गुरु नानक जयंती-भारतीय संस्कृति के महान संतों की वाणी आदर एवं सम्मान की शिक्षा देती है : योग गुरु

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव  जी के 553 वें प्रकाशोत्सव की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हम सब इस अवसर पर गुरु नानक देव जी के उपदेशो को अपने जीवन में उतारे। जीवन संग्राम में शान्ति एवं मानसिक संतुलन बनाये रखना सुखी जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है। ऋषि, महात्माओं ने सत्संग की महिमा गायी है। आधुनिक व्यस्त जीवन पद्धति में लोगों को सत्संग मिलना कठिन है, जीवन मशीनवत् हो गया है, कोई प्रेरणा नहीं, कोई दिशा नहीं, मन अशान्त, तन रोगी, गृहस्थी जंजाल लगने लगती है, ऐसी अवस्था में हजारों संतप्त और किंकर्तव्यविमूढ़ों को जीवन की नयी दिशा, उत्साह, प्रेरणा, स्वास्थ्य एवं शान्ति देने के लिए सत्संग स्वरूप संतो की वाणी  एवं सद्-साहित्य ही मदद दे सकता है।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि गुरु नानक देव जी ने केवल कहा नहीं, अपने शब्दों को साकार करके भी दिखाया। जैसे गुरु वाणी के रूप में उनके सत्संग अनुकरणीय है, वैसे ही उनका जीवन भी,  गुरु नानक देव जी ने सिखाया कि रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं, अपने पूरे परिवेश को प्रेम से कैसे भरा जाता है और जीवन के उतार-चढ़ाव का सामना मुस्कराते हुए कैसे किया जाता है।  ”भगवान् एक है; मानवता एक है; जीवन एक है; विश्व एक है; अनेकता है क्या; एक ही का विस्तार न?” एक अकेला ही कई रूपों में प्रकट हो रहा है। हमने ही भगवान् के कई नाम घर दिए हैं, और विविध रूपों में उसकी कल्पना की है। इसका कारण है, राचियों की विचित्रता। अगर तुम साकार राम पर ध्यान करते हो तो कभी न कभी यह अनुभव करोगे ही कि साकार निराकार में परिणत हो गया है। भगवान् की आँखें नहीं, फिर भी वह देखता है; उसके हाथ नहीं, फिर भी वह काम करता है; उसके और नहीं, फिर भी वह चलता है; उसके नाक नहीं, फिर भी वह सूँघता है; उसके मुँह नहीं, फिर भी वह खाता है। वह लिंग, जाति, वर्ण, शरीर और अन्य सभी परिणामों से परे है। हिन्दू मुसलमान, ईसाई अथवा सिक्खों का कोई अलग-अलग भगवान् थोड़े ही है! जो कुछ तुम देखते हो, वही ईश्वर रूप है। जो कुछ भी तुम सुनते हो, वही ईश्वर-रूप है। अनन्त देवों के परम देव परमात्मा पर से श्रद्धा कभी न खोना।
बिजली पावर हाऊस से आती है। परन्तु परमात्मा की महिमा सर्वव्यापिणी है। आकाशवाणी से अभी भी संगीत प्रसारित हो रहा है। आवश्यक है कि तुम अपना रेडियो मिला लो। इसी प्रकार प्रभु की महिमा सदैव तुम्हारे अन्दर है। तुम्हें अपने मन-रूपी रेडियो को मिला कर उसकी कृपा का अनुभव करना है। उस पर परम श्रद्धा रखो; क्योंकि उसकी कृपा न तो सूर्य की तरह जागती है, न चन्द्रमा की तरह क्षीण ही होती है। अमर है उसका प्रकाश, जो सबको समान रूप से प्रकाशित करता रहता है।

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