September 16, 2021
अभियंता दिवस-संकल्प शक्ति, अच्छे अनुशासन से ही भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति संभव और अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है – योग गुरु महेश अग्रवाल
भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने कहा कि लोग बड़े ऊँचे संकल्प करते हैं, आत्म-साक्षात्कार चाहते हैं, उच्चादर्शों का पालन करना चाहते हैं। परन्तु इसमें एक ही अड़चन है, उनमें संकल्पशक्ति का अभाव है। संकल्प शक्ति के अभाव में न भौतिक उन्नति सम्भव है और न आध्यात्मिक। दुहरे व्यक्तित्व का विकास न करें- बाहर में लोगों के सामने संकल्प शक्ति का प्रदर्शन और एकांत में अपने दोषपूर्ण कर्मों में लिप्त रहना वास्तविकता और आदर्श का द्वन्द्व ।क्या आपको सुखी और सामंजस्यपूर्ण जीवन अच्छा लगता है? क्या आप अपने दैनिक कार्य-कलापों में उत्साह से भरे रहते हैं? जब प्रतिकूल परिस्थितियाँ आपको झकझोर देती हैं, तब क्या आप शान्त मन और सहज भाव से अपना सिर ऊँचा रख पाते हैं? यदि नहीं, तो फिर योग की शरण में आइये।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया भारत सरकार द्वारा साल 1968 में डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जन्मतिथि को ‘अभियंता दिवस’ घोषित किया गया था। उसके बाद से हर साल 15 सितंबर को अभियंता दिवस मनाया जाता है। इसी दिन भारत के महान अभियंता और भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्मदिन है। वह भारत के महान इंजीनियरों में से एक थे। उन्होंने ही आधुनिक भारत की रचना की और देश को एक नया रूप दिया। उन्होंने इंजीनियरिंग के क्षेत्र में असाधारण योगदान दिया है, जिसे शायद ही कोई भुला पाए। देशभर में बने कई नदियों के बांध और पुल को कामयाब बनाने के पीछे विश्वेश्वरय्या का बहुत बड़ा हाथ है। उन्हीं की वजह से देश में पानी की समस्या दूर हुई थी।
योग गुरु अग्रवाल ने तकनीकी विकास और मानव समाज के बारे में बताया मानव समाज में विज्ञान और तकनीकी की शुरूआत तो यद्यपि धीरे-धीरे हुई, पर निरंतर नए अविष्कारों और अनुसंधानों के विकास की गति तीव्रतर हो गई। निश्चय ही तकनीकी विकास की इस तीव्र गति का प्रभाव हमारे जीवन स्तर पर जीवन पद्धति पर एवं सामाजिक माहौल पर पड़े बिना नहीं रहता। समाज में विज्ञान द्वारा प्रदत्त नए तकनीकी उपागमों में सही का चयन और चयन के साथ ही इनका उचित उपयोग करने के संदर्भ में भ्रम की स्थिति अक्सर रहती है। इसी प्रकार जीव विज्ञान, गुण सूत्रों इत्यादि के क्षेत्र में काफी खोज हो रही है। इन अन्वेषणों से मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक क्रान्ति की उम्मीद की जा रही है ।
आज विश्व के तकरीबन आधे वैज्ञानिक और इन्जीनियर रक्षा उपकरणों से सम्बन्धित निर्माण और अन्वेषण में संलग्न हैं और शेष वैज्ञानिको में अधिकांश उन अन्वेषण कार्यों में अधिक संलग्न हैं जो विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के आराम के विकास के लिए हैं। यद्यपि होना यह चाहिए कि अधिकाधिक संख्या में अनुसंधानकर्ता मानव की सामान्य आवश्यकताओं – रोटी, कपड़ा, स्वास्थ्य, पेयजल, पर्यावरण आदि से सम्बन्धित उच्च किन्तु सरल, सुगम तकनीकों के विकास में संलग्न हों। आज पूरे विश्व में जितना पैसा और संसाधन रक्षा उद्योग में खर्च हो रहा है यदि उसका एक तिहाई भी कृषि, नवीनीकरण योग्य ऊर्जा