों को स्पेशल बनाकर और तकनीकी रूप से ट्रेन नंबरो में बदलाव करके किराये के रूप में अधिकतम राशि वसूल किया जा रहा है। क्या सामान्य नागरिको से अतिरिक्त राशि के नाम पर वसूलना न्यायोचित है । यहां तक कि पैसंेन्जर ट्रेने जो प्रत्येक स्टेशनों पर रूकती है। ग्रामीण क्षेत्र के निवासी जो अपनी जरूरत के अनुसार इसमें यात्रा करते है। उन पैसेन्जर ट्रेनों में अतिरिक्त राशि वसूल की जाती है और मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों का किराया वसूल किया जा रहा है। इसे कैसे जायज माना जाएगा. हद तो तब हो जाती है जब मेल एक्सप्रेस ट्रेनों के साधारण (जनरल) डिब्बों में कोई व्यक्ति टिकट काउन्टर से अपने गंतव्य का टिकट खरीद कर जनरल डिब्बें में बैठ जाता है। उसे बिना टिकट मानकर 300 रूपये से 400 रूपये तक की पेनाल्टी वसूली जाती है। चाहे पूरा जनरल डिब्बा खाली ही क्यों न हों। इस प्रकार रेलवे भी अपनी आय में वृद्धि कर रहा है। देश के नागरिक कोरोना संक्रमण रोकने के लिये लाॅकडाउन-1,2,3………. को भूल नही सकते कि सब्जी विक्रेता से लेकर ग्रांव कस्बे के छोटे-छोटे दुकानदारों ने कैसे मनमानी दामो पर सामानों की बिक्री कर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त किया और सामान्य लोगों की मजबूरी का लाभ उठाया, दवाई विक्रेताओं ने इंजेक्शन और आॅक्सीमीटर की कमी बताकर मनमानी कीमत पर इंजेक्शन और आॅक्सीमीटर की बिक्री की। इसमे कोई शक नही की सभी राज्य सरकारों द्वारा अपनें संसाधनों का उपयोग कर कोरोना महामारी से बचाव के लिए हर संभव उपाय किया यह एक सराहनीय प्रयास था। संभवतः आगे भी इस प्रकार के प्रयासों की आवश्यकता होगी क्योंकि कोरोना समाप्त होने वाला नही है। और सामान्य नागरिक समझनें को तैयार नही है मास्क पहनना लोग भूलते जा रहें है और बाजारों में तथा त्यौहारो के दौरान होने वाली भीड़ अलग ही तस्वीर पेश कर रही है, लोगों को कोरोना की तीसरी लहर की प्रतीक्षा है। इस संबंध में विशेषज्ञ चिकित्सक भी एक राय नहीं है कोई कहता है कि स्कूल खुलने चाहिए किसी का मत है स्कूल प्रांरभ करना उचित नहीं है। ऐसी स्थ्तिि में कोरोना संक्रमण से बचाव और रोकथाम के लिए सभी नागरिको को अपने स्वविवेक से निर्णय लेना होगा।