Farmers Protest: किसानों ने सरकार से की ठोस प्रस्ताव की मांग, कांग्रेस आज करेगी राष्ट्रपति भवन तक पैदल मार्च
नई दिल्ली. कृषि कानूनों (Argriculture Laws) के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन (Farmers Protest) 29वें दिन भी जारी है और किसान कानून वापसी की मांग पर अड़े हैं. सरकार ने आंदोलन खत्म करने के लिए एक और वार्ता का प्रस्ताव दिया है, वहीं किसानों का कहना है कि वो बातचीत को तैयार हैं, लेकिन सरकार कोई ठोस प्रस्ताव दे. दूसरी ओर कांग्रेस (Congress) भी किसान आंदोलन की गर्मी बढ़ाने की तैयारी में हैं.
पैदल मार्च करेंगे कांग्रेस के सांसद
किसानों के प्रदर्शन (Farmers Protest) के समर्थन में कांग्रेस (Congress) के सभी सांसद आज (गुरुवार) सुबह 11 बजे दिल्ली में विजय चौक (Vijay Chowk) पर इकट्ठा होंगे और फिर पैदल मार्च करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ram Nath Kovind) से मिलेंगे. दावा है कि कांग्रेस सांसद राष्ट्रपति को कृषि कानून के खिलाफ 2 करोड़ लोगों के हस्ताक्षर की कॉपी भी सौंपेंगे.
बीजेपी यूपी में लगाएगी 400 किसान चौपाल
बीजेपी (BJP) इस लड़ाई को दिल्ली से बाहर लड़ने की पूरी तैयारी कर चुकी है. बीजेपी कृषि कानून को लेकर किसानों को जागरूक कर रही है और इसके लिए उत्तरप्रदेश में 400 किसान चौपाल लगाए जाएंगे. दावा है कि इसमें 4 लाख किसान जुड़ेंगे.
29 दिन बाद भी आंदोलन खत्म होती नहीं दिख रहा
29 दिनों से चल रहे प्रदर्शन के बाद भी आंदोलनकारी किसानों और सरकार के बीच एकराय बनती नहीं दिख रही है. आंदोलन कर रहे किसानों ने स्पष्ट ऐलान किया है कि वो संशोधन नहीं चाहते और कृषि कानूनों की वापसी के बगैर चर्चा संभव नहीं है. इसके साथ ही किसानों की मांग है कि सरकार एमएसपी पर कानून बनाए. वहीं दूसरी ओर सरकार ये बताने की कोशिश में है कि नए कानून किसानों के हित में है और ज्यादातर किसान इसे समझते भी हैं.
किसानों के खाते में डाले जाएंगे 18 हजार करोड़
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) 25 दिसंबर को 6 राज्यों के किसानों से बात करेंगे. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) के जन्मदिन के दिन पीएम मोदी किसान सम्मान निधि की 7वीं किस्त जारी करेंगे और 9 करोड़ किसानों के खाते में 18 हजार करोड़ रुपये डाले जाएंगे.
सरकार कर रही आंदोलन खत्म करने की कोशिश
सरकार और आंदोलन कर रहे किसान नेताओं की बातों से साफ है कि संवाद से समाधान की जो कोशिश की जा रही है, उस संवाद में कई पेच हैं. ना तो किसान नेता कानून वापसी के बगैर मानने को तैयार हैं और ना ही सरकार कानून वापस लेने को तैयार है. इसलिए आंदोलन की आंच धीमी होने की जगह तेज होती दिख रही है.