संसाधनों, वनीकरण, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों के विकास में खर्च कर दिया जाए तो पूरे विश्व के पर्यावरण में व्यापक परिवर्तन आ जाएगा। कभी-कभी महँगे उच्चस्तरीय उपकरण केन्द्रित तकनीकी की बजाय मानव श्रम केन्द्रित और विकेन्द्रित सामाजिक व्यवस्था का विकल्प मानव विकास के लिए अधिक मुफीद सिद्ध हो सकता है। इस तकनीकी केन्द्रित व्यवहार का सबसे गंभीर खतरा यह है कि यह सभी जीवधारियों मनुष्य, पशु-पक्षियों और पौधों को केवल उपभोंग” और नियन्त्रित करने की दृष्टि से व्यवहृत करता।आज कई बार किसी सामाजिक समस्या का कोई सरल तकनीकी हल ढूँढने का प्रयास अधिक होता है, बजाय इसके कि किसी व्यापक सामाजिक परिवर्तन या सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव की बात की जाए।
भारतीय चिन्तन दृष्टि में मानव विकास के पाँच चरण स्वीकार किए गए हैं- अन्नमय कोष, प्राणमय कोष, मनोमय कोष, विज्ञानमय कोष और आनंदमय कोष तकनीकी विकास के माध्यम से हम अभी प्रथम तीन की पूर्णरूपेण पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं, जबकि शेष से दो जो मानव जीवन का चरम लक्ष्य है, उन तक पहुँचने की बात तो दूर है। विकास का पहिया सदैव अग्रगामी होता है पृष्ठगामी नहीं और हम यह निश्चित रूप से नहीं कह सकते हैं कि कुछ सौ सालों पूर्व का जीवन आज के मुकाबलें अधिक सुखी और शान्तिपूर्ण था। उस समय भी अकाल, महामारी और युद्ध जैसे अशान्ति के कारक मौजूद थे जिनका मुकाबला करना तात्कालीन समाज में भी कठिन माना जाता था। अतः होना यह चाहिए है कि विज्ञान जनित तकनीक के प्रयोग के साथ ही उसके शीघ्र तथा दूरगामी लाभों और दुष्परिणामों को समझा जाए क्योंकि दूर दृष्टि से अपनाए गए अनुसंधान समाज के लिए लाभदायी सिद्ध होंगे विज्ञान और तकनीकी विकास के शोधकार्य को निरन्तर चलाते रहना, उसे संबल प्रदान करना, जैसे समाज का कर्तव्य है, वैसे ही समाज को अपनी इस भूमिका का निर्वहन भी करना होगा कि शोध ऐसी दिशा में प्रगति न करे जिससे भविष्य में समाज को पछताना पड़े। इस संदर्भ में तकनीकी विकास और अन्वेषण का एक ज्वलंत उदाहरण परमाणु बम हमारे समक्ष उपस्थित ही है। अतः ऐसे ज्ञात और अज्ञात परिणामों प्रति समाज को सावधानी बरतनी होगी।
अगर हम अपनी पूर्व परम्पराओं और भारतीय चिन्तन दृष्टि से प्रेरणा ग्रहण करने का प्रयत्न करें तो वहाँ हमें ऐसे कई सूत्र मिलते हैं जो हमें इस संदर्भ में दिशा निर्देश दे सकते हैं, जिनमें ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वभूतहितेरता’ के दो सूत्र सर्वप्रमुख हैं। जब प्रत्येक मानव सम्पूर्ण वसुधा को अपने परिवार का अंग समझ कर कार्य करेगा तो उसका प्रत्येक कृत्य परिवार के हित और संसाधनों के समान वितरण तथा न्याय की भावना से प्रेरित होगा। दूसरे सूत्र- ‘सर्वभूत’ के हित की दृष्टि मानव को जैव-अजैव सभी के प्रति समान दृष्टिकोण , सदभाव से कार्यरत होने के लिए प्रेरित करती है, जो निःसन्देह आज की महती आवश्यकता है। अन्ततः यह कहना अत्यावश्यक है कि परिवर्तन की गति तीव्र से तीव्रतर होती जा रही है और जब पवन वेग प्रबल हो तो भयग्रस्त हो अपने को सुरक्षित गृह में बंद कर लेना एक रास्ता हो सकता है या फिर तीव्र पवन की ऊर्जा का सदुपयोग कर अपनी समस्याएँ सुलझाना दूसरा रास्ता हमारा उद्देश्य तकनीकी विकास की इस तेज हवा को नियन्त्रित कर अपने जीवन को सुखी बनाना होना चाहिए।