कॉर्पोरेट विरोधी संयुक्त संघर्ष की ऐतिहासिक जीत
नई दिल्ली. अखिल भारतीय किसान सभा ने कहा है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली अहंकारी भाजपा सरकार को हार स्वीकार करने और तीन किसान विरोधी, जन विरोधी और कॉर्पोरेट समर्थक कानूनों को निरस्त करने की घोषणा करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इसके लिए किसान सभा देश के उन लाखों किसानों, खेत मजदूरों और कामगारों को बधाई देती है, जिन्होंने इन अधिनियमों के खिलाफ, अत्यधिक दमन के बावजूद एक वर्ष से अधिक समय तक दृढ़ संघर्ष का नेतृत्व किया है और इस ऐतिहासिक जीत के लिए महान बलिदान किया है। भारत की जनता ने इस संघर्ष में किसानों पर विश्वास जताया और समर्थन में बड़े पैमाने पर सामने आए।
कल यहां जारी एक बयान में किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक ढवले और महासचिव हन्नान मोल्ला ने कहा है कि इस ऐतिहासिक किसान संघर्ष की अन्य मूलभूत मांग — सभी किसानों की सभी फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य, जो उत्पादन की वास्तविक लागत सी-2 के डेढ़ गुने के आधार पर तय हो, देने की गारंटी देने के लिए कानून बनाने की मांग — अभी भी पूरी नहीं हुई है। इस मांग को पूरा करने में नाकामी ने भारत में कृषि संकट को और बढ़ा दिया है। पिछले 25 वर्षों में 4 लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है, जिनमें से मोदी के नेतृत्व वाले भाजपा शासन काल के पिछले 7 वर्षों में करीब 1 लाख किसानों ने अपनी जिंदगी खत्म कर ली है।
किसान सभा के नेताओं ने कहा है कि किसानों के देशव्यापी संघर्ष में पिछले एक साल के दौरान लगभग 700 लोगों की मौत के लिए प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा सरकार सीधे जिम्मेदार हैं। किसान सभा ने मांग की है कि यह हठी और असंवेदनशील सरकार इन मौतों की जिम्मेदारी ले और राष्ट्र से माफी मांगें।
उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान आंदोलन के हाथों मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की यह दूसरी हार है। इससे पहले उन्हें किसानों के नेतृत्व में एकजुट विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर रोक लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा था। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की यह घोषणा कृषि को निगमित करने और नवउदारवादी आर्थिक नीतियों को आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाने के प्रयास के खिलाफ बड़ी जीत है। अखिल भारतीय किसान सभा इस संयुक्त संघर्ष के शहीदों को सलाम करती है और सभी मांगें पूरी होने तक संघर्ष जारी रखने की प्रतिज्ञा करती है ।
किसान सभा नेताओं ने कहा कि भाजपा सरकार ने इस आंदोलन को दबाने के लिए किसानों का अत्यधिक दमन किया है और उन्हें बदनाम करने के लिए कॉर्पोरेट मीडिया का इस्तेमाल किया है। प्रधानमंत्री ने स्वयं किसानों के संघर्ष का नेतृत्व करने वालों को ‘आंदोलनजीवी’ का नाम दिया। भाजपा के कई अन्य नेताओं ने भी उन्हें राष्ट्रविरोधी कहकर उनका अपमान किया है।
किसान सभा नेताओं अशोक ढवले और हन्नान मोल्ला ने कहा है कि इस जीत से ऐसे तमाम हमले धराशाई हुए हैं। लेकिन भारत के किसान दमन, उनके ऊपर हुए क्रूर हमलों, हमारे साथियों की हत्या और किसानों के अपमान को कभी नहीं भूलेंगे। हम कंक्रीट की दीवारों, कंटीले तारों और बैरिकेड, खोदी गई खाइयों, रास्ते में लगाए गए किलों, तरह-तरह के अपमान, अश्रुगैस, इंटरनेट पर बंदी, पत्रकारों पर हमले आदि दमन के विभिन्न अनुभवों को नहीं भूलेंगे। सब कुछ याद रखा जाएगा।
किसान सभा नेताओं ने कहा है कि प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद भी सबको सतर्क रहना होगा और संसद से कानूनों के निरस्त होने की प्रतीक्षा करनी होगी। यदि प्रधानमंत्री यह मानते हैं कि उनकी घोषणा से किसानों के संघर्ष का अंत हो जाएगा, तो वे भुलावे में हैं। यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक कि लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने के लिए अधिनियम पारित नहीं हो जाता और बिजली संशोधन विधेयक और श्रम संहिताएं वापस नहीं ले ली जाती। यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक कि लखीमपुर खीरी और करनाल के हत्यारों को सजा नहीं दिलाई जाती। उन्होंने कहा कि यह जीत कई और संयुक्त संघर्षों को आगे बढ़ाएगी और नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के प्रतिरोध का निर्माण करते हुए किसान विरोधी एवं मजदूर-कर्मचारी विरोधी भाजपा को कई और पराजय देखने होंगे।