पांच वर्षीय बालिका के साथ कृत्य करने वाले पिता को हुई तिहरे आजीवन कारावास की सजा

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भोपाल. न्याायालय श्रीमती कुमुदिनी पटेल के न्यायालय ने नाबालिग बालिका के साथ दुराचार करने वाले आरोपी पिता अरविंद जैन को धारा 376, 376भादवि तथा 5 एल/6, 5 एम/6, 5 एन/6 में तिहरे आजीवन कारावास तथा कुल 3000 रू के अर्थदंड तथा धारा 506 भादवि में 1 वर्ष के सश्रम कारावास से दंडित किया गया। दंडित करते हुये न्याधयालय ने कहा कि पिता का यह सा‍माजिक तथा कानूनी दायित्व होता है कि वह अपने बच्चों की सुरक्षा करें परंतु यह घटना ठीक इसके विपरीत है। अभियुक्त ने न सिर्फ प्रकृतिए समाज तथा कानून की व्यवस्था को तोडा है बल्कि अपनी ही 5 साल की मासूम बच्ची के साथ जिसे बलात्कार एवं लैंगिक संबंधों के बारे में जानकारी ही नहीं है, के साथ उसकी पेशाब वाली जगह पर पीडादायक कृत्यो किया है। न्यायालय द्वारा अभियुक्त के प्रति नम्र एवं सहानुभूति पूर्वक दृष्टिकोण न अपनाते हुये अभियोजन द्वारा प्रकरण में प्रस्तुयत किये गये समस्तप साक्ष्यों एवं मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर आरोपी को दोषसिद्ध पाते हुये तिहरे आजीवन कारावास से दंडित किया गया। शासन की ओर से अभियोजन का संचालन विशेष लोक अभियोजक टीपी गौतम एवं श्रीमती मनीषा पटेल ने किया। जनसंपर्क अधिकारी संभाग भोपाल मनोज त्रिपाठी ने बताया कि दिनांक 30/05/2019 को पीडिता की मॉं ने थाना कोतवाली भोपाल में उपस्थित होकर रिपोर्ट लेख करायी कि वह दो बच्चियों एवं 1 बालक की मॉं है। जब वह काम से घर के बाहर जाती है तो उसका पति आरोपी अरविंद जैन उसकी 5 वर्षीय मंझली बेटी के प्राईवेट पार्टस ;पेशाब वाली जगह पर अंगुली डालकर लगभग 4-5 माह से दुराचार करता था। बच्ची द्वारा जब मॉं को पूरी घटना बताई तो मानो मॉं के पैर के नीच से जमीन ही खिसक गई और वह जब अपने पति से पूछने गई तो पति पत्नि से लडने लगा और कमरे में जाकर पेट्रोल डालकर आत्म हत्या करने का नाटक करने लगा। विवेचना के दौरान अभियोक्त्री के मेडिकल में उसके प्राईवेट पार्ट पर चोट पाई गई थी तथा उसका हाईमन पुराना फटा हुआ मिला था। शासन द्वारा उक्तर प्रकरण को जघन्यग एवं सनसनीखेज की श्रेणी में चिन्हित किया गया था। न्याायालय द्वारा विशेष टिप्पणी करते हुये विधि एवं विधायी विभाग को भेजी गई है प्रतिलिपि विशेष न्यायालय द्वारा कहा गया है कि पिता द्वारा अपनी ही पुत्री के साथ बलात्काटर कारित करने की घटनाऐं लगातार बढती जा रही हैं इसलिये यह अपराध किन परिस्थिति व मानसिकता के कारण हो रहा है इस पर शोध करने की आवश्य कता है। बच्चोि के प्रति बढते हुये लैंगिक अपराधो को हमे पीडियोफिलिक वैश्य‍ व्यक्तित्वे तथा व्यलवहार के विकार के रूप में सोचना होगा। ऐसा कृत्य मनोवैज्ञानिक यौन विकृति की ओर इंगित करता है, जिसका विस्तृत अध्यृयन किया जाना आवश्यक है। मासूमों को ऐसे गंभीर अपराधों से बचाया जा सके इसके लिये शासन को पहल कर संबंधित व्य्क्ति की पृष्ठूभूमि सजा के दौरान उसकी मनोवैज्ञानिकता एवं तत्संकबंध में आवश्ययक शोध की आवश्यककता है। अत. निणर्य के प्रति उचित कार्यवाही हेतु प्रमुख सचिव मप्र शासन विधि एवं विधायी कार्यविभाग भोपाल की ओर प्रेषित की गई है।

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