गाँधी जयंती – प्राकृतिक चिकित्सा एवं नियमित योग अभ्यास के साथ प्रेम करुणा त्याग की भावना से व्यक्ति आजीवन स्वस्थ रहता हैं : महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि अंग्रेजी हुकूमत से भारत को आजादी दिलवाने वाले और ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि से सम्मानित महात्मा गांधी दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। सत्य और अहिंसा के पुजारी गांधी जी ने भारत को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करवाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्होंने पूरी दुनिया को सत्य, अहिंसा और शांति का पाठ पढ़ाया था। मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टबर 1869 को हुआ था। इसलिए हर साल 2 अक्टूबर को दुनियाभर में ‘गांधी जयंती’ मनाई जाती है, इस दिन को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में भी सेलिब्रेट किया जाता है।

योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि प्राकृतिक चिकित्सा, चिकित्सा की एक पद्धति है जिसमे प्राकृतिक विधियों के प्रयोग द्वारा मनुष्य के रोगों का उपचार किया जाता है| इसमें जड़ी-बूटियों, हाइड्रोथेरेपी, पोषण, आहार  के चिकित्सीय उपयोग शामिल हैं। प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास मानव सभ्यता जितना ही पुराना है। मानव ने मानव सभ्यता के उद्भव के बाद से स्वास्थ्य उपचार के लिए प्राकृतिक चिकित्सा का उपयोग किया है।  आधुनिक भारतीय इतिहास में गाँधी जी उन महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक थे, जिन्होंने राजनीति, दर्शन और सामाजिक सुधार में योगदान दिया। साथ ही साथ, गाँधी जी को प्राकृतिक चिकित्सा का बहुत गहरा ज्ञान था। उन्होंने बड़े पैमाने पर मानव स्वास्थ्य, मानव रोगों और उनके इलाज पर लिखा है तथा अपने प्राकृतिक चिकित्सा के ज्ञान का प्रयोग भी किया है। गाँधी जी का विचार था कि जिस व्यक्ति के पास स्वस्थ शरीर, स्वस्थ दिमाग और स्वस्थ भावनाएं होती हैं, वही स्वस्थ व्यक्ति होता है। उनका विचार था कि स्वस्थ रहने के लिए केवल शारीरिक शक्ति आवश्यक नहीं है। एक स्वस्थ व्यक्ति को अपने शरीर के बारे में पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए। गाँधी जी ने मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के बीच संबंधों को समझाया। गाँधी जी का विचार था कि स्वस्थ शरीर के लिए स्वस्थ पाचन आवश्यक है। इस प्रकार, महात्मा गाँधी जी राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक के साथ ही साथ अपने स्वास्थ्य सम्बन्धी विचारों एवं प्रयोगों के कारण भी अपना एक विशेष महत्व रखते हैं|

प्राकृतिक चिकित्सा के मूलभूत सिद्धान्त :  सभी रोग, उनके कारण एवं उनकी चिकित्सा एक है। चोट-चपेट और वातावरणजन्य परिस्थितियों को छोड़कर सभी रोगों का मूलकारण एक ही है और इनका इलाज भी एक है। शरीर में विजातीय पदार्थो के संग्रह से रोग उत्पन्न होते है और शरीर से उनका निष्कासन ही चिकित्सा है। रोग का मुख्य कारण जीवाणु  नही है। जीवाणु शरीर में जीवनी शक्ति के ह्रास आदि के कारण विजातीय पदार्थो के जमाव के पशचात् तब आक्रमण कर पाते है जब शरीर में उनके रहने और पनपने लायक अनुकूल वातावरण तैयार हो जाता है। अतः मूल कारण विजातीय पदार्थ है, जीवाणु नहीं।
जीवाणु द्वितीय कारण है। तीव्र रोग चूंकि शरीर के स्व-उपचारात्मक प्रयास है अतः ये हमारे शत्रु नही मित्र है। जीर्ण रोग तीव्र रोगों के गलत उपचार और दमन कें फलस्वरूप पैदा होते है। प्रकृति स्वयं सबसे बडी चिकित्सक है। शरीर में स्वयं को रोगों से बचाने व अस्वस्थ हो जाने पर पुनः स्वास्थ्य प्राप्त करने की क्षमता विद्यमान है। प्राकृतिक चिकित्सा में चिकित्सा रोग की नहीं बल्कि रोगी की होती है। प्राकृतिक चिकित्सा में रोग निदान सरलता से संभव है। किसी आडम्बर की आवश्यकता नहीं पड़ती। उपचार से पूर्व रोगों के निदान के लिए लम्बा इन्तजार भी नहीं करना पड़ता। जीर्ण रोग से ग्रस्त रोगियों का भी प्राकृतिक चिकित्सा में सफलतापूर्वक तथा अपेक्षाकृत कम अवधि में इलाज होता है।8. प्राकृतिक चिकित्सा से दबे रोग भी उभर कर ठीक हो जाते है। प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा शारिरिक, मानसिक, सामाजिक (नैतिक) एवं आध्यात्मिक चारों पक्षों की चिकित्सा एक साथ की जाती है। विशिष्ट अवस्थाओं का इलाज करने के स्थान पर प्राकृतिक चिकित्सा पूरे शरीर की चिकित्सा एक साथ करती है।  प्राकृतिक चिकित्सा में औषधियों का प्रयोग नहीं होता। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार ‘आहार ही औषधि’ है। गांधीजी  के अनुसार ‘राम नाम’ सबसे बडी प्राकृतिक चिकित्सा है अर्थात् अपनी आस्था के अनुसार प्रार्थना करना चिकित्सा का एक आवश्यक अंग है।

